उधर अपार प्रसव वेदना, इधर बेदर्द व्यवस्था की मार
जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा: सुरक्षित प्रसव व कष्ट मिटाने की आस में दूर से असीम प्रसव वेदना लेकर पहुंची
जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा: सुरक्षित प्रसव व कष्ट मिटाने की आस में दूर से असीम प्रसव वेदना लेकर पहुंची तड़पती महिला और परेशान व चिंतित तीमारदार। कभी सुबह, कभी सांझ तो कभी रात का वक्त। तीमारदारों का गिड़गिड़ाने के साथ डाक्टर, नर्स व अन्य अस्पताल कर्मियों का मुंह ताकना। क्या करें, क्या न करें, जैसी स्थिति। मामला सामान्य हो तो ठीक और खतरा या सीजर जैसा लगे तो असहनीय प्रसव पीड़ा से कराहती महिला के लिए होता है एकमात्र अक्षर 'रेफर'।
यह कोई फिल्म या नाटक की लाइनें नहीं हैं, बल्कि पहाड़ में पटरी से उतरी स्वास्थ्य व्यवस्था के नमूने स्वरूप विक्टर मोहन जोशी महिला अस्पताल अल्मोड़ा का हाल है। जहां आए दिन उक्त सोचनीय नजारे सामने आते हैं और गर्भवती महिला व उसके तीमारदार भारी संकट में पड़ जाते हैं। नगर में प्रसव व संबंधित उपचार के लिए पृथक से पुराना महिला अस्पताल है। मगर बेदर्द व्यवस्था के आगे मरीज व तीमारदार लाचार हो रहे हैं। शहर ही नहीं दूर ग्रामीण अंचलों से 108 सेवा या निजी व्यवस्था के प्रसव को महिलाएं कभी दिन, कभी रात अस्पताल में पहुंचती हैं। मगर बेदर्द व्यवस्था का आलम यह है कि अस्पताल में बेहद जरूरी होते हुए भी निश्चेतक व बाल रोग विशेषज्ञ तैनात नहीं हैं। ऐसे में तत्काल जरूरत पड़ने पर भी अस्पताल में सीजर केस नहीं हो पा रहे और यदि गर्भस्थ या नवजात शिशु में कोई विकार हो तो उसका भी कोई इलाज नहीं हो पाता। आम शिकायतें हैं कि यहां मामला पेचीदा बताकर रेफर कर दिया। कुछ को रिस्क बताकर अन्यत्र जाने की सलाह मिल जाती है, भले ही आधी रात हो। ऐसे में एक ओर अस्पताल पहुंची महिला दयनीय हालत में तड़पती है तो दूसरी ओर उसके तीमारदार बेहद संकट में पड़ जाते हैं। उन्हें दो जान बचाने के लिए आनन-फानन में स्थानीय प्राइवेट क्लीनिक या बाहर का रुख करना पड़ता है। सबसे ज्यादा परेशान ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले लोग हो रहे हैं, जिन्हें जानकारी का अभाव होता है या खर्चे की पर्याप्त व्यवस्था नहीं हो पाती है। इतना ही नहीं, अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ व निश्चेतक की कुर्सियां करीब तीन साल पूर्व से खाली हैं। बीच में जनाक्रोश को थामने के लिए चंद माह के लिए एक निश्चेतक को यहां संबद्ध किया गया, मगर करीब डेढ़ माह पहले उनका तबादला कर दिया। स्त्री रोग विशेषज्ञ के पांच पदों में से सिर्फ तीन भरे हैं और इन तीनों में से एक डा. मधु माथुर ने नैनीताल से पदोन्नति पर स्थानांतरित होकर चंद रोज पूर्व ज्वाइन किया है। एक स्त्री रोग विशेषज्ञ व ईएमओ के दो पदों पर संविदा से काम चल रहा है। मगर इस मुसीबत को समझने की फुर्सत किसी को नहीं। बस घिसी-पिटी व्यवस्था से सभी समझौता कर चुके हैं।
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मरीज निश्चेतक लाए, तो सीजर
इससे बुरी व्यवस्था और क्या हो सकती है, जब अस्पताल जाकर मरीज खुद जरूरतमंद डाक्टर की व्यवस्था करे। ऐसा ही कुछ महिला अस्पताल में होना चर्चा का विषय है। इस बीच निश्चेतक नहीं है, मगर फिर भी कतिपय सीजर केस हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि मजबूरीवश कुछ तीमारदार अन्य अस्पताल के निश्चेतक को निजी अनुरोध व व्यवस्था पर लाते हैं, तब सीजर होता है, हालांकि इस बात का कोई स्पष्ट लेखा-जोखा नहीं है। कुछ साल पहले स्थिति संतोषजनक थी।
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:::::::: बाक्स-2 ::::::::::
आंकड़ों में महिला अस्पताल की स्थिति
वर्ष ओपीडी भर्ती नार्मल सीजर
मरीज महिलाएं प्रसव प्रसव
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2009 22,887 2920 822 164
2010 22,669 3687 903 157
2011 22,948 3472 961 265
2012 20097 3332 948 213
2013 21,118 3362 925 245
2014 12,355 1943 580 121
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::::::: इनसेट ::::::::
फोटो- 14 एएलएमपी 11
परिचय- डा. इंदु पुनेठा। जागरण
शिकायतें हैं, मगर मजबूरीवश। अस्पताल में डाक्टर्स की कमी से चौकस इंतजाम मुश्किल पड़ रहा है। खासकर निश्चेतक की स्थाई तैनाती नहीं होने से सीजर आपरेशन नहीं हो पा रहे। सीजर की जरूरत पर महिलाओं को रेफर करना मजबूरी हो जाती है, क्योंकि अन्य अस्पतालों से भी निश्चेतक बुलाना मुश्किल है। शासन व प्रशासन को इस स्थिति से बार-बार अवगत कराया दिया गया है।
:::: डा. इंदु पुनेठा, सीएमएस, महिला अस्पताल अल्मोड़ा