वर्ष 1966 से जामवंत की भूमिका निभा रहे हैं रामनगर के रमेश पांडेय, अब तो जामवंत गुरु नाम ही पड़ गया

कलियुग में त्रेता देखना हो तो रामनगर आइए।

By Edited By: Publish:Tue, 01 Oct 2019 02:29 AM (IST) Updated:Tue, 01 Oct 2019 02:30 AM (IST)
वर्ष 1966 से जामवंत की भूमिका निभा रहे हैं रामनगर के रमेश पांडेय, अब तो जामवंत गुरु नाम ही पड़ गया
वर्ष 1966 से जामवंत की भूमिका निभा रहे हैं रामनगर के रमेश पांडेय, अब तो जामवंत गुरु नाम ही पड़ गया

वाराणसी, जेएनएन। कलियुग में त्रेतायुग को महसूस करना हो तो रामनगर आइए। घोर भौतिकता के दौर में भी प्रभु के प्रति समर्पण देख जाइए। विश्व प्रसिद्ध रामलीला में वर्षो से भूमिका निभाते-निभाते न कुछ पाने की चाहत रही और न ही कुछ बनने की इच्छा। उनके लिए प्रभु श्रीराम की सेवा ही जीवन का उद्देश्य हो गया। कुछ ऐसा ही है 1966 से जामवंत की भूमिका निभा रहे रमेश पांडेय के साथ। इन 53 वर्षो में अब नाम और पहचान जामवंत गुरु ही हो गया। रामलीला के दिन नजदीक आने के साथ 70 साल पूरे कर चुके रमेश पांडेय का उत्साह उफान पर आ जाता है।

कहते हैं कि यह सब भगवद् कृपा ही है जो दो बार पैरालिसिस (लकवा) के बाद भी जिंदा हूं। वर्ष 1966 में व्यास पं. लक्ष्मी नारायण की कृपा से रामलीला में पात्र बनने का मौका पहली बार मिला जो अनवरत जारी है। रमेश पांडेय व्यास लक्ष्मीनारायण को ही गुरु मानते हैं, कहते हैं उनकी कृपा से ही भगवान की सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ। खास यह कि जामवंत गुरु रामलीला के पहले दिन कुंभकर्ण की भूमिका के अलावा सूपर्णखा की भी भूमिका निभाते हैं। इसके बाद जब जामवंत की भूमिका में आते हैं तो पूरी रामलीला तक इसी भूमिका को निभाते हैं।

एक बार नहीं निभाई भूमिका तो मलाल बातों बातों मे ही एक समय वह पल भी आया जब वे भावुक हो गए। काफी कुरेदने पर कहा कि 1972 में किसी कार्य से मध्य प्रदेश जाना पड़ा। भगवान की सेवा का एक अवसर गंवाना पड़ा। उसे याद कर आज भी जामवंत गुरु भावुक हो जाते हैं और आंखें डबडबा जाती हैैं। इसके बाद से चाहे जितना भी जरुरी काम क्यों न हो, कभी रामलीला छोड़ कर नहीं जाते हैं।

chat bot
आपका साथी