काशी में विराजे नाथद्वारा के श्रीनाथ जी, श्रीनाथद्वारा से बैलगाड़ी पर लाई गई थी प्रभु की दुर्लभ काष्ठ प्रतिमा

भारतेंदु हरिश्चंद्र और उनका भवन जो कि चौखंभा में भारतेंदु भवन के नाम से विख्यात है। इस इमारत में न सिर्फ साहित्य बल्कि धर्म से जुड़ी अद्भुत धरोहरें भी मौजूद हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Fri, 18 Oct 2019 10:29 AM (IST) Updated:Fri, 18 Oct 2019 05:30 PM (IST)
काशी में विराजे नाथद्वारा के श्रीनाथ जी, श्रीनाथद्वारा से बैलगाड़ी पर लाई गई थी प्रभु की दुर्लभ काष्ठ प्रतिमा
काशी में विराजे नाथद्वारा के श्रीनाथ जी, श्रीनाथद्वारा से बैलगाड़ी पर लाई गई थी प्रभु की दुर्लभ काष्ठ प्रतिमा

वाराणसी [वंदना सिंह]। भारतेंदु हरिश्चंद्र और उनका भवन जो कि चौखंभा में भारतेंदु भवन के नाम से विख्यात है। इस इमारत में न सिर्फ साहित्य बल्कि धर्म से जुड़ी अद्भुत धरोहरें भी मौजूद हैं। उन्हीं में से एक है श्रीनाथ जी की दुर्लभ काष्ठ प्रतिमा, जो भारतेंदु हरिश्चंद्र नाथद्वारा से खुद बैलगाड़ी पर लेकर आए थे। यहां अपने भवन में उन्होंने बाकायदा श्रीनाथ जी का दरबार सजाया था। कार्तिक मास में श्रीहरि की पूजा का विधान है। ऐसे में भारतेंदु भवन में श्रीनाथ जी की इस काष्ठ प्रतिमा का मनोहारी शृंगार व विशेष पूजन-अर्चन किया जाता है।

भारतेंदुजी के वंशज दीपेश चंद्र चौधरी बताते हैं कि यह प्रतिमा बिल्कुल नाथद्वारा के श्रीनाथजी जैसी है। बस फर्क यह है कि यह काष्ठ की बनी है। उन्होंने बताया जिस समय भारतेंदु जी यह प्रतिमा लेकर आ रहे थे, तब भारत में कुछ हलचल सी चल रही थी, ऐसे में भारतेंदु जी ने इस प्रतिमा को ले आने की यात्रा का वर्णन अपनी रचनाओं में भारत की तात्कालीन स्थिति को देखकर कविता के रूप में किया था। उन्होंने बताया जब से यह प्रतिमा आई वह दीवार पर एक तख्त के सहारे एक ही स्थान पर विराजमान है।

हर दिन की अलग झांकी

दीपेश चंद्र चौधरी बताते हैं चूंकि श्रीहरि को शृंगार प्रिय है। ऐसे में हमारे यहां विराजित श्रीनाथ जी की प्रतिमा का अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है। जन्माष्टमी, विजयादशमी, कार्तिक मास, हरिप्रबोधिनी एकादशी व दीपावली पर विशेष श्रृंगार किया जाता है जिसमें पाग, मुकुट, हार, कंठा, बाजूबंद, बेसर, कुंडल आदि आभूषण के साथ रंग-बिरंगे परिधान धारण कराकर उन्हें सजाया जाता है। हर दिन का अलग श्रृंगार व परिधान होता है। 

ढाई फीट की है प्रभु की प्रतिमा

इस प्रतिमा में श्रीनाथ प्रभु का बायां हाथ ऊपर की ओर है जो गोवर्धन पर्वत उठाने का संकेत देता है। वहीं दायां हाथ कमर पर है। भगवान के नेत्र मानों अपने भक्तों को स्नेह से देख रहे हैं। लगभग ढाई फीट की यह प्रतिमा है।

चमेली के तेल से होता है लेपन

प्रभु की प्रतिमा पर हर शनिवार भारतेंदु जी के वंशज चमेली के तेल व गुलाब के इत्र से लेपन करते हैं जिससे यह हमेशा चमकती रहती है। 

विशेष वस्त्र, जिसे आजतक किसी ने नहीं देखा

भारतेंदु हरिश्चंद्र जब इस प्रतिमा को लाए थे तो उनके साथ प्रसाद स्वरूप विशेष वस्त्र भी लाए थे। वह आज भी भारतेंदु भवन में ठाकुर जी की पूजा स्थल पर एक रेशमी खोली में मंदिर बनाकर गद्दी के ऊपर रखा गया है। इसकी भी नित्य पूजा होती है।  खास बात यह कि आज तक इस वस्त्र को किसी ने नहीं देखा है। 

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