नवनियुक्त कुलपति प्राच्य विद्या को तकनीकी से जोड़ेंगे

वाराणसी : काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. राजाराम शुक्ल ने गुरुवार को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वकवद्यालय के कुलपति का कार्यभार गहण किया।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 24 May 2018 12:41 PM (IST) Updated:Thu, 24 May 2018 12:41 PM (IST)
नवनियुक्त कुलपति प्राच्य विद्या को तकनीकी से जोड़ेंगे
नवनियुक्त कुलपति प्राच्य विद्या को तकनीकी से जोड़ेंगे

वाराणसी : काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. राजाराम शुक्ल ने गुरुवार को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति पद का कार्यभार ग्रहण किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि प्राच्य विद्या प्राचीन काल से ही समृद्ध है। संस्कृत को तकनीकी व अंग्रेजी से जोड़ने की जरूरत है। इस दिशा में प्रयास किया जाएगा ताकि विद्यार्थियों को रोजगार से जोड़ा जा सके ।

उन्होंने कहा कि कुछ नए पाठ्यक्रम भी शुरु किए जाएंगे । फिलहाल पहली प्राथमिकता विश्वविद्यालय में पाठन-पाठन का माहौल और बेहतर व अनुशासन बनाना है। शिक्षकों व कर्मचारियों के सहयोग से प्राच्य विद्या को विश्व फलक पर पहुंचाने का प्रयास होगा । विश्वविद्यालय दुनिया की प्राचीनतम प्राच्य विद्या का केंद्र है । ऐसे में संस्था को केंद्रीय दर्जा दिलाने का प्रयास नए सिरे से किया जाएगा ।

प्रो शुक्ल बाबा विश्वनाथ का दर्शन पूजन करने के बाद सुबह करीब 10.50 बजे विश्वविद्यालय पहुंचे। सबसे पहले उन्होंने परिसर स्थित वाग्देवी मंदिर में दर्शन पूजन किया । मा सरस्वती देवी, डा संपूर्णानंद की मूर्ति पर माल्यापर्ण कर नमन किया । सुबह 11.10 बजे केंद्रीय कार्यालय में निर्वतमान कुलपति प्रो यदुनाथ दुबे से कुलपति पद का कार्यभार लिया । इस दौरान अध्यापकों, छात्रों व कर्मचारियों ने हर हर महादेव का नारा लगा कर स्वागत किया।

निवर्तमान कुलपति प्रो. यदुनाथ दुबे का तीन वर्ष का कार्यकाल पहली फरवरी को समाप्त हो गया था। नए कुलपति की नियुक्त न हो पाने के कारण राजभवन ने प्रो. दुबे का कार्यकाल तीन माह के लिए बढ़ा दिया। इसके बाद राजभवन ने प्रो. दुबे को तीन माह या नियमित कुलपति की नियुक्ति होने तक जो भी पहले हो तक के लिए विस्तार दे दिया था। हालाकि बीच में ही राजभवन ने नए कुलपति का आदेश जारी कर दिया।

प्रो. शुक्ल ने प्रारंभिक शिक्षा रामनगर से ही ग्रहण की थी। उच्च शिक्षा संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से हासिल की। वर्ष 1985 में शास्त्री, वर्ष 1988 से आचार्य व वर्ष 1993 में उन्होंने विश्वविद्यालय से पीएचडी की। कॅरियर की शुरुआत भी उन्होंने संस्कृत विश्वविद्यालय से की। वर्ष 1991 में नव्य व्याकरण में बतौर प्राध्यापक नियुक्त हुए। वर्ष 2001 में अनुसंधान निदेशक बने। वहीं वर्ष 2009 में प्रोफेसर पद पर नियुक्त होने के बाद उन्होंने संस्कृत विश्वविद्यालय छोड़कर काशी ¨हदू विश्वविद्यालय ज्वाइन कर लिया।

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