नारी सशक्तीकरण : संस्थाओं ने ठाना अबला को सबल बनाना

वंदना सिंह, वाराणसी : कानून तो बने ताकि आधी आबादी को ¨हसा और अपमान से मुक्ति दिलाई जा स

By JagranEdited By: Publish:Tue, 20 Mar 2018 03:22 PM (IST) Updated:Tue, 20 Mar 2018 03:22 PM (IST)
नारी सशक्तीकरण : संस्थाओं ने ठाना अबला को सबल बनाना
नारी सशक्तीकरण : संस्थाओं ने ठाना अबला को सबल बनाना

वंदना सिंह, वाराणसी : कानून तो बने ताकि आधी आबादी को ¨हसा और अपमान से मुक्ति दिलाई जा सके। मगर लाखों जतन करने पर भी महिलाओं के खिलाफ अपराध की फेहरिश्त है कि लंबी होती ही जा रही है। उनके महफूज होने से घर में सम्मान से जीने तक की तमाम कवायदों के बीच कानूनी वरदहस्त होने पर भी आए दिन की घटनाएं चिंता में डालने वाली हैं। संस्थाओं के अभियान हों या कानूनी अमलीजामा पहनाने की मुहिम हर ओर अबला को सबला बनाने के लिए जंग लड़ने जैसी सूरत नजर आती है। इन्हीं सब हालातों के बीच काशी की कुछ संस्थाएं हैं जो हित के लिए अपना मोर्चा खोले ही रहती हैं ताकि आधी आबादी को भी उसका हक मिल सके- पुरूषों को बदलनी होगी अपनी सोच : आज भी महिलाओं के साथ अपराध जारी हैं। महिलाओं व लड़कियों को शोषण से बचाने के लिए जागरूक करने के लिए हमारी संस्था डा शभूनाथ रिसर्च फाउंडेशन मलिन बस्तियों में किशोरी जत्था के तहत चुप्पी तोड़ो अभियान चला रही है इसके जरिए लड़कियों को जागरूक किया जाता है कि अगर उनके साथ कोई भी अपराध या कुछ गलत हो रहा है तो चुप न रहें आवाज उठाएं। इस अभियान के जरिए हम अभिभावकों को भी जागरूक कर रहे हैं। समय के साथ साथ महिलाओं के साथ हिंसा तो बढती जा रही है जबकि कानून भी बना है। बस्तियों में हमारा किशोरी जत्था नाटक, बैठक के जरिए लोगों को जागरूक करता है। हम अपने जत्थे की लडकियों को सम्मानित भी करते हैं जो अधिक से अधिक क्षेत्रों में लोगों को जागरूक कर रहे हैं। उन्हें बेस्ट अचीवर्स एवार्ड दिया जाता है। पिछले कई सालों से हमारा यह जत्था काम कर रहा है। नौ जत्थे हैं जिनमें करीब 200 लडकिया काम कर रही हैं। इसमें मुस्लिम व दलित लडकिया ज्यादा हैं। जत्थे की लडकियों को हम शिक्षित करते हैं फिर ये लोग बस्तियों में बच्चों व महिलाओं को पढ़ाती हैं। बाल विवाह को रोकने की थीम लेकर इस बार हम लोग चल रहे हैं। जत्थे के जरिए हम लोग महिला हेल्प लाइन, महिला अधिकार, आशा ज्योति केंद्र का 181 हेल्पलाइन, काननू आदि की जानकारी देते हैं। इसके साथ ही हिंसा पीडित महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए कानूनी लडाई भी लड़ रहे हैं। दरअसल कानून और योजनाएं जमीन तक नहीं पहुंच रही हैं। पुरषों की सोच में आज भी महिलाओं के लिए परिवर्तन नहीं आया है। पितृ सत्तात्मक परंपरा जारी है। पुरूष समाज महिला विरोधी है। शायद यही वजह है कि आज भी जब पीडित महिला थाने जाती है तो उसे अच्छा रिस्पास नहीं मिलता। कानूनी प्रक्त्रिया बहुब थकाऊ व बोझिल है। आलम यह हैं कि महिलाओं व लड़कियों के साथ जब अपराध होता है तो अभिभावक ही चुप रहने के लिए कहते है। लैंगिग भेदभाव आज भी समाप्त नहीं हो रहा है। वहीं काननू और योजनाओं का पारदर्शी क्त्रियावयन व व्यवहारिक समीक्षा नहीं होती। इस वक्त हमारी संस्था पेंडिंग 217 केसेज में महिलाओं को न्याय दिलाने में लगी है। दस सालों में 500 से ज्यादा महिलाओं को हिंसा के मामले में न्याय दिलाकर आत्मनिर्भर बनाया है। एक बात और शिक्षित समाज में महिलाओं के साथ शोषण बढा है। लोक लाज के कारण ये महिलाएं चुप रहती हैं। ऐसे में भीतर ही भीतर यह घुटती रहती है। उच्च वर्ग की शिक्षित महिलाओं के साथ अपराध व हिंसा के केसेज भी अब हमारे पास ज्यादा आ रहे हैं। ये चौंकाने वाली बात हैं। घर की हिंसा से परेशान ये महिलाएं किटी पार्टीज आदि में समय व्यतीत करके अपना दर्द कम करने में जुटी रहती हैं लेकिन घर आते ही पति द्वारा प्रताड़ना से धीरे धीरे विक्षिप्त सी हो जाती हैं। शिक्षा का असर भी हिंसा

