IMS-BHU के सर सुंदर लाल अस्पताल में अब प्लाज्मा थेरेपी की राह में केमिल्युमीनीसेंस मशीन बनी बाधक

आइएमएस-बीएचयू अस्पताल का ब्लड बैंक में कन्वालीसेंट प्लाज्मा थेरेपी को तैयार है लेकिन केमिल्युमीनीसेंस मशीन की कमी इसमें बाधक बन गई है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Thu, 09 Jul 2020 08:34 PM (IST) Updated:Fri, 10 Jul 2020 02:37 AM (IST)
IMS-BHU के सर सुंदर लाल अस्पताल में अब प्लाज्मा थेरेपी की राह में केमिल्युमीनीसेंस मशीन बनी बाधक
IMS-BHU के सर सुंदर लाल अस्पताल में अब प्लाज्मा थेरेपी की राह में केमिल्युमीनीसेंस मशीन बनी बाधक

वाराणसी, जेएनएन। आइएमएस-बीएचयू स्थित सर सुंदर लाल अस्पताल का ब्लड बैंक जिलाधिकारी की घोषणा के बाद कन्वालीसेंट प्लाज्मा थेरेपी को तैयार है। हालांकि, अब केमिल्युमीनीसेंस मशीन की कमी इसमें बाधक बन गई है। कोरोना निगेटिव हो चुके लोगों के शरीर में एंटीबॉडी काउंट जानने को केमिल्युमीनीसेंस मशीन ब्लड बैंक में उपलब्ध नहीं हो पाई है। इसलिए थेरेपी शुरू होने में अभी कुछ वक्त और लग सकता है।

कोरोना के खिलाफ लड़ाई में एंटीबॉडी का अहम रोल है। ब्लड बैंक में डोनर के शरीर से प्लाज्मा निकालने के लिए तीन एफेरेसिस मशीनें हैं। एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए लखनऊ या दिल्ली से किट मंगाई जाएगी। एंटीबॉडी काउंट यानी शरीर में एंटीबॉडी की संख्या का पता लगाने में इस्तेमाल की जाने वाली केमिल्युमीनीसेंस मशीन को किराए पर लिया जाएगा। टेक्निकल बिड हो चुकी है, फाइनेंशियल बिड की प्रक्रिया भी जल्द पूरी होगी। यह मशीन आते ही कन्वालीसेंट प्लाज्मा थेरेपी शुरू कर दी जाएगी।

दरअसल, आइएमएस-बीएचयू का सर सुंदरलाल अस्पताल लेवल-थ्री हॉस्पिटल है, जहां बनारस ही नहीं पूर्वांचल के कई जिलों के को-मॉर्बिटिक (कोरोना के साथ अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रसित) मरीजों का इलाज किया जा रहा है। ऐसे में अब यहां पूर्वांचल का पहला प्लाज्मा बैंक शुरू होने पर कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके मरीजों के प्लाज्मा का उपयोग यहां भर्ती गंभीर मरीजों के इलाज में हो सकेगा।

बीएचयू अस्पताल ब्लड बैंक के सीएमओ डा. एसके सिंह ने बताया कि गाइडलाइन के मुताबिक स्वस्थ मरीजों से प्लाज्मा दान के लिए संपर्क करेंगे। इसमें सामान्य ब्लड डोनर वाले नियम ही लागू होंगे। मसलन, वजन 55 किलो से कम नहीं होना चाहिए। उम्र 18 से 60 के बीच हो, कोई बीमारी न हो। हेपेटाइटिस ए-बी, मलेरिया, सिफलिस, एचआइवी की जांच करने के बाद शरीर में एंटीबॉडी व उसकी मात्रा का पता लगाया जाता है। डोनर से सीरम लेने के बाद टेस्ट होता है कि उसकी न्यूट्रीलाइजिंग एंटीबॉडी कोरोना वायरस के खिलाफ कितनी प्रभावी है। फिर मरीज की स्थिति के अध्ययन के बाद ही विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में इस कार्य को अंजाम दिया जाता है।

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