'रत्न भस्म' महज नपुंसकता ही नहीं बल्कि शरीर की तमाम अन्य गंभीर बीमारियों को भी दूर करने में सक्षम
रत्नों का प्रयोग सदियों से ज्योतिष में होता रहा है ज्योतिष में मुख्य रूप से नौ रत्नों का विशेष उपयोग किया जाता है।
वाराणसी [वंदना सिंह]। रत्नों का प्रयोग सदियों से ज्योतिष में होता रहा है। ज्योतिष में मुख्य रूप से नौ रत्नों का विशेष उपयोग किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं इनसे औषधियां भी बनाई जाती हैं और इससे गंभीर रोगों का इलाज किया जाता है। इन रत्नों के भस्म से नपुंसकता, हृदय रोग, रक्तचाप, क्षय रोग सहित कई बीमारियों में लाभ मिलता है। इस संबंध में बता रही हैं राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय वाराणसी की प्रवक्ता डा. टीना सिंघल।
हीरा भस्म
हीरा भस्म नपुंसकता की अद्वितीय औषधि है। इसमें हीरा भस्म रस, सिन्दूर, मकरध्वज मिलाकर मलाई के साथ कुछ दिनों तक सेवन करने से नपुंसकता नष्ट होती है। हीरा भस्म के सेवन से शरीर सुंदरता, तीव्र पाचन-शक्ति, अतुल बल और प्रखर बुद्धि की प्राप्ति होती है। हृदय की दुर्बलता एवं रक्तचाप वृद्धि रोग में भी लाभकर है। कैंसर में भी यह उपयोगी है।
माणिक्य भस्म
इसका भस्म पिष्टी नपुंसकता, धातु-क्षीणता, हृदय रोग, वात-पित्त-विकार, क्षय रोग दूर कर शरीर को मजबूत बनाता है। बल-वीर्य और बुद्धि-वृद्धि करता है। वात, पित्त और कफ दोष दूर करता है।
मुक्ता भस्म
अनिद्रा रोग में मोती भस्म से लाभ होता है। चक्कर, विचार-शक्ति कम हो जाना, स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाना, किसी की बात अच्छी न लगना, बोलने में कठोरता आ जाना, अनिद्रा, दिमाग में गर्मी बढ़ जाना आदि लक्षण होने पर मुक्ता पिष्टी उपयोगी है। पित्तशामक भी है।
नीलम भस्म
श्वास रोग में बलगम (कफ) ज्यादा निकलता है और खांसी भी होती है। इस रोग में नीलम भस्म को सितोपलादि चूर्ण को मधु में मिलाकर देने से कफ का बनना बंद होकर खांसी कम हो जाती है। वात, पित्त, कफ को भी नष्ट करता है। मलेरिया होने पर नीलम भस्म, तुलसी पत्ती के रस के साथ दिन में तीन बार लेने से लाभ होता है।
प्रवाल भस्म
वीर्यवर्धक, कान्तिजनक, क्षय नाशक, रक्त-पित्त को दूर करने वाला खांसी को नष्ट करने वाला, पाण्डुरोग, नेत्र रोगों को दूर करता है। हृदय की कमजोरी मिटाकर रक्तचाप का शमन, तीव्र बुद्धि बढ़ाने वाला है। पित्तनाशक वमन आदि विकारों को दूर करता है।
पुखराज भस्म
पुखराज भस्म विष-विकार, वमन, कफ, वात, मन्दाग्नि, दाह, कुष्ठ और बवासीर को दूर करती है। जठराग्नि-दीपक, बुढ़ापा को दूर करने वाली, बुद्धिवर्धक, कीटाणुनाशक है। जलन और रक्त-पित्त विकार को दूर करती है। आमाशय, हृदय और मस्तिष्क के लिए बलदायक है। इसकी भस्म दिल की तेज धड़कन जैसे रोग में लाभकारी है।
मरकत भस्म
हृदय की गति को बल देने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। स्मरण-शक्ति और आयु की वृद्धि होती है। यह भस्म गर्म (पैत्तिक) प्रकृति वालों के लिए अति लाभदायक है।