मनमुटाव की दीवार खड़ी कर रही महंगाई, किचन, मोबाइल, डीजल-पेट्रोल एवं महंगी दवा ने दूर किया निवाला

महंगाई का जबरदस्त असर रसोईं पर पड़ा है। आटा तेल चावल लहसुन प्याज दाल मेवा मसाला रिफाइंड एलपीजी इत्यादि पर एक साथ चढ़ी महंगाई ने रसोईं को करीब 40 फीसद महंगा कर दिया है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Tue, 03 Dec 2019 11:43 AM (IST) Updated:Tue, 03 Dec 2019 11:43 AM (IST)
मनमुटाव की दीवार खड़ी कर रही महंगाई, किचन, मोबाइल, डीजल-पेट्रोल एवं महंगी दवा ने दूर किया निवाला
मनमुटाव की दीवार खड़ी कर रही महंगाई, किचन, मोबाइल, डीजल-पेट्रोल एवं महंगी दवा ने दूर किया निवाला

वाराणसी [राकेश श्रीवास्तव]। 55 वर्षीय शर्मा जी के लिए महंगाई डायन बनकर सामने खड़ी है। उनकी 20 हजार रुपये की सैलरी खाते में आने के साथ ही छू मंतर हो जा रही। खर्च में हद दर्जे की कटौती के बावजूद महीना पूरा होने से पूर्व ही 'गृहस्थी की गाड़ी तेल खत्म हो जा रहा। उनकी पत्नी कुशल गृहणी हैं, लेकिन किचन के बढ़ते बजट को रोक नहीं पा रहीं। शर्मा जी बेटे की पाकेट मनी, खुद के खर्च में कटौती करते पत्नी की डिमांड पूरी करते गए। महंगाई की दुश्वारियां अब परिवार में मनमुटाव की दीवार खड़ी करने की राह पर बढ़ चली हैं। हालात से हारने के कारण शर्मा परिवार में मनमुटाव बढ़ रहा। सारे जतन के बावजूद किचन की जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहे शर्मा जी पत्नी को डॉ. तारा प्रसाद जोशी की कविता सुना रहे, मेरे वेतन ऐसे रानी, जैसे गरम तवे पर पानी ...।

रसोई हुई 40 फीसद महंगी

महंगाई का जबरदस्त असर रसोईं पर पड़ा है। आटा, तेल, चावल, लहसुन, प्याज, दाल, मेवा मसाला, रिफाइंड, एलपीजी इत्यादि पर एक साथ चढ़ी महंगाई ने रसोईं को करीब 40 फीसद महंगा कर दिया है। हालात ऐसी की गृहणियों की किचन चलाने में कुशलता भी नाकाफी साबित हो रही है।

टूट के कगार पर मध्यमवर्गीय परिवार

हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद गृहस्थी चलाने में परेशानी परिवार को टूट की ओर ले जा रही है। आशंकाओं में घिरे लोग अपना चूल्हा, बर्तन अलग करने से गुरेज नहीं कर रहे। हालांकि, खुद का महंगाई से सामना होने पर कमाई की चूलें हिल जा रही हैं। असल में घर चलाने में बढ़ते खर्च के कारण बच्चों के पाकेट मनी में कटौती, किचन चलाने को बजट नहीं मिल पाने से विवाद खड़ा हो रहा। ऐसे में पति, पत्नी एवं बच्चे एक दूसरे पर सवाल उठाने से नहीं चूक रहे।

यूं किचन हुआ महंगा

सामान   पुराना रेट   नया रेट

आटा    25         29 रुपये किलो

चावल   35         42 रुपये किलो  

नमक   18          20 रुपये पैकेट  रिफाइंड  88         92 रुपये लीटर

एलपीजी 664       754 रुपये          

मेवा मसाला

छुहारा    160    260 रुपये किलो

काजू     550    600 रुपये किलो

बादाम    680    680 रुपये किलो

दलहन में नरमी

अरहर      86/88   80/82 रुपये किलो

चना दाल   56/58  55/57 रुपये किलो

मूंग दाल     88/90   84/86 रुपये किलो

मंसूर दाल    53/54   52/53 रुपये किलो

मटर दाल     57/58   53/55 रुपये किलो

ऊरद दाल     100     90/95 रुपये किलो

यूं 20 हजार की कमाई चट कर जा रही महंगाई ...

मद                 खर्च रुपये

मकान किराया       6000

बिजली बिल         1500

स्कूल फीस           2000

स्कूल गाड़ी           1200

ट्यूशन फीस          1000

मोबाइल रिचार्ज       300

दूध                   1680

राशन                  3000

सब्जी                  2000

दवा खर्च               1000

(हम दो-हमारे दो के आदर्श परिवार को सामान्य जीवन जीने में खर्च हो रहे 20 हजार रुपये।)

प्याज एवं लहसुन से सरकार भी हारी

प्याज एवं लहसुन की महंगाई के सामने सरकार भी लाचार पड़ गई है। प्याज 90 तो लहुसन 250 रुपये किलो बाजार में बिक रहा है। बाजार में इनके दाम सुनकर ही लोग जेब झांकने लग जा रहे हैं। चूंकि, दोनों के बगैर किचन अधूरा समझा जाता है, लिहाजा लोगों ने जरूरत से कम ही सही लेकिन खरीदारी करने से खुद को रोक नहीं पाए। गृहणियां ज्यादा परेशान हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि गृहस्थी की गाड़ी आखिर खिंचेगी भी तो कैसे।

पेट्रोल में भी लगी आग, 1.67 रुपये महंगा

यूं तो महंगाई के कई कारण हैं। लेकिन इसमें डीजल - पेट्रोल मूल्य वृद्धि के अहम रोल से इन्कार भी नहीं किया जा सकता। यह महंगाई के जबड़े को मजबूत कर रही है। पेट्रोल पंप पहुंचे बाइकर्स, कार चालकों को रोजाना ही मूल्यवृद्धि का सामाना करना पड़ रहा है। सिर्फ नवंबर माह में पेट्रोल 1.67 रुपये महंगा हुआ है।

महंगाई ने छीन लिया कुशल गृहणी का तमगा

गृहणी बिंदू देवी ने कहा कि महंगाई ने छीन लिया कुशल गृहणी का तमगा। ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब तीन हजार के बजट में छह लोगों की  रसोईं आराम से चलती थी। अब तो 4500 रुपये भी कम पड़ रहे। गृहणी शोभा गुप्ता ने कहा कि रसोई के बजट से बचत भी कर लेती थी। गाढ़े वक्त में काम आता था। अब तो दिनों दिन मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। प्रत्येक महीने रसोई चलाने का बजट कम पड़ जाता है। 

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