महर्षि दयानंद काशी शास्त्रार्थ की स्मृति में स्वर्ण शताब्दी वैदिक धर्म महासम्मेलन में जुटे विद्वान, तीन दिन होंगे विविध आयोजन

महर्षि दयानंद काशी शास्त्रार्थ के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर 11 से 13 अक्टूबर तक तीन दिवसीय स्वर्ण शताब्दी वैदिक धर्म महासम्मेलन का आयोजन किया गया है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Fri, 11 Oct 2019 12:46 PM (IST) Updated:Fri, 11 Oct 2019 02:32 PM (IST)
महर्षि दयानंद काशी शास्त्रार्थ की स्मृति में स्वर्ण शताब्दी वैदिक धर्म महासम्मेलन में जुटे विद्वान, तीन दिन होंगे विविध आयोजन
महर्षि दयानंद काशी शास्त्रार्थ की स्मृति में स्वर्ण शताब्दी वैदिक धर्म महासम्मेलन में जुटे विद्वान, तीन दिन होंगे विविध आयोजन

वाराणसी, जेएनएन। महर्षि दयानंद काशी शास्त्रार्थ के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर 11 से 13 अक्टूबर तक नरिया स्थित रामनाथ चौधरी शोध संस्थान वाटिका में तीन दिवसीय स्वर्ण शताब्दी वैदिक धर्म महासम्मेलन का आयोजन किया गया है। शुक्रवार को इसका शुभारंभ अतिथियों ने दीप जलाकर किया। 

सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा और आर्य प्रतिनिधि सभा के इस आयोजन में तीनों दिन भोर 4.30 बजे से प्राणायाम, ध्यान, योग, यज्ञ, प्रवचन, भजन, व्याख्यान तथा आर्यवीर दल के प्रदर्शन होंगे। वहीं 13 अक्टूबर को नरिया से विशाल शोभायात्रा निकाली जाएगी जो विभिन्न रास्तों से होते महर्षि दयानंद काशी शास्त्रार्थ स्थल आनंद बाग-दुर्गाकुंड पहुंचेगी। यहां यज्ञ, भजन व व्याख्यान के उपरांत वैदिक समारोह का समापन होगा। महासम्मेलन में देश भर से विद्वान जुटेंगे और पद्म भूषण महाशय धर्मपाल स्वागताध्यक्ष होंगे। महर्षि दयानंद सरस्वती ने 16 नवंबर 1869 को दुर्गाकुंड स्थित आनंदबाग में परमात्मा के स्वरूप पर काशी के विद्वानों से शास्त्रार्थ किया था । उन्होंने वेद में मूर्ति पूजा का प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए चुनौती दी थी। वर्ष 1869 में हुए इस शास्त्रार्थ की अध्यक्षता तत्कालीन काशी नरेश ईश्वरी नारायण सिंह ने की थी ।

इस मौके पर गुजरात के राज्‍यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि आर्य समाज को प्राकृतिक एवं जीरो बजट खेती से जुड़ने का आह्वान किया। कहा जीरो बजट खेती को केंद्र  सरकार ने अपने बजट में भी स्थान दिया है। २०-३० साल पहले कैंसर या हार्ट अटैक का नाम तक लोग नहीं जानते थे। मगर आज सारा देश बीमार हो गया है। इसका कारण ये है कि भोजन के रूप में हम जहर खा रहे है, जो रासायनिक खेती के कारण अनाजों में पहुंच रहा है। पहले हम कहीं भी पानी पी लेते थे, लेकिन आज कही स्वच्छ जल नहीं। किसानों की हालत दिन प्रतिदिन खराब हो रही है। मेरी मुलाकात कृषि वैज्ञानिक सुभाष पालेकर से हुई, जिन्होंने प्राकृतिक खेती के बारे में बताया।कहा किसानो की आय बढ़ाने के लिए जरूरी है कि खेती में उनकी लागत घटाई जाय, जो केवल प्राकृतिक खेती से ही संभव है।रासायनिक खेती में उपज तो बढ़ जाती है लेकिन खेत की उर्वरा शक्ति घटने लगती है और फसल में हानिकारक तत्व बढ़ जाते हैं, जो कैंसर जैसे रोग का कारक बनते हैं। वहीं जैविक खेती में लागत नहीं घाटी, बल्कि उपज घट जाती है। प्राकृतिक खेती में लागत न के बराबर और उपज रासायनिक खेती के बराबर मिलता है। इस पद्धति के माध्यम से किसानों की लागत को घटाकर उनकी आय बढ़ाई जा सकती है। देशी गाय, भैंस, बकरी, ऊंट सभी के गोबर लैब में टेस्ट किये गए। इनमें सिर्फ देशी गाय का गोबर ही अलग तरह से पाया गया। इसके १ ग्राम गोबर में 3-5 करोड़ जीवाणु पाए जाते है। देशी गाय के गोबर और गोमूत्र से तैयार खाद खेतों में बैक्टिरियों की संख्या को कई गुना तक बढ़ा देता है। ये बैक्टिरिया फसलों की जड़ों के लिए बहुत लाभदायक हैं। खाद तैयार करने में महज देशी गाय की जरूरत होती और लागत न के बराबर होता है।

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