ई हौ रजा बनारस--- बेड़ियां टूट गई, लगन जब जुनून बनी

कुमार अजय, वाराणसी : हर ऐरे-गैरे की सेवा की सनक को देखते हुए घर वालों ने पैरों में लोहे की बेड़ियां ड

By JagranEdited By: Publish:Wed, 09 May 2018 08:00 AM (IST) Updated:Wed, 09 May 2018 08:00 AM (IST)
ई हौ रजा बनारस--- बेड़ियां टूट गई, लगन जब जुनून बनी
ई हौ रजा बनारस--- बेड़ियां टूट गई, लगन जब जुनून बनी

कुमार अजय, वाराणसी : हर ऐरे-गैरे की सेवा की सनक को देखते हुए घर वालों ने पैरों में लोहे की बेड़ियां डाल दीं। इस आसरे में कि बेटा सुधर जाएगा, किसी धंधे में मन लगाएगा, पर अमन तो ठहरा अमन। जो ठान ली सो ठान ली। अंतत: उसकी जिद के आगे परिवार को अपना इरादा छोड़ना पड़ा, आपने ही हाथों डाला लौह बंधन तोड़ना पड़ा। अमन अब आजाद था, असहायों की सेवा का सपना उसकी आंखों में नाबाद था।

तो आइए आपकी मुलाकात कराते हैं इस सेवा व्रती नौजवान से, बनारसीपन की एक और जीवंत पहचान से। नाम अमन यादव, उम्र-23 साल, पिता-स्व. राजू यादव, निवास-दारानगर, आजीविका-चाय की पुश्तैनी दुकान, जुनून-लावारिसों की सेवा, मौजूदगी-पूरे शहर में कहीं भी-कभी भी।

फिल वक्त कबीरचौरा मंडलीय अस्पताल में कल ही भर्ती कराए गए दो लावारिसों ध्यानचंद व नवाब को खाना खिलाने में व्यस्त अमन कहते हैं 'अमन के होते हुए शहर में लावारिस कोई नहीं, फिर वह चाहे बीमार होकर फुटपाथ पर पड़ा भिखारी हो, जहरखुरानों का शिकार कोई रेलयात्री हो या फिर भाषा की दिक्कतों के चलते अपनी पीड़ा व्यक्त करने में असमर्थ कोई तीर्थयात्री। हर जगह हम मदद वाले हाथों के साथ मौजूद हैं, बस सूचना होनी चाहिए।'

बात हमें बीच में ही रोकनी पड़ती है। हैदराबाद से कोई कॉल है, अमन के मोबाइल फोन पर। किसी शैलेष बंडारु की कॉल है। आभार व्यक्त करने के लिए अमन का नंबर मिलाया है उन्होंने। अक्सर ही अमन से कुशलक्षेम होती रहती है। अभी बीते ही दिनों अपनी मूक-बधिर पत्नी के साथ काशी यात्रा पर आए शैलेष के पिता यहां आकर गंभीर रूप से बीमार हो गए थे। फुटपाथ पर विलाप करती उनकी पत्नी कंतम्मा गूंगी-बहरी होने के चलते असहाय थीं। अमन ने न सिर्फ शैलेष के पिताजी को अस्पताल में भर्ती कराया बल्कि इलाज के दौरान मौत हो जाने पर चार कंधे और घी-लकड़ी जुटाकर उनका अंतिम संस्कार भी कराया।

ऐसी ही एक कहानी है मामू की। हावड़ा (कोलकाता) के निवासी मामू यहां तीर्थ करने आए और उनका देहांत हो गया। साथ आई पत्नी के हाथ में फूटी कौड़ी नहीं। अमन उनके लिए सेवा का दूत बन कर आया। मामू का दाह संस्कार किया और पता-ठिकाना पूछकर उनकी पत्नी को उनके घर तक छोड़ कर आया।

अमन बताते हैं कि सात साल के सेवा व्रत में वह अब तक 1000 से भी अधिक पीड़ितों की दुआ बटोर चुके हैं। इनमें अंधे, लंगड़े, भिखारी, तीर्थयात्री, विदेशी पर्यटक आदि शामिल हैं। सेवा के इस जज्बे ने अमन को तन, मन से इतना मजबूत बना दिया है कि बीमार को कंधे पर लाद कर दो-चार किलोमीटर की दौड़ भी अब उसके लिए मुश्किल नहीं। दुर्गध, जुगुप्सा, सड़े हुए, कीड़े पड़े बजबजाते घाव भी अब उसे विचलित नहीं करते। कहता है अमन 'अब मेरी नजरें पीड़ितों के चेहरे पर होती है।' लावरिस को नहलाने-धुलाने उसके सड़े हुए घाव की ड्रेसिंग वे निर्विकार भाव से कर लेते हैं। रात-बिरात का भी अमन के लिए अब कोई मतलब नहीं। वक्त कोई भी हो अमन को 8687553080 नंबर पर फोन लगाइए और किसी भी असहाय की मदद के लिए उसको अपने साथ खड़ा पाइए।

फर्राटा भरने को तैयार है बाइक एंबुलेंस

पीड़ित लावारिस लोगों तक प्राथमिक उपचार आदि पहुंचाने के लिए अमन की बाइक एंबुलेंस अब शीघ्र ही फर्राटा भरने को तैयार है। पानी के केन सहित फ‌र्स्ट-एड किट, दवाओं व गाज-पट्टी से सुसज्जित बाइक को अब सिर्फ फ्लैग ऑफ का इंतजार है।

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