ISRO के सहयोग से BHU ने बनाया एप, सेटेलाइट यंत्र से ली जा रही खेतों के मिट्टी की रिपोर्ट

बीएचयू के रिमोट सेंसिंग लेबोरेटरी में डा. प्रशांत कुमार श्रीवास्तव के निर्देशन में छात्राओं ने विशेष मोबाइल एप इरिगेशन शेड्यूलर तैयार किया है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Fri, 31 Jul 2020 02:36 PM (IST) Updated:Fri, 31 Jul 2020 05:34 PM (IST)
ISRO के सहयोग से BHU ने बनाया एप, सेटेलाइट यंत्र से ली जा रही खेतों के मिट्टी की रिपोर्ट
ISRO के सहयोग से BHU ने बनाया एप, सेटेलाइट यंत्र से ली जा रही खेतों के मिट्टी की रिपोर्ट

वाराणसी [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव]। जल ही जीवन है और इसका संरक्षण बेहद जरूरी है। इसी प्रयास में पर्यावरण एवं धारणीय विकास संस्थान, बीएचयू के रिमोट सेंसिंग लेबोरेटरी में डा. प्रशांत कुमार श्रीवास्तव के निर्देशन में छात्राओं ने विशेष मोबाइल एप 'इरिगेशन शेड्यूलर' तैयार किया है। इसकी मदद से प्रत्येक 15 दिन पर आपके खेत में कितनी नमी में कमी है और कितना तापमान है, इसकी जानकारी मोबाइल पर ही मिल जाया करेगी। इससे किसानों को जरुरत के अनुसार सिंचाई की जानकारी मिलेगी। इस मोबाइल एप का प्रयोग जिले में हर 10-20 किमी की दूरी पर बनाई गई 60 साइटों पर किया जा रहा है। फिलहाल यह ऐप प्रोटोटाइप बना है। इसमें कुछ आवश्यक बदलाव के बाद आम लोगों के लिए जारी किया जाएगा।

जिले में स्थापित इन साइटों पर प्रत्येक 15 दिनों में हाइड्राप्रोब (मिट्टी की नमी जांचने वाला यंत्र) हैंडहेल्ड (मिट्टी की नमी मैन्यूअल ही मापने की प्रक्रिया) उपकरण द्वारा भी मिट्टी की नमी तथा तापमान को लगातार मापा जा रहा है, ताकि त्रुटि शेष न रह जाए। अभी परिणाम बेहतर आए हैं। इस एप लिए डीआइसी की फंड मुहैया की गई है। पहली बार वर्ष 2018 में राष्ट्रपति भवन, फरवरी 2019 में आइआइएम अहमदाबाद, नवंबर में आइआइटी दिल्ली में इसका प्रदर्शन किया गया था। लॉकडाउन के कारण इसका कार्य प्रभावित हुआ। जोर हैं कि अगले साल तक इसे सभी किसानों के लिए जारी कर दिया जाए।

बोले विभागीय अधिकारी

स्पेस एप्लीकेशन सेंटर, इसरो द्वारा प्राप्त हाईड्राप्रोब उपकरण, जोकि बीएचयू के कृषि फार्म में स्थापित किया गया है, इससे भी इसकी सत्यता की जांच की जा रही, ताकि कमियों को ठीक किया जा सके। फिलहाल इसका प्रयोग वाराणसी के लिए किया जा रहा है। सूक्ष्म अध्ययन के बाद आगे चलकर इसका प्रयोग पूरे देश में किया जाएगा।  -डा. प्रशांत कुमार श्रीवास्तव, पर्यावरण एवं धारणीय विकास संस्थान, बीएचयू।

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