पंडित राजन मिश्र का निधन : क्या कहूं, कंठ हो रहा अवरुद्ध, आवाज भरभरा रही है : पंडित छन्नूलाल मिश्र

पंडित राजन मिश्र का निधन अभी पिछले महीने की ही तो बात है जब रथयात्रा स्थित कन्हैया लाल स्मृति संस्थान में आयोजित मेरी किताब के लोकार्पण के समय मुझसे पंडित राजन मिश्र से मुलाकात हुई थी। मैंने उन्हें सम्मानित किया था।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Sun, 25 Apr 2021 09:06 PM (IST) Updated:Sun, 25 Apr 2021 09:06 PM (IST)
पंडित राजन मिश्र का निधन : क्या कहूं, कंठ हो रहा अवरुद्ध, आवाज भरभरा रही है : पंडित छन्नूलाल मिश्र
बनारस संगीत घरने के शास्‍त्रीय गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र

वाराणसी, जेएनएन। अभी पिछले महीने की ही तो बात है जब रथयात्रा स्थित कन्हैया लाल स्मृति संस्थान में आयोजित मेरी किताब के लोकार्पण के समय मुझसे पंडित राजन मिश्र से मुलाकात हुई थी। मैंने उन्हें सम्मानित किया था। आज लगता ही नहीं कि जो व्यक्ति मेरे सामने खुश मिजाजी से हंसता हुआ मुझसे मिल रहा है वह अचानक इस तरह से चला जायेगा। यह बताने में मेरे कंठ रुद्ध हो रहे हैं। आवाज भरभरा रही है।आंखों से।आंसू बह रहे हैं।

राजन मिश्र का जाना आज बहुत खल रहा है। आज उनके अचानक चले जाने से यह समझ में नहीं आता है कि जीवन क्या है। यहां संसार में कोई रहने नहीं आया है लेकिन इस संसार से किसी के प्रति मोह ही ऐसा कारण है जिससे दुःख होता है। वाकई ही पंडित राजन मिश्र ऐसे जिंदा दिल व्यक्तित्व थे जिनसे मोह अनायास ही हो जाता था। पद्मविभूषण राजन मिश्र  मुझसे छोटे थे और रिश्ते में मेरे साले लगते थे।

दिल्ली में रहते हुए भी बनारस के कबीरचौरा को नहीं भूला

दिल्ली में रहते हुए भी उन्होंने बनारस के कबीरचौरा को नहीं भूला। उनका दिल्ली का रहन -सहन अलग था लेकिन जब बनारस आते थे तब खाटी कबीरचौरामय हो जाते। वहीं काशिका में बोलना कि - का गुरु का हालचाल हौ,उन्हें विशिष्ट से जन सामान्य की ओर ले आता था। यही उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी। वे इतना बड़े होते हुए भी कभी भी मेरा  सम्मान करना नहीं भूलते थे। जब भी मिलते पैर छूकर आशीर्वाद लेना उनके स्वभाव में शुमार था। उनका मिजाज अच्छा था। उनको सुनना अच्छा लगता था। हम लोग एक विधा के थे लेकिन कभी भी आपसी द्वेष भाव नहीं आया। किसी कार्यक्रम में जब दोनों को गाना होता था तब हम लोग एक-दूसरे को पूरा सुनते थे और तारीफ करते थे।

बनारस ने अपनी निधि खो दी है : राजेश्वर आचार्य

ऐसे कलाकार बहुत कम होते हैैं जिनका प्रभाव शास्त्रीय संगीत से अनभिज्ञ लोगों पर भी उतना ही पड़ता है जितना कि भिज्ञों पर। ऐसे थे हमारे पंडित राजन मिश्र जी। मैं इतना मर्माहत हूं कि मेरी उम्र से आठ- नौ साल छोटे राजन के बारे में इस समय कुछ कहूं। मैंने उन्हेंं उनके बचपन से ही जाना और समझा है। इतने बड़े कलाकार होते हुए भी उनमें लेशमात्र अभिमान न था। उन्होंने कभी भी अहंकार का प्रदर्शन नहीं किया। सभी से सामान्य तौर- तरीके से मिलते-जुलते थे। उनका गायन आत्म विज्ञापन नहीं था बल्कि उनकी आत्माभिव्यक्ति का प्रभाव था। उनमें एक महान गायक के साथ ही मानवता के सारे सद्गुण विराजमान थे। वे बनारस की प्रतिष्ठा व बनारसी संगीत का मूर्त स्वरूप थे। वे अनहद नाद की यात्रा में निकल गए। मैं बहुत आहत हूं। बनारस ने अपनी बड़ी निधि खो दी है।

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