IIT BHU: ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की उम्मीद बनी आइआइटी बीएचयू के विज्ञानी की तकनीक

केंद्र सरकार की ओर से 17490 करोड़ रुपये के मिशन ग्रीन हाइड्रोजन को मंजूरी दी जा चुकी है। इसका उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा से हाइड्रोजन के उत्पादन को बढ़ावा देना और 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है।

By Jagran NewsEdited By: Publish:Sun, 29 Jan 2023 07:55 PM (IST) Updated:Sun, 29 Jan 2023 07:55 PM (IST)
IIT BHU: ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की उम्मीद बनी आइआइटी बीएचयू के विज्ञानी की तकनीक
ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की उम्मीद बनी आइआइटी बीएचयू के विज्ञानी की तकनीक

शैलेश अस्थाना, वाराणसी। केंद्र सरकार ने 17,490 करोड़ रुपये के मिशन ग्रीन हाइड्रोजन को मंजूरी दी है। इसका उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा से हाइड्रोजन के उत्पादन को बढ़ावा देना और 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है।

इसमें आइआइटी बीएचयू के विज्ञानी सिरैमिक इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डा. प्रीतम सिंह का मीरजापुर में अपने पैतृक गांव सक्तेशगढ़ में स्थापित ग्रीन हाइड्रोजन का विश्व का पहला डिमांस्ट्रेशन प्लांट बड़ी भूमिका निभा सकता है। डा. प्रीतम ने पराली से हाइड्रोजन तैयार करने का सफल प्रयोग किया है।

यही कारण है कि उनकी तकनीक और प्लांट पर सरकार ने नजर बना रखी है। केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) व विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की टीम अगले हफ्ते प्लांट का निरीक्षण करने आएगी और अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी। बीते दिसंबर में भी मंत्रालय की सहयोगी संस्था वर्ल्ड रिसोर्स इंडिया (डब्ल्यूआरआइ) के अधिकारी प्लांट का दौरा कर चुके हैं।

पराली, कृषि अपशिष्ट से बनाते हैं हाइड्रोजन

डा. प्रीतम सिंह ने पराली, घास और सब्जी-फलों के छिलके से हाइड्रोजन बनाने की तकनीक ईजाद की है। केमिस्ट्री में नोबल विजेता जान गुडइनफ के निर्देशन में पीएचडी करने वाले डा. प्रीतम बताते हैं कि पराली व कृषि अपशिष्ट से हाइड्रोजन बनाने की प्रक्रिया वैसी ही है, जैसे धरती के गर्भ में फासिल फ्यूल व पेट्रोलियम उत्पाद तैयार होते हैं। उनके प्लांट में बनने वाली ‘हाइड्रोजन’ काफी सस्ती भी है।

एक किलो पराली से 60 ग्राम हाइड्रोजन तैयार होती है। अभी उनकी कंपनी बीजल ग्रीन के पास हाइड्रोजन कंप्रेशर नहीं है और वह प्लांट में थर्मल एसार्टेड एनारोबिक डाइजेशन (टाड) तकनीक बनाए गए चार रिएक्टरों में हाइड्रोजन बनाते हैं। हाइड्रोजन के अलावा इन रिएक्टरों से बाई प्रोडक्ट के तौर पर मीथेन, एलएनजी, सीएनजी, सबसे शुद्ध कोयला और सिलिकान भी मिलता है। डा. प्रीतम का दावा है कि इस सिलिकान का उपयोग सौर ऊर्जा की प्लेटों के निर्माण में किया जाए तो देश ऊर्जा क्षेत्र में भी महाशक्ति बन सकता है।

निवेशक का है इंतजार

डा. प्रीतम सिंह के प्लांट की प्रतिदिन 50 किग्रा ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन करने की क्षमता है। उनका दावा है कि निवेशक या सरकार की मदद मिल जाए तो उत्पादन प्रतिदिन एक टन तक पहुंचा सकते हैं। कंप्रेस्ड हाइड्रोजन को दूसरे स्थान पर भी ले जा सकते हैं।

प्रतिदिन एक से पांच टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन करने वाले प्लांट को स्थापित करने में 100 करोड़ रुपये खर्च आएगा। देश की ऊर्जा क्षेत्र की नामी-गिरामी निजी व सरकारी कंपनियों जैसे एनटीपीसी, गेल, भेल, आइजीएल, रिलायंस एनर्जी के अलावा बहुराष्ट्रीय कंपनी इस्टर्लिंग विल्सन, जीएमआर, जेटवर्क के प्रतिनिधि इस संयंत्र की अत्यंत सस्ती तकनीक को देखने आ चुके हैं।

डा. सिंह बताते हैं कि प्लांट बनाने और प्रदर्शन में उनके आठ करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। बहुत सी नामी-गिरामी कंपनियों ने उन्हें मामूली कीमत पर तकनीक बेचने का दबाव बनाया, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया। यूरोप की बड़ी पत्रिकाओं में सम्मिलित ‘गैस वर्ल्ड’ के पांच दिसंबर के अंक में बीजल ग्रीन पर हाइड्रोजन के अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ स्टीफन बी. हैरिसन का विशेष लेख प्रकाशित हुआ था।

देश में स्थापित होगी हाइड्रोजन वैली

बीते 15 दिसंबर को देश में हाइड्रोजन वैली को स्थापित करने को लेकर पुणे में केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय व विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की बैठक हुई। पहली वैली महाराष्ट्र के पुणे, दूसरी जामनगर, तीसरी मुजफ्फरनगर या प्रयागराज में हो सकती है। बैठक में संभावित कंपनियों के नामों पर हुई चर्चा में बीजल ग्रीन का जिक्र भी किया गया था। बैठक में देश की कई नामी-गिरामी राष्ट्रीय एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे।

सतारा में स्थापित होगा पहला प्लांट

डा. प्रीतम ने बताया कि उनकी तकनीक पर महराष्ट्र के सतारा जिले के माढ़ा के भाजपा सांसद व उद्यमी सुजीत सिंह निंबालकर ने रुचि दिखाई है। उनके सहयोग से पहला व्यावसायिक हाइड्रोजन प्लांट माढ़ा में स्थापित हो रहा है, जो 26 जनवरी से आरंभ होना था। एक लीटर पेट्रोल से 3.54 मेगा जूल ऊर्जा मिलती है। इतनी ऊर्जा में 100 सीसी की बाइक 60 किमी चल सकती है। 3.54 मेगा जूल ऊर्जा पैदा करने के लिए आधा किलो से कम हाइड्रोजन चाहिए। हाइड्रोजन फ्यूल से वाहन सस्ते में चलाए जा सकते हैं। इससे बिल्कुल भी प्रदूषण नहीं होता।

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