काशी के आयुर्वेदाचार्य ने दुनिया को दिया सर्जरी का ज्ञान, 'सुश्रुत संहिता' में आपरेशन के दर्ज हैं मूल सिद्धांत
Varanasi Ayurvedacharya surgery Knowledge to world सरकार ने हाल ही में आयुर्वेद के विशिष्ट क्षेत्र में पोस्ट ग्रेजुएट कर रहे छात्रों को हड्डी आंख कान नाक गला दांत के आपरेशन का प्रशिक्षण देने की स्वीकृति दी है। आइएमए ने फैसले की आलोचना करते हुए इसे असभ्य कदम बताया है।
वाराणसी, जेएनएन। भारत सरकार ने हाल ही में आयुर्वेद के विशिष्ट क्षेत्र में पोस्ट ग्रेजुएट कर रहे छात्रों को हड्डी, आंख, कान, नाक, गला, दांत के आपरेशन का प्रशिक्षण देने की स्वीकृति दी है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) ने फैसले की आलोचना करते हुए इसे असभ्य कदम बताया है। हालांकि आपरेशन की जिस विधा को आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से जुड़े लोग अपना मानते हैंं, दरअसल दुनिया को यह ज्ञान काशी के आयुर्वेदाचार्य सुश्रुत ने दिया था। बनारस में जन्मे आचार्य सुश्रुत को शल्य (सर्जरी) चिकित्सा का जनक माना जाता है। काशिराज दिवोदास धन्वंतरि के सात शिष्यों में प्रमुख आचार्य सुश्रुत को 'फादर आफ प्लास्टिक सर्जरी' यानी प्लास्टिक सर्जरी का पितामह भी कहते हैैं। उन्हें 2500 वर्ष पहले भी प्लास्टिक सर्जरी एवं इसमें इस्तेमाल होने वाले यंत्रों की जानकारी थी। आयुर्वेद के महत्वपूर्ण ग्रंथों में शुमार 'सुश्रुत संहिता' में आपरेशन के मूल सिद्धांतों की जानकारी मिलती है।
रायल कालेज आफ सर्जंस आफ इंग्लैंंड में है सुश्रुत की प्रतिमा
रसशास्त्र एवं भैषज्य विभाग, आयुर्वेद संकाय, बीएचयू के प्रो. आनंद चौधरी ने बताया कि सुश्रुत संहिता में हर तरह की शल्य क्रिया का विस्तृत वर्णन है। मेलबर्न स्थित द रायल आस्ट्रेलिया कालेज आफ सर्जंस में सुश्रुत की प्रतिमा स्थापित है। 80 के दशक में आइएमएस, बीएचयू के डाक्टर जीडी सिंघल ने सुश्रुत संहिता व आधुनिक चिकित्सा का तुलनात्मक अध्ययन किया था। उन्होंने भी माना कि सुश्रुत संहिता में उल्लिखित यंत्र व शल्य प्रक्रिया अत्यंत उच्चकोटि की हैैं।
आयुर्वेद से हुई है सर्जरी की उत्पत्ति
आयुर्वेद संकाय, बीएचयू के ही शल्य तंत्र विभाग के अध्यक्ष प्रो. शिवजी गुप्ता बताते हैं कि आपरेशन क्रिया की उत्पत्ति ही आयुर्वेद से हुई है। 19वीं शताब्दी में पहली बाद भारत में प्लास्टिक सर्जरी का पता चलता है। मुगलों, बौद्धों ने देश के पारंपरिक ज्ञान को काफी नुकसान पहुंचाया, वहीं अंग्रेज भारतीय शल्य चिकित्सा पद्धति को अपनाकर इस क्षेत्र में काफी आगे निकल गए। कुछ लोग आज भी आयुर्वेद को सिर्फ जड़ी-बूटी की विधा मानते हैं। ऐसे में सरकार द्वारा आयुर्वेद के वैद्यों को भी आपरेशन यानी शल्य की स्वीकृति देना गौरव की बात है।
शल्य व शल्क्य विभाग में होता है आपरेशन
बीएचयू के आयुर्वेद संकाय में आपरेशन से जुड़े दो विभाग हैं। शल्य तंत्र विभाग और शल्क्य विभाग, जहां छोटे-बड़े आपरेशन किए जाते हैैं। बीएचयू में पहले आयुर्वेद कालेज ही खुला था। महान चिकित्सक, सर्जन और विज्ञानी प्रोफेसर के. एन. उडप्पा ने यहीं से आयुर्वेदिक मेडिसिन (एएमएस) में ग्रेजुएशन किया था। 1559 में बीएचयू के आयुर्वेदिक कालेज के प्रिंसिपल व सर्जरी के प्रोफेसर बने। उनके नेतृत्व में यह कालेज आफ मेडिकल साइंस बना, जो आज इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस (आइएमएस) है।