कैलास की जड़ी बूटियों से काशी में इलाज, तिब्बती संस्थान में 47 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा अस्पताल

देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में कैलास पर्वत की जड़ी-बूटियों से इलाज होगा।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Tue, 07 Jan 2020 12:29 PM (IST) Updated:Tue, 07 Jan 2020 10:22 PM (IST)
कैलास की जड़ी बूटियों से काशी में इलाज, तिब्बती संस्थान में 47 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा अस्पताल
कैलास की जड़ी बूटियों से काशी में इलाज, तिब्बती संस्थान में 47 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा अस्पताल

वाराणसी, जेएनएन। देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में कैलास पर्वत की जड़ी-बूटियों से इलाज होगा। इसके लिए सारनाथ स्थित केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान में 60 शैय्या का सोवा रिग्पा अस्पताल व मेडिकल कालेज स्थापित किया जा रहा है। इसके लिए भवन निर्माण शुरू किया जा चुका है जो ढाई वर्ष में बन कर तैयार हो जाएगा। इसके साथ ही इस प्राचीन तिब्बती चिकित्सा विधा की पढ़ाई तो होगी ही इलाज-जांच व भर्ती भी शुरू कर दी जाएगी। 

तीन साल पहले भेजा गया प्रस्ताव 

संस्थान ने लगभग तीन साल पहले सोवा रिग्पा अस्पताल के लिए नई दिल्ली स्थित सांस्कृतिक मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा था। इसके लिए 47 करोड़ रुपये स्वीकृत करने के साथ ही निर्माण की जिम्मेदारी राष्ट्रीय भवन निगम को दी गई। प्रथम किस्त के तौर पर वर्ष 2018-19 में ही 10 करोड़ रुपये भी जारी कर दी गई थी। 

चल रही पढ़ाई लिखाई 

संस्थान में फिलहाल बीएसआरएमएस, एमडी व एमएस के पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैैं। प्राचीन चिकित्सा विधा पर शोध कार्य भी किया जा रहा है। अस्पताल शुरू हो जाने से इसे और गति मिल सकेगी।  

 

गंभीर रोगों का इलाज 

सोवा रिग्पा के जरिए रक्तचाप, मधुमेह, गठिया, साइटिका, उदर रोग, हृदय रोग, मानसिक व मनोशारीरिक रोग के साथ ही कैंसर जैसी बीमारी का समुचित इलाज संभव है। 

अरुणाचल में हर्बल प्लांट

केंद्र के लिए दवा की व्यवस्था के लिहाज से अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हिमालय औषधीय पौधों के लिए लगभग छह एकड़ क्षेत्रफल में हर्बल गार्डेन बना रखा है। इसमें औषधीय पौधों की खेती की जाती है। पौधे संस्थान में ले आकर दवाइएं बनाई जाती हैैं। समुद्र तल से 15 हजार ऊंचाई पर स्थित गार्डेन में चिकित्सा शिक्षा ले रहे छात्रों को ले जाकर औषधीय पौधों की पहचान व उपयोगिता के बारे में बताया जाता है। 

स्वास्थ्य विज्ञान  

केंद्रीय तिब्बती शिक्षण संस्थान में सोवा रिग्पा केंद्र के प्रभारी डा. ताशी दावा के अनुसार सोवा रिग्पा तिब्बती भोट भाषा का शब्द है। इसमें सोवा का अर्थ स्वास्थ्य व रिग्पा का अर्थ विज्ञान हैं। यह एक तिब्बती चिकित्सा पद्धति हैं। इसकी मूल पुस्तक 'ग्यूड बजी' के लिए कहा जाता है कि इसे खुद गौतम बुद्ध ने पढ़ाया था। इसी वजह से यह बौद्ध दर्शन के भी निकट है। 

भारतीय अमूर्त सांस्कृतिक विरासत 

प्राचीन चिकित्सा पद्धति सोवा-रिग्पा को अपनी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत बताते हुए भारत ने पिछले साल यूनेस्को में इस पर दावा जताया है। सोवा-रिग्पा को तिब्बती परंपरा की चिकित्सा माना जाता है। भारत में हिमालय के निकट रहने वाले समुदायों में यह लोकप्रिय है। सिक्किम, अरुणांचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग, लद्दाख व हिमाचल प्रदेश में यह सदियों से उपयोग में आती रही है। केंद्र सरकार लद्दाख में इस तरह का केंद्र स्थापित करने जा रहा है। 

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