मीरजापुर के विंध्‍यधाम में नवरात्रि का पर्व लाता है सांप्रदायिक सौहार्द का पैगाम

यहां धर्म-जाति, पंथ, संप्रदाय की बातें भले ही राजनीति के लिए कारगर हों लेकिन इंसानियत के लिए नहीं, यहां संस्कृति गंगा-जमुनी तहजीब को ही आत्मसात करके चलती है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Fri, 12 Oct 2018 08:48 PM (IST) Updated:Sat, 13 Oct 2018 04:26 PM (IST)
मीरजापुर के विंध्‍यधाम में नवरात्रि का पर्व लाता है सांप्रदायिक सौहार्द का पैगाम
मीरजापुर के विंध्‍यधाम में नवरात्रि का पर्व लाता है सांप्रदायिक सौहार्द का पैगाम

मीरजापुर [सतीश रघुवंशी] । विंध्यवासिनी का नाम आते ही आस्था के साथ ही सांप्रादायिक सौहार्द व सद्भाव का सैलाब सभी के जेहन में तैरने लगता है। यहां धर्म-जाति, पंथ, संप्रदाय की बातें भले ही राजनीति के लिए कारगर हों लेकिन इंसानियत के लिए नहीं। वास्तविकता में हमारी संस्कृति गंगा-जमुनी तहजीब को ही आत्मसात करके चलती है। इसका जीता-जागता उदाहरण विंध्यधाम में देखा जा सकता है जहां बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज के लोग नवरात्र से पहले न सिर्फ मां विंध्यवासिनी को चढ़ाने के लिए लाखों चुनरियां सिलती हैं बल्कि वे मां के फोटो फ्रेम को भी अपनी भावनाओं के रंग से सजाते हैं। 

विश्व प्रसिद्ध मां विंध्यवासिनी धाम में नवरात्र की तैयारी डेढ़-दो महीने पहले ही शुरू हो जाती है। इसके लिए समाज के सभी समुदाय व वर्गों के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। खास तौर से मां विंध्यवासिनी के लिए बनाई जाने वाली चुनरी, माला व फोटो में मुस्लिम समाज के दर्जनों महिला व पुरूषों की भावनाओं का रंग घुला होता है। यहां की दर्जनों मुस्लिम महिलाएं व पुरूष मिलकर महीनेभर तक मां की चुनरी सिलते हैं जो यहां की दुकानों पर नवरात्र में बिकता है आैर मां के चरणों में चढ़ाया जाता है। यह काम इतनी तन्मयता आैर आस्था के साथ किया जाता है कि इसे देखकर ही सांप्रदायिक सद्भाव की मिशाल दी जाती है। यहां के लोगों के लिए जाति व धर्म जैसी बातें कतई मायने नहीं रखतीं। कंतित शरीफ क्षेत्र में मां की चुनरी सिलने वाले मदन मुल्ला बताते हैं कि यह काम हम कई पीढ़ियों से करते आ रहे हैं आैर आगे भी करते रहेंगे क्योंकि इससे हमारी भावनाएं भी जुड़ी हुई हैं। उन्होंने बताया कि प्रतिवर्ष नवरात्र से पहले जिस तरह हिंदू भाई पर्व की तैयारी करते हैं, उसी तरह हम सब मां की चुनरी सिलकर अपनी तैयारी को अंजाम तक पहुंचाते हैं।

 

फोटो फ्रेम पर चढ़ाती हैं आस्था के रंग

यहां सिर्फ चुनरी ही नहीं बल्कि मां की फोटो बनाने का भी बड़ा उद्याेग है जिससे ज्यादातर मुस्लिम महिलाएं जुड़ी हैं। कारीगरी से लेकर फोटो फ्रेम को रंगने आैर सजाने का काम यही महिलाएं करती हैं। महिला रोशनी बेगम ने बताया कि इस काम में उनका बहुत मन लगता है और हमारी भी श्रद्धा इससे जुड़ी है। बात आगे बढ़ी तो रोशनी ने कहा हिंदू-मुसलमान को अलग करना नेताओं का काम है। यहां तो हम सब अच्छे पड़ाेसियों की तरह हैं जो हर सुख-दुख आपस में साझा करते हैं। मां विंध्यवासिनी व नवरात्र भी सभी की तरह हमारी भी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है। 

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