नौ दिनी नवरात्र में तिथियों का फेर, 17 को महाअष्टमी व महानवमी व्रत दर्शन पूजन
शारदीय नवरात्र दस अक्टूबर (आश्विन शुक्ल प्रतिपदा) से शुरू हो रहा है। व्रत-पूजन विधान 17 अक्टूबर तक चलेंगे और 18 अक्टूबर की दोपहर पूर्णाहुति व पारन होगा।
वाराणसी [प्रमोद यादव] । शक्ति की अधिष्ठात्री भगवती मां दुर्गा की उपासना- आराधना का महापर्व शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल मास की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाया जाता है। नवरात्र आरंभ अमावस्या युक्त प्रतिपदा में वर्जित और द्वितीया युक्त प्रतिपदा में शुभ है। इस लिहाज से शारदीय नवरात्र दस अक्टूबर (आश्विन शुक्ल प्रतिपदा) से शुरू हो रहा है। व्रत-पूजन विधान 17 अक्टूबर यानी महानवमी तक चलेंगे और 18 अक्टूबर की दोपहर में पूर्णाहुति व पारन किया जाएगा। ऐसे में इस बार भी शारदीय नवरात्र संपूर्ण नौ दिनों का होगा।
ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार 16 अक्टूबर को निशिथ काल में महानिशा पूजा के तहत बलि इत्यादि के विधान किए जाएंगे। हालांकि 17 अक्टूबर को दोपहर 12.27 बजे तक ही अष्टमी है और उसके बाद नवमी लग जाएगी। इस तिथि संधि के कारण महाअष्टमी व महा नवमी व्रत का दर्शन-पूजन 17 अक्टूबर को ही किया जाएगा। इसी दिन 12.27 बजे के बाद चंदा देवी का पूजन, बलिदान आदि के साथ ही नवरात्र का होम इत्यादि भी किया जाएगा। नवरात्र व्रत का पारन 18 अक्टूबर को दोपहर 2.32 बजे के बाद कर लिया जाएगा और प्रतिमा विसर्जन भी किया जाएगा।
नौका पर आगमन, कंधे पर विदाई : माता का आगमन इस बार नौका पर हो रहा है। इसका फल सर्व कल्याणकारी होता है। वहीं गमन मानव कंधा पर हो रहा है, जिसका फल अत्यंत लाभकारी एवं सुख दायक होता है। इस लिहाज से माता का आगमन व गमन दोनों सुखद है।
कलश स्थापन 11.37 से 12.23 बजे तक श्रेयस्कर : शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात 10 अक्टूबर को कलश स्थापन व ध्वजारोपण के लिए शुभ समय अभिजीत मुहूर्त दिन में 11.37 से 12.23 बजे तक किया जा सकेगा। शास्त्र अनुसार 'चित्रावय धृतियोगे निषेधानुरोधेन अभिजिन्न मुहूर्त:' अर्थात् चित्रा व वैद्धृति का योग प्रात:काल में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को बन रहा हो तो अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापन करना चाहिए। महानिशा पूजा 16 अक्टूबर को निशिथ काल में बलि इत्यादि के विधान पूरे किए जाएंगे।
महाष्टमी का पारन सुबह, नवरात्र का दोपहर बाद : महाष्टमी व्रत का पारन 18 अक्टूबर को प्रात:काल में होगा। नवरात्र व्रत का पारन दशमी में अर्थात 18 अक्टूबर को 2.32 बजे के बाद किया जाएगा।
दर्शन पूजन विधान
विजयादशमी को लेकर मत भिन्नता
18 के लिए शास्त्रीय प्रमाण : ''दशमी में सायंकाल श्रवण के योग से विजयादशमी होती है। धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि 'श्रवण योगे गौण मुख्ययो भयकालव्यापिनी'। इसका अनुसरण करें तो विजयादशमी 18 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। देखा जाए तो 18 अक्टूबर को दिन में 2.32 बजे के बाद दशमी तिथि लग रही है जो 19 अक्टूबर को शाम 4.32 बजे तक ही है। श्रवण नक्षत्र 17 अक्टूबर को रात 10.04 बजे लग जा रहा है जो 18-19 की मध्य रात्रि 12.42 तक रहेगा। अत: 18 अक्टूबर को विजयादशमी मनाई जाएगी।'' -पं. ऋषि द्विवेदी, ख्यात ज्योतिषाचार्य
''विजयादशमी अपराह्न व्यापिनी ग्राह्य होती है। यह 18 अक्टूबर को अपराह्न में श्रवण नक्षत्र के साथ योग कर रही है। अत: विजया दशमी 18 को धर्मशास्त्र अनुसार मनाई जाएगी। धर्मशास्त्र का कथन है कि अपराह्न काल में दशमी व श्रवण नक्षत्र का योग हो तो विजया नामक दशमी हो जाती है। ये दोनों योग 18 को एक साथ मिल रहे हैं।'' - पं. कामेश्वर उपाध्याय, ख्यात ज्योतिषाचार्य व महासचिव अखिल भारतीय विद्वत परिषद
19 के पक्ष में तर्क : ''जन्माष्टमी में बुधवार व रोहिणी नहीं मिलती। शास्त्र वचन अनुसार आकाशीय स्थिति का नियंत्रण धर्म शास्त्र होता है। आकाशीय स्थिति में फेरबदल होता रहा है, अत: इसका निर्णय धर्म शास्त्र करता है। दान उत्सव पर्व में उदया तिथि मानना चाहिए, इसे मानते हुए विजयादशमी 19 अक्टूबर को मनाई जाएगी। तर्क यह भी कि अखाड़ों का ध्वजा पूजन प्रात: होता है, ऐसे में श्रवण नक्षत्र भले 18 को मिल रहा हो लेकिन उदया में विजयादशमी 19 को ही मिल रही है। ऐसे में इसी दिन पर्व मनाया जाएगा।'' - पं. रामनारायण द्विवेदी, मंत्री काशी विद्वत परिषद।
''निर्णय सिंधु व धर्म सिंधु अनुसार श्रवण नक्षत्र विजयादशमी के दिन प्रशस्त माना गया है। इसमें ही सीमोल्लंघन, शस्त्र पूजन व नीलकंठ दर्शन किया जाता है जो 18 अक्टूबर को मिल रहा है। इससे इतर नवरात्र प्रदीप के अनुसार उदयकालीन दशमी में 11 मुहूर्त तक विजयादशमी हो तो इस दिन ही विजयदशमी पर्व मनाया जाना चाहिए। यह तिथि 19 अक्टूबर को पड़ रही है। इस पर ही प्रो. रामचंद्र पाठक, प्रो. चंद्रमा पांडेय व प्रो. विनय पांडेय की भी सहमति है।'' - प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय, ख्यात ज्योतिषाचार्य।