मुकाम पर पहुंचने लगी एल्डम और रेबथन की खोज, सोनभद्र में सोना होने का किया था दावा

ब्रिटिश जियोलॉजिस्टों की रुचि शुरू से ही सोनभद्र के इलाके में रही है। 1840 के दशक में ईस्ट इंडिया कंपनी के जियोलाजिस्ट रेबथन ने कोयला खदानों की खोज की थी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Tue, 25 Feb 2020 08:50 AM (IST) Updated:Tue, 25 Feb 2020 08:50 AM (IST)
मुकाम पर पहुंचने लगी एल्डम और रेबथन की खोज, सोनभद्र में सोना होने का किया था दावा
मुकाम पर पहुंचने लगी एल्डम और रेबथन की खोज, सोनभद्र में सोना होने का किया था दावा

सोनभद्र [प्रशांत शुक्ल]। ब्रिटिश जियोलॉजिस्टों की रुचि शुरू से ही सोनभद्र के इलाके में रही है। 1840 के दशक में ईस्ट इंडिया कंपनी के जियोलाजिस्ट रेबथन ने कोयला खदानों की खोज की थी। इसके बाद यहां पर अंग्रेजी हुकूमत की रुचि बढ़ गई थी। चाइना क्ले व अन्य बहुमूल्य धातुओं के भंडार को देखते हुए अंग्रेजों ने चुहियानाला के पास फैक्ट्री की स्थापना भी की थी जहां बर्तन बनाए जाते थे।

1912 में धंधरौल बांध निर्माण के दौरान एल्डम ने किया था व्यापक सर्वे

फैक्ट्री की पुष्टि 1960 में माइनिंग का काम देख रही कंपनी मारतंड के कार्य प्रबंधक व वरिष्ठ साहित्यकार अजय शेखर ने की। उन्होंने बताया कि अंग्रेजी हुकूमत की जिले की खनिज संपदा पर बहुत पहले ही नजर पड़ गई थी। इस कारण उनकी इस क्षेत्र में सक्रियता ज्यादा थी। वहीं दूसरी ओर वर्ष 1912-17 में घाघर कैनाल निर्माण के दौरान इसके अधिशासी अभियंता जे. डार्ली के साथ भू-सर्वेक्षण के लिए ब्रिटिश जियोलाजिस्ट एल्डम ने सोनभद्र में फैले अपार खनिज संपदा को पहचाना था। धंधरौल बांध निर्माण 1912 के दौरान जिले में आए ब्रिटिश जियोलॉजिस्ट एल्डम ने यहां का व्यापक सर्वे किया था। तब से लेकर अब तक इस विषय पर व्यापक शोध हुए हैं जिसका संपूर्ण निष्कर्ष निकलना अब भी बाकी है।

1980 के बाद सक्रिय हुई सरकार 

अंग्रेज हुकूमत के बाद वर्ष 1980 के वर्ष में भारत सरकार की जीएसआइ ने ङ्क्षवध्य पर्वत शृंखला में अपनी रुचि बढ़ाई। कई चरणों में जियोलॉजिस्टों की टीम ने यहां का दौरा किया और खनिज संपदा होने का दावा किया। इस दौरान यहां पर चाइना क्ले, पोटाश समेत यूरेनियम, सोना जैसे बहुमूल्य धातु होने की बात कही गई लेकिन इसकी मात्रा व गुणवत्ता को लेकर हमेशा प्रश्नचिह्न लगते रहे।

सोना पहाड़ी से मोहब्बत है

सोना पहाड़ी सरकार के लिए एक खजाना है और इससे देश की अर्थव्यवस्था समृद्ध करने की योजना पर काम कर रही है। वहीं स्थानीय निवासियों के जीवन में भी यह पहाड़ी बड़ी भूमिका अदा करती है। पहाड़ी के सबसे उच्च शिखर पर ग्रामीणों की मन्नतें पूरी होती हैं। यहां एक शिव मंदिर है। इसका कोई पुजारी नहीं है। बस मन्नतें पूरी होते ही स्थानीय लोग जमीन से लगभग 300 फीट की ऊंचाई चढ़कर पूजा-पाठ करते हैं।

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