पर बेसर हो रहा है।

- डा रोली सिंह, कार्यक्त्रम निदेशिका, डा. शभूनाथ रिसर्च फाउंडेशन

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अधिकारी करते हैं लापरवाही

प्रशासनिक : अधिकारियों की लापरवाही के कारण इन सब मामलों में अभी भी रिपोर्टिंग ठीक से नहीं हो रही। ऐसे में मामले में डरा धमकाकर मामला में समझौता करा दिया जाता है। अधिकारी पीड़ित महिला का केस ही नहीं दर्ज करते। कभी कभार मामला पता चल जाता है तो बस थोडा दंड देकर अपराधी को फिर से बहाल कर दिया जाता है। नया प्रावधान 166 ए आया है उसमें कहा गया है कि अगर पुलिस एफआईआर दर्ज न करे तो उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज होगा। मगर ऐसा नहीं है। कानून तो अच्छा बना है लेकिन उसका पालन नहीं हो रहा है। ह्यूमन टै्रफिकिंग बढ़ती ही जा रही है। महिला हिंसा, लडकियों की तस्करी बढती जा रही है। गुड़िया संस्था ऐसी लडकियों को रेसक्यू करती है, कानूनी सहायता देना, पुनर्वासन के लिए काम करना, अभिभावकों की कस्टडी दिलाने का काम करती है। इस वक्त हम लोग निशुल्क 2500 केसेज लड रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट व हाइकोर्ट में 15 जनहित याचिकाएं सेक्स टै्रफिकिंग को लेकर दायक की है। दरअसल पितृ सत्तात्मक सत्ता के कारण अभी भी कुछ पुरूषों को घर के अंदर के अलावा बाहर भी एक महिला चाहिए जो गलत है। कानून बनाना, गाइड लाइन बनाना अलग बाता है लेकिन इसका पालन भी होना चाहिए।

- अजीत सिंह, संस्थापक व निदेशक गुडिया संस्था

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संवदेनशीलता, नैतिकता को हो विकास : कोई भी दिवस मनाने का कारण प्रतीकात्मक होता है ताकि लोग उसे मनाने का कारण जानें और जागरूकता बनी रहे। यह देखा जा रहा है कि महिलाओं के विरूद्व अपराध निरंतर बढता जा रहा है। इसके पीछे अनेकों कारण है जैसे सामाजिक, आर्थिक, सास्कृतिक, जीवन शैली में बदलाव व तकनीक का अत्यधिक हावी होना। तकनीक के जरिए अब लोगों की पहुंच वहा तक हो रही है जहा नहीं होना चाहिए। आज इंटरनेट पर सब कुछ उपलब्ध है। इसके साथ ही समाज में संवेदनशीलता, जागरूकता, नैतिकता का विकास होना चाहिए। नियम, कानून के प्रवर्तन पर बल देना होगा। महिलाओं से जुडे अपराध के लिए महिला कल्याण विभाग की कुछ स्कीम है। इसमें उत्तरप्रदेश रानी लक्ष्मी बाई महिला सम्मान कोष है जिसके तहत किसी भी तरह के अपराध पीडित महिला या लडकी को लाभ दिया जाता है इसमें नौ धाराएं कारित होता है। इसमें मामला थाने में पंजीकृत होता है, महिला को आर्थिक क्षतिपूर्ति की धनराषि दी जाती है जो तीन से दस लाख रूपये अलग अलग धाराओं

के अनुसार होती हैं। इसमें एसिट अटैक की शिकार, रेप, गैंगरेप, कस्टडी रेप, पाक्सो की धारा चार , छह व आठ, पाक्सो की धारा चार या छह के साथ आइपीसी ारा 302 में नाबालिक लडकी के साथ दुष्कर्म से मौत आदि शामिल है। इसके साथ

ही आशा ज्योति क्रेद स्थापित है जो बनारस सहित 11 जनपदों में अपराध पीड़ित महिलाओं को सहायता दे रहा है। इसमें किसी भी प्रकार की अपराध पीड़ित महिला को एक छत के नीचे पुलिस व चिकित्सकीय सहायता, परामर्श, प्रवास, प्रशिक्षण आदि सुविधाएं दी जाती हैं। इसके लिए रेस्क्यू सुविधा भी मिलती है। इसके अलावा दहेज पीड़ित महिलाओं को आर्थिक व कानूनी सहायता, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत प्रत्येक सहायता यानी आवेदन दाखिल करने से लेकर संरक्षण तक महिला को प्रदान किया जाता है। महिला कल्याण विभाग पीड़ित महिलाओं के लिए होम भी चलाता है जिसमें बालिका ग्रह में अपराध पीड़ित अवस्क लडकिया को संरक्षण दिया जाता है। वहीं नारी शरणालय में व्यस्क बालिका व महिलाओं को संरक्षण दिया जाता है। इसके अतिरिक्त पाक्सो की धाराओं से पीडित महिलाओं या लडकियों को संरक्षण दिया जाता है। जैतपुरा स्थित नारी संरक्षण गृह में महिलाओं व लडकियों का पुनर्वासन व स्वावलंबी बनाया जाता है।

-प्रवीण कुमार त्रिपाठी, जिला प्रोबेशन अधिकारी

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