रोटी के लिए कुछ तो मिल जाता है बाबू

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By JagranEdited By: Publish:Sun, 10 Feb 2019 10:59 PM (IST) Updated:Sun, 10 Feb 2019 10:59 PM (IST)
रोटी के लिए कुछ तो मिल जाता है बाबू
रोटी के लिए कुछ तो मिल जाता है बाबू

सुलतानपुर : बसंत पंचमी का पर्व है। आदि गंगा गोमती के किनारे सीताकुंड घाट पर लोग स्नान - ध्यान व पूजन- अर्चन के लिए आ रहे हैं। इन सब के बीच पांच-छह लोगों का एक कुनबा सूर्य के ताप और गोमती नदी के ठंडे पानी के बीच एकाग्र चित होकर जल के रेत को खोद रहा है। जो घाट पर मौजूद हैं वह सब ध्यान से इनकी हरकतों को देख रहे हैं। रेतों को खंगालते परिवार के किसी सदस्य को जब कोई सिक्का मिल जाता तो वह खुशी से उछल पड़ता। कुछ लोग अपने आप रोक नहीं सके। वे उन सब से सवाल कर ही बैठे। .. नदी में से सिक्का क्यों निकाल रहे हो? जवाब मिलता पेट का सवाल है, रोटी के लिए कुछ तो मिल जाता है बाबू। नगर में धार्मिक महत्व के इस घाट पर यूं तो रोज कोई न कोई अनुष्ठान होते रहते है, लेकिन रविवार को विशेष पर्व होने से इस दिन किए गए यज्ञ, तप , दान का फल शीघ्र प्राप्त होने की मान्यता है। आस्थावान लोग यहां आकर गोमती में धार्मिक परंपरा के अनुसार शनि व राहु के प्रकोप से बचाव और लक्ष्मी सहित अन्य देवी देवताओं की कृपा पाने के लिए जल में भेंट स्वरूप सिक्के, ताबा, चांदी, सोना आदि धातुओं से निर्मित विभिन्न प्रकार की सामग्री चढ़ाते हैं। तकदीर का अजब खेल है। कुछ लोग हैं कि अपना भाग्य बदलने व धन- वैभव के लिए पैसों को नदी में बहाते हैं, वहीं शहर के कृष्णा नगर निवासी कमलेश जैसे लोगों का परिवार अपनी तकदीर गोमती में बहाए गए सिक्कों और धातु से बनी चीजों को बालू के अंदर से निकालकर उससे अपने परिजनों की परवरिश करने की कोशिश जुटा है..

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