जानिये- कैसे गाय की मदद से रोजगार पैदा कर रहा सॉफ्टवेयर इंजीनियर

गरीब मरीजों की आर्थिक जरूरत के साथ एलोपैथी इलाज की बढ़ती महंगाई ने हृदय को कुछ ऐसा घायल किया कि एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने नौकरी छोड़ देसी कारोबार को अपना लिया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 03 May 2018 01:03 PM (IST) Updated:Thu, 03 May 2018 01:27 PM (IST)
जानिये- कैसे गाय की मदद से रोजगार पैदा कर रहा सॉफ्टवेयर इंजीनियर
जानिये- कैसे गाय की मदद से रोजगार पैदा कर रहा सॉफ्टवेयर इंजीनियर

सोनभद्र [संजय यादव]। गरीