जौनपुर की इस मिठाई का स्‍वाद ही अलग, बरसात के मौसम में शौकीनों के बीच बढ़ गई काफी मांग

बारिश में अनरसे का नाम सुनते ही स्वाद के शौकीनों के मुंह में पानी आना स्वाभाविक है। लालाबाजार में दर्जनों दुकानों पर बनने वाली इस मिठाई की महक इसका स्वाद आज भी अपना रुतबा कायम रखे हुए है। इसका स्वाद जिसने चख लिया वही इसका दीवाना हो गया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Wed, 10 Aug 2022 12:49 PM (IST) Updated:Wed, 10 Aug 2022 12:49 PM (IST)
जौनपुर की इस मिठाई का स्‍वाद ही अलग, बरसात के मौसम में शौकीनों के बीच बढ़ गई काफी मांग
जौनपुर में सिकरारा के लालाबाजार अनरसा बना रही महिला।

जागरण संवाददाता, जौनपुर : बारिश में अनरसे का नाम सुनते ही स्वाद के शौकीनों के मुंह में पानी आना स्वाभाविक है। लालाबाजार में दर्जनों दुकानों पर बनने वाली इस मिठाई की महक, इसका स्वाद आज भी अपना रुतबा कायम रखे हुए है। इसका स्वाद जिसने चख लिया वही इसका दीवाना हो गया। अनरसे के शौकीन इसकी मिठास और स्वाद के मुरीद हैं।

यहां का अनरसा जिले के विभिन्न दुकानों सहित आस- पास के जिलों में लोगो की जुबान को रास आ रहा है। छोटी- छोटी दुकानों पर बनने वाली यह मिठाई पूर्वांचल के विभिन्न प्रतिष्ठित मिठाई की दुकानों पर अपने स्वाद का लोहा मनवा रहा है। सावन आते ही अनरसा कारोबारियों की मांग मिष्ठान कारोबारियों के यहां से शुरू हो जाती है।

डमरुआ के हलवाइयों ने शुरू किया था अनरसा बनानाबुजुर्गों ने बताया कि सात दशक पहले से ही डमरुआ बाजार के हलवाइयों ने अनरसा बनाना शुरू किया था। कम लागत में लोग लाजबाब मिठाई का स्वाद पा जाते थे। शुरुआती दिनों में लोगो को आकर्षित करने के लिए हलवाई लाल, हरा, पीला व गुलाबी रंग के बनाते थे। अनरसे का स्वाद व महक बढ़ा तो लालाबाजार के कई कारोबारी वहीं जाकर अनरसा बनाने की कला को सीखने के बाद अपने ही बाजार में इसका व्यवसाय शुरू कर दिया।

अनरसा बनाने में पीढ़ियों से लगे हैं लोगलालाबाजार में कई ऐसे परिवार हैं जो अनरसा बनाने में पीढ़ियों से लगे हुए हैं। वर्तमान समय मे बाजार में लगभग सोलह ऐसे व्यवसायी हैं, जिनका यह प्रमुख कारोबार हो गया है। ढ़ाई महीने की कमाई से परिवार का सालभर का खर्च निकालने की होड़ लगी रहती है। इसके लिए वे लोग दिन रात मेहनत करते हैं।

ऐसे बनता है अनरसा

अनरसा बनाने के लिए चावल को अच्छी तरह से साफ करके पानी में भिगो दिया जाता है। सूती कपड़े पर भींगे चावल को फैलाते हैं फिर इसे पीसा जाता है। चावल के आटे, मैदा, दूध, शक्कर, पंचमेवा व खोवा से सानकर आकार दिया जाता है। इस मिश्रण को कुछ देर ऐसे ही रखा जाता है। फिर लोई खाद्य तेल में छानकर बाहर निकाल लेते हैं।

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