नजीर की जिद ने भोजपुरी को दिया बड़े पर्दे का मंच, पहली फिल्म ने सिनेमाघरों में गाड़े सफलता के झंडे

लहुरी काशी यानी गाजीपुर जिले में पैदा होने वाले नजीर हुसैन ने फिल्म दो बीघा जमीन की शूटिंग के दौरान बिमल राय से इस भोजपुरी फिल्म के निर्माण की चर्चा की थी। उन्होंने इस फिल्म की पटकथा लिखी थी। बिमल राय को कहानी बहुत पसंद आई।

By Abhishek sharmaEdited By: Publish:Sun, 21 Feb 2021 11:15 AM (IST) Updated:Sun, 21 Feb 2021 11:15 AM (IST)
नजीर की जिद ने भोजपुरी को दिया बड़े पर्दे का मंच, पहली फिल्म ने सिनेमाघरों में गाड़े सफलता के झंडे
दो बीघा जमीन की शूटिंग के दौरान बिमल राय से इस भोजपुरी फिल्म के निर्माण की चर्चा की थी।

वाराणसी, जेएनएन। भोजपुरी की पहली फिल्म गंगा मइया तोहें पियरी चढ़इबो नजीर हुसैन के जज्बे और जुनून का परिणाम है। उनके जिद से ही भोजपुरी को बड़े पर्दे का मंच मिला। लहुरी काशी यानी गाजीपुर जिले में पैदा होने वाले नजीर हुसैन ने फिल्म दो बीघा जमीन की शूटिंग के दौरान बिमल राय से इस भोजपुरी फिल्म के निर्माण की चर्चा की थी। उन्होंने इस फिल्म की पटकथा लिखी थी। बिमल राय को कहानी बहुत पसंद आई। वह इस फिल्म को हिंदी में बनाना चाहते थे लेकिन नजीर हुसैन इसे भोजपुरी में बनाना चाहते थे। उन्होंने राय से कोई रायसुमारी नहीं की। देर से ही सही उन्होंने इस फिल्म को भोजपुरी में बनाया। सबसे पहले यह फिल्म 22 फरवरी 1962 में पटना के वीणा सिनेमा हाल में रिलीज हुई। इसके बाद यह बनारस के प्रकाश टाकीज में लगी। उस दौर में इस फिल्म को देखना एक धार्मिक आयोजन जैसा हो गया था।

काशी जाइए, गंगा-विश्वनाथ कीजिए तब हे गंगा मइया देखिए

बनारस के पड़ोसी जिलों से लोग बैलगाडिय़ों पर सवार होकर सिनेमा देखने परिवार संग पहुंचते थे। फिल्म देखने के लिए जब लोग उस दौर में घर से निकलते थे तब मानो लगता था कि परिवार संग कहीं तीर्थ पर जा रहे हो। उस समय कहा जाता था कि काशी जाइए, गंगा-विश्वनाथ कीजिए तब हे गंगा मइया देखिए। उसके बाद ही काशी यात्रा पूरी मानी जाती थी। उस दौर में इस फिल्म को देखना एक धार्मिक अनुष्ठान जैसा था।

फिल्म ने गाड़े हर तरफ सफलता के झंडे

आजकल की भोजपुरी फिल्मों के विपरीत यह फिल्म साफ-सुथरी, पारिवारिक और भाव प्रधान फिल्म थी। यही कारण था कि फिल्म रिलीज होने के बाद ही हर ओर व्यावसायिक सफलता के झंडे गडऩे शुरु हो गए। इसका गवाही टिकट के लिए सिनेमाघरों की खिड़कियों पर होने वाली भीड़ देती थी। लोगों में फिल्म के प्रति इतना क्रेज था कि यदि पहले दिन टिकट नहीं मिला तो वह सिनेमाघर के बाहर रात बिताकर अगले दिन फिल्म देखकर ही घर वापस लौटते था।

chat bot
आपका साथी