झोपड़ी में आग लगने से गृहस्थी जलकर राख
दिहाड़ी मजदूरी कर जीवन यापन कर रहे श्रमिक का घास फूस से बना आशियाना चूल्हे की चिगारी से जलकर खाक हो गया। आग पर ग्रामीणों ने निजी उपकरण से काबू पाया लेकिन तब तक पूरी गृहस्थी जलकर खाक हो चुकी थी। वहीं मौके पर पहुंचे लेखपाल व ब्लाक कर्मी खानापूरी कर वापस लौट गए। हाल यह कि पीड़ित परिवार को खाने के पास खाने के न राशन बचा है और ही सिर छिपाने के लिए छत।
संवाद सूत्र, बिछिया : दिहाड़ी मजदूरी कर जीवन यापन कर रहे श्रमिक का घास फूस से बना आशियाना चूल्हे की चिगारी से जलकर खाक हो गया। आग पर ग्रामीणों ने निजी उपकरण से काबू पाया लेकिन तब तक पूरी गृहस्थी जलकर खाक हो चुकी थी।
अजगैन कोतवाली क्षेत्र में मुर्तजानगर के मजरे कुमेदाखेड़ा निवासी पोले (35) पुत्र छोटेलाल अपने पड़ोसी बद्री की दीवार पर छप्पर रखकर पत्नी ज्योति, पुत्र सत्यम (7), शिवम (5), सुंदरम (4) और पुत्री पल्लवी दो माह के साथ दशकों से रह रहा है। बुधवार रात आठ बजे के करीब खाना खाने के बाद सभी जमीन पर पैरा बिछाकर सभी सो गए। इस दौरान चूल्हे की राख को झोपड़ी के बाहर डाल दिया गया। उसके बाद 10 बजे के करीब पोले की पत्नी ज्योति की नींद खुली तो उसने देखा छप्पर के किनारे लगाई गई घास फूस में आग लग गई है। उसके बाद उसने स्वजन को जगाया तो सभी ने भागकर जान बचाई। ग्रामीणों ने पुलिस फायर ब्रिगेड को सूचना दी और स्वयं निजी संसाधनों से आग पर काबू पाने का प्रयास किया, लेकिन तब तक पीड़ित की सारी गृहस्थी जलकर खाक हो गई। घटनास्थल पर पहुंचे लेखपाल और ब्लाक कर्मी भी खानापूरी कर वापस लौट गए, जिसके बाद पूरा परिवार ग्रामीणों के रहमो करम पर जीने को विवश है। घर अन्न का दाना तक नहीं बचा है। ग्रामीणों का अनुमान है कि चूल्हे की राख से झोपड़ी में आग लगी थी। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि पिछले आठ वर्षों से पीड़ित परिवार ग्राम प्रधान से लेकर ब्लाक स्तर तक सैकड़ों चक्कर लगा चुका है इसके बावजूद पोलो को सरकारी आवास नहीं मिल सका।