सोनभद्र में ओडीओपी में टमाटर की फाइल लटकी, जिले से प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है शासन को

धान की खेती में बढ़ती लागत और कम होती कमाई की वजह से ज्यादातर किसान इससे मुंह मोड़ रहे हैं। विकल्प के तौर पर ज्यादातर अन्नदाता टमाटर और मिर्च की खेती करना शुरू कर दिए हैं। सोनांचल के लाल टमाटर को पहचान तो बांग्लादेश की मंडियों तक मिली है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Tue, 22 Dec 2020 08:40 AM (IST) Updated:Tue, 22 Dec 2020 08:40 AM (IST)
सोनभद्र में ओडीओपी में टमाटर की फाइल लटकी, जिले से प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है शासन को
सोनांचल के लाल टमाटर को पहचान तो बांग्लादेश की मंडियों तक मिली है।

सोनभद्र, जेएनएन। धान की खेती में बढ़ती लागत और कम होती कमाई की वजह से ज्यादातर किसान इससे मुंह मोड़ रहे हैं। विकल्प के तौर पर ज्यादातर अन्नदाता टमाटर और मिर्च की खेती करना शुरू कर दिए हैं। सोनांचल के लाल टमाटर को पहचान तो बांग्लादेश की मंडियों तक मिली है, लेकिन गत करीब एक दशक से उत्पादन ज्यादा होने के कारण खपत कम होती जा रही है। ऐसी स्थिति में किसानों को नुकसान काफी ज्यादा हो रहा है। इस नुकसान को कम करने के लिए जिला प्रशासन की तरफ से एक जिला एक उत्पाद यानी ओडीओपी में टमाटर को प्रस्तावित किया गया। अगर प्रस्ताव पर अमल हुआ होता तो शायद अब तक कहीं न कहीं फूड प्रोसेसिंग यूनिट लग गई होती। इससे किसानों की उपज को सही मूल्य मिलता। अफसोस कि अभी तक मामला फाइलों में लटका पड़ा है। 

जिले के करीब सात हजार हेक्टेयर में टमाटर की खेती होती है। इसे खाद्य एवं प्रसंस्करण के तहत एक जिला एक उत्पाद में शामिल करने की कवायद करीब चार माह पहले शुरू हुई थी, लेकिन अब तक उसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। इसको लेकर बैठकें तो कई बार हुईं, लेकिन उसमें अब तक कोई सार्थक परिणाम निकलकर सामने नहीं आया। इस वजह से इस साल भी किसानों को डर सता रहा है कि कहीं बाहर से व्यापारी नहीं आए तो उन्हें कौडिय़ों के भाव फसल बेचनी पड़ेगी। ऐसी स्थिति में लागत भी निकलनी मुश्किल हो जाएगी। 

कम है बाहरी व्यापारियों के आने की उम्मीद

टमाटर की खेती करने वाले किसानों की मानें तो हर वर्ष बाहर से व्यापारी आते हैं। जब टमाटर दूर तक जाता है तो रेट अच्छा मिलता है। इस बार तो कोरोना संकट के कारण बाहर से व्यापारियों के आने की उम्मीद कम ही है। करमा क्षेत्र के किसान बताते हैं कि एक सप्ताह पहले तक 25 रुपये प्रति किलो की दर से बिकता था, लेकिन अब महज सात-आठ रुपये रह गया है। यहीं स्थिति रही तो लागत भी निकलनी मुश्किल हो सकती है। 

कहां तक पहुंची है ओडीओपी की फाइल

जिला उद्यान अधिकारी सुनील कुमार शर्मा बताते हैं कि ओडीओपी में टमाटर का चयन करके यहां प्रस्ताव भेजा गया है। उसपर उच्चस्तर से काम भी हो रहा है। गत दिनों हुई बैठक में इस पर चर्चा भी हुई थी। उम्मीद है कि नए साल में जिलों के लिए लक्ष्य आदि का आवंटन हो जाएगा। बताया कि अगर आवंटन आता है तो उसके तहत फूड प्रोसेङ्क्षसग यूनिट लगाने के लिए अनुदान दिया जाएगा। इसमें 30 से 40 फीसद तक अनुदान हो सकता है। बगैर लक्ष्य मिले अभी तक कुछ नहीं हो सकता। 

बोले किसान

मैं गत 18 वर्ष से खेती में लगा हूं। करीब 15 वर्ष से टमाटर की खेती कर रहा हूं। जो स्थिति आज है यह एक दशक से है। अगर फूड प्रोसेसिंग यूनिट लग जाए, कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था हो जाए तो काफी काम हो जाएगा। टमाटर का अच्छा रेट मिलेगा। अन्यथा किसानों की उपेक्षा होती रहेगी। - गोपाल सिंह, करनवाह

अभी तक जिले के किसान बाहरी व्यापारियों पर ही निर्भर हैं। अगर यहां टमाटर से तैयार होने वाले उत्पाद की कंपनी लग जाए तो निश्चित रूप से उसका लाभ किसानों को मिलेगा। अन्यथा टमाटर की खेती से भी किसानों का मोहभंग हो जाएगा। - रियाज खान, करमा 

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