Doctor Day : वाराणसी की डा. शिप्रा अपने नर्सिंग होम में बेटियों के जन्म पर मनाती हैं उत्सव

बेटियों को बोझ समझने की मानसिकता के खिलाफ एक महिला डाक्टर का अभियान देश-दुनिया के लिए नजीर है। नाम है डा. शिप्रा जो अपने नर्सिंग होम में बेटियों के जन्म पर उत्सव मनाती हैं। प्रसूता का सम्मान करती हैं और मिठाइयां बंटवाती हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Thu, 30 Jun 2022 08:57 PM (IST) Updated:Thu, 30 Jun 2022 08:57 PM (IST)
Doctor Day : वाराणसी की डा. शिप्रा अपने नर्सिंग होम में बेटियों के जन्म पर मनाती हैं उत्सव
डा. शिप्रा जो अपने नर्सिंग होम में बेटियों के जन्म पर उत्सव मनाती हैं।

जागरण संवाददाता, वाराणसी : बेटियों को बोझ समझने की मानसिकता के खिलाफ एक महिला डाक्टर का अभियान देश-दुनिया के लिए नजीर है। नाम है, डा. शिप्रा जो अपने नर्सिंग होम में बेटियों के जन्म पर उत्सव मनाती हैं। प्रसूता का सम्मान करती हैं और मिठाइयां बंटवाती हैं। इतना ही नहीं बेटी चाहे सामान्य प्रसव से हुई हो या सिजेरियन, वे कोई शुल्क भी नहीं लेतीं। अब तक इस तरह के 500 उत्सव उनके नर्सिंग होम में मनाए जा चुके हैं। वर्ष 2019 में वाराणसी दौरे पर आए पीएम नरेन्द्र मोदी बरेका में आयोजित सभा के दौरान डा. शिप्रा के कार्यों की सराहना करने के साथ अन्य डाक्टरों का आह्वान कर चुके हैं।

वास्तव में डा. शिप्रा का बचपन बड़े ही संघर्षों से गुजरा। छोटी थीं तभी पिता का साया सिर से उठ गया। बेटियों के प्रति समाज में भेदभाव को देख उनके मन में बड़ा होकर कुछ करने की इच्छा थी। बीएचयू आइएमएस से वर्ष 2000 में एमडी की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अशोक विहार कालोनी में नर्सिंग होम खोला। इसमें उन्होंने महसूस किया कि प्रसव कक्ष के बाहर खड़े परिजनों को जब यह पता चलता कि बेटी ने जन्म लिया है तो वह मायूस हो जाते।

बच्ची के जन्म पर उसके परिवार में फैली मायूसी को दूर करने और सोच को बदलने का उन्होंने संकल्प लिया। तय किया कि वे अपने नर्सिंग होम में बेटियों के जन्म को उत्सव रूप में मनाएंगी। मिठाई बंटवायेंगी, प्रसूता को सम्मानित करेंगी और जच्चा-बच्चा के उपचार स्वरूप किसा तरह का शुल्क न लेंगी। इस संकल्प को पूरा करने में उनके पति डा. मनोज श्रीवास्तव ने सहयोग किया। वर्ष 2014 से शुरू अभियान के तहत नर्सिंग होम में 500 से अधिक बेटियों के जन्म पर उत्सव मनाया जा चुका है।

इसके अलावा बेटियों को मान देने के लिए डा. शिप्रा ने गरीब परिवार की बच्चियों को पढ़ाने के लिए अपने नर्सिंग होम के एक हिस्से में कोचिंग भी शुरू की है जिसमें 50 से अधिक बेटियां निश्शुल्क प्राथमिक शिक्षा पाती हैं। इसके लिए उन्होंने शिक्षक भी रखे हैं। खुद भी बच्चियों को पढ़ाती हैं। इस कोचिंग को उन्होंने ‘कोशिका’ नाम दिया है। उनका कहना है जिस तरह किसी जीव की सबसे छोटी कोशिका होती है, उसी तरह बेटियां भी समाज की एक ‘कोशिका’ हैं। इनके बिना समाज की कल्पना नहीं कर सकते। इस सोच के तहत वे 25 बेटियों के लिए सुकन्या समृद्धि योजना का पैसा भी जमा करती हैं। अनाज बैंक स्थापित कर हर माह 40 निर्धन विधवा व असहाय महिलाओं को 10 किग्रा गेहूं व पांच किग्रा चावल उपलब्ध कराती हैं।

chat bot
आपका साथी