Lockdown in varanasi : यह पटरी घर तक जाती है, रेलवे स्टेशन पहुंचने पर मालूम हो रही गंतव्य तक की दूरी
यह पटरी घर तक जाती है रेलवे स्टेशन पहुंचने पर मालूम हो रही गंतव्य तक की असली दूरी।
वाराणसी, जेएनएन। घर-गांव छोड़ सौ-दो सौ तो कोई हजार किमी दूर परदेस पहुंच मजदूरी, किसी कंपनी-मिल में नौकरी कर रहा था। इस बीच अचानक कोरोना वायरस उनके लिए मुसीबत बन गया। सरकार की बंदिशों के चलते हाल-रोजगार के साथ ही परदेस का आशियाना भी छोडऩा पड़ा। अब करें तो क्या फिर एक ही रास्ता बचा घर वापसी का। ट्रेनें, बसें व अन्य साधन भी बंद हो गए। सड़कों पर नाकाबंदी के चलते रेल की पटरियों का सहारा लिया इस आस से कि एक न एक दिन तो घर पहुंच ही जाएंगे। इस सफर में भी भूख-प्यास ने तड़पाया। पैरों में छाले तक पड़ गए। एक कदम भी बढ़ाना पोर-पोर में दर्द पैदा करने लगा लेकिन कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं। ऐसे में पटरियां पकड़ चलते जाना ही मकसद हो गया है। ये दास्तां उन मजदूरों व लोगों की है जो देशव्यापी लॉकडाउन के बाद अपने घरों के सफर पर निकले है। रास्ते में कोई रेलवे स्टेशन आया तो तय की गई दूरी का भान होता है। रास्ते की दुश्वारियों का जिक्र आने पर आंखें नम हो जाती हैैं तो गला भी भरने लगता है।
रेलवे स्टेशन पर लगे नल की टोटी और हैंडपंप उनका सहारा है। वे पानी से प्यास और भूख दोनों मिटा रहे हैं। तमाम लोग दो दिन से भूखे हैं। कोरोना के डर से कोई मदद भी नहीं कर रहा। चलने लायक नहीं हैं फिर भी रुक-रुककर चलते हैं। वे कब घर पहुंचेंगे मालूम नहीं।
दिल्ली, कानपुर, चंडीगढ़, लुधियाना, मेरठ, नोयडा, गाजियाबाद समेत कई शहरों से लोग सड़क पकड़कर घर को निकले तो रास्ते में पुलिस ने रोकना शुरू कर दिया। सड़कें बदली लेकिन उधर भी पुलिसिया रोक-टोक का सामना करना पड़ा। कई जगह तो ग्रामीणों ने भी रोका। जौनपुर-बाबतपुर के बीच जगदीशपुर रेलवे क्रासिंग के पास मिले थककर चूर मजदूर बोलने की स्थिति में नहीं थे। बोलते-बोलते आंखों में आंसू आ गए। बिहार के रोहतास निवासी धन्नु कुमार व सुनील कुमार का कहना है कि पंजाब के मंडी (गोविंदगढ़) में मैकेनिकल काम करते हैं। कंपनी ने पैसा और राशन देना बंद कर दिया तो 40 घंटे लगातार बाइक से करीब 1000 किलोमीटर की दूरी तय कर यहां पहुंचे हैैं। कहीं रेलवे लाइन का किनारे तो कहीं गांव की पगडंडी का सहारा लिया गया।
तीन दिन में दिल्ली से पहुंचे दानगंज
आजमगढ़ के लालगंज निवासी शीतला प्रसाद ने दानगंज में बताया कि दिल्ली में एक ग्लास कंपनी में काम करता था। साधन नहीं मिलने पर पैदल ही चल दिए। रास्ते में मालवाहक व ट्रक पकड़कर यहां तक पहुंचा हूं। बात के दौरान उनका गला भर आया। कहा, तीन दिन में दो बार भोजन मिला, वह भी पेट नहीं भरा। वहीं पास में खड़े लालगंज के ही बालकिशुन, कृष्णा व राजेश ने बताया कि हम लोग पड़ाव पर एक कंपनी में काम करते थे। राशन और पैसा दोनों नहीं मिलने पर पैदल ही घर को चल दिए। गाजीपुर के अजित चौहान भोजूबीर में किराए के मकान में रहकर बी फार्मा करते हैं। सारनाथ स्थित शक्तिपीठ आश्रम के पास उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के चलते रेलवे लाइन पकड़कर पैदल ही घर को चल दिए हैैं। यहीं पर सादात के राहुल ने बताया कि मेस बंद होने पर खाने को कुछ नहीं मिल रहा था, ऐसे में घर जाना ही विकल्प था।