चंपारण से काशी विद्यापीठ में पहुंची गाधी सद्भावना यात्रा

वाराणसी : चंपारण बिहार से राजघाट दिल्ली तक जाने वाली 'गाधी सद्भावना यात्रा' मंगलवार को महात्मा

By JagranEdited By: Publish:Tue, 20 Mar 2018 04:13 PM (IST) Updated:Tue, 20 Mar 2018 04:13 PM (IST)
चंपारण से काशी विद्यापीठ में पहुंची गाधी सद्भावना यात्रा
चंपारण से काशी विद्यापीठ में पहुंची गाधी सद्भावना यात्रा

वाराणसी : चंपारण बिहार से राजघाट दिल्ली तक जाने वाली 'गाधी सद्भावना यात्रा' मंगलवार को महात्मा गाधी काशी विद्यापीठ पहुंची । विद्यापीठ में सद्भावना यात्रा का स्वागत किया गया। इस मौके पर परिसर स्थित गाधी अध्ययन पीठ में आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि गाधी जी कोई दार्शनिक नहीं थे, वो एक सच्चे विचारक एवं सन्त थे, उनका सारा जीवन कर्ममय था, व्यक्तिगत साधना में उनका विश्वास था। उनके जीवन का लक्ष्य केवल अंग्रेजी सत्ता से छुटकारा दिलाना नहीं था, भारत और सारे विश्व का सत्य और अहिंसा के आदर्शो पर निर्माण करना था। गाधी जी ने पहली बार सत्य, अहिंसा और शत्रु के प्रति प्रेम के आध्यात्मिक और नैतिक सिद्धान्तों का राजनीति के क्षेत्र में इतने विशाल पैमाने पर प्रयोग किया और सफलता प्राप्त की। गाधी ने जहा एक ओर भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाई, वहीं दूसरी ओर संसार को अहिंसा का ऐसा मार्ग दिखाया, जिस पर यकीन करना कठिन तो नहीं पर अविश्वसनीय जरूर था। वक्ताओं ने आगे कहा कि आजादी के आदोलन के दौरान गाधी ने लोगों को संघर्ष के तीन मंत्र दिए-सत्याग्रह, असहयोग और बलिदान। उन्होंने खुद इसे समय की कसौटी पर कसा भी। सत्याग्रह को सत्य के प्रति आग्रह बताया। यानी आदमी को जो सत्य दिखे उस पर पूरी शक्ति और निष्ठा से डटा रहे। बुराई, अन्याय और अत्याचार का किन्हीं भी परिस्थितियों में समर्थन न करे। सत्य और न्याय के लिए प्राणोत्सर्ग करने को बलिदान कहा। अहिंसा के बारे में उनके विचार सनातन भारतीय संस्कृति की प्रतिध्वनि है। गाधी जी के विचारों पर चल कर ही विश्व बंधुत्व कायम हो सकता है। इस अवसर पर प्रेरणा कला मंच के कलाकारों द्वारा नाटक दर्द-ए-दिल का भी मंचन किया गया जिसमे लगभग 70 साल बाद की अपने अपने देश की परिस्थितियों पर महात्मा गाधी और कायदे आजम जिन्ना के बीच एक मार्मिक और काल्पनिक संवाद को दर्शाया गया है।

संगोष्ठी में डा. पृथ्वीश नाग, डा. योगेन्द्र शर्मा, चित्रा सहस्त्रबुद्धे, अनिल भाई, मधुसूदन उपाध्याय, डा. आनंद प्रकाश तिवारी, फादर आनंद, जागृति राही आदि प्रमुख रहे, अध्यक्षता विजय नारायण सिंह ने की। विषय प्रवर्तन डा. राम प्रकाश द्विवेदी, संचालन रंजू सिंह व धन्यवाद ज्ञापन डा. नीति भाई ने किया।

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