DLW का नाम अब बनारस लोकोमोटिव वर्क्‍स होगा, केंद्र सरकार की ओर से जारी की गई अधिसूचना

डीजल रेल इंजन कारखाना यानी डीजल लोकोमोटिव वर्क्‍स (डीएलडब्ल्यू) का नाम बदल गया है। केंद्र सरकार ने इसका नाम बदलकर बनारस रेल इंजन कारखाना यानी बनारस लोकोमोटिव वर्क्‍स (बीएलडब्ल्यू) कर दिया है। गुरुवार को केंद्र सरकार की ओर से अधिसूचना जारी कर दी गई है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Thu, 29 Oct 2020 11:29 PM (IST) Updated:Thu, 29 Oct 2020 11:29 PM (IST)
DLW का नाम अब बनारस लोकोमोटिव वर्क्‍स होगा, केंद्र सरकार की ओर से जारी की गई अधिसूचना
डीएलडब्ल्यू का नाम बदलकर अब बनारस लोकोमोटिव वर्क्‍स कर दिया है।

वाराणसी, जेएनएन। डीजल रेल इंजन कारखाना यानी डीजल लोकोमोटिव वर्क्‍स (डीएलडब्ल्यू) का नाम बदल गया है। केंद्र सरकार ने इसका नाम बदलकर बनारस रेल इंजन कारखाना यानी बनारस लोकोमोटिव वर्क्‍स (बीएलडब्ल्यू) कर दिया है। इस बाबत गुरुवार को केंद्र सरकार की ओर से अधिसूचना जारी कर दी गई है। रेल मंत्रालय के सचिव सुशांत कुमार मिश्रा की ओर से जारी अधिसूचना में नाम तत्काल प्रभाव से लागू करने का  आदेश जारी किया गया है। नाम बदलने की कवायद तब शुरू हुई जब यहां इलेक्ट्रिक इंजन का निर्माण  होने लगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरणा से ही कारखाने में डीजल-इलेक्ट्रिक व इलेक्ट्रिक इंजन का निर्माण शुरू किया गया था। फिलहाल, डीएलडब्ल्यू के बोर्ड पर बीएलडब्ल्यू कब लिखा जाएगा, इस बाबत कोई निर्देश  स्थानीय अधिकारियों को नहीं मिला है। डीएलडब्ल्यू की ओर से रेलवे बोर्ड के  सचिव को भेजे गए पत्र में तीन नए नाम सुझाए गए थे। इसमें डीजल की जगह  इलेक्ट्रिक रेल इंजन बनने से नाम परिव?तत करना प्रासंगिक बताया गया था।

डीएलडब्ल्यू के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी वैभव सोहाने ने बताया कि बोर्ड को भेजे गए लेटर में तीन नाम सुझाए गए थे। इसमें पहला बनारस लोकोमोटिव वर्क्‍स, दूसरा डीजल इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव वक्र्स और तीसरा काशी विश्वनाथ लोकोमोटिव वर्क्‍स था। इसमें बनारस लोकोमोटिव वक्र्स को चयनित किया गया। 23 अप्रैल 1956 में रखी गई नींव डीरेका  का इतिहास बेहद समृद्ध है। प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने वर्ष 23 अप्रैल 1956 इसकी नींव रखी थी। अगस्त 1961 में डीरेका अपने अस्तित्व में आया। जनवरी 1964 में पहला ब्राड गेज डीजल रेल इंजन डब्ल्यूबीएम-2 का लोकार्पण पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने किया। नवंबर 1968 में पहले मीटर गेज डीजल रेल इंजन वाईडीएम-4 का लोकार्पण पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने किया। जनवरी 1976 से हो रहा इंजन निर्यात जनवरी 1976 में पहला डीजल रेलइंजन तंजानिया निर्यात किया गया। इसके बाद वियतनाम,

बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान आदि देशों को इंजन भेजा गया। दिसंबर 1977 में प्रथम डीजल जनित सेट बनाया गया। अक्टूबर 1995 में अत्याधुनिक  माइक्रोप्रोसेसर नियंत्रित, एसी-एसी डीजल इलेक्टिक रेल इंजनों के निर्माण के लिए जनरल मोटर्स, अमेरिका के साथ समझौते किया गया। इसके बाद फरवरी 1997 में अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आइएसओ) प्रमाण पत्र प्राप्त किया। फरवरी 2017 से बन रहा इलेक्ट्रिक इंजन लंबे समय तक डीजल रेल इंजन बनने के बाद फरवरी 2017 में 6000 हार्सपावर के अपने पहले इलेक्ट्रिक इंजन निर्माण के साथ ही डीएलडब्ल्यू ने नए युग में प्रवेश किया। इस इंजन का नाम डब्ल्यूएपी-7 रखा गया। वर्ष 2019 में इलेक्ट्रिक इंजन निर्माण में 100 का आंकड़ा पार कर नया कीर्तिमान स्थापित किया गया।

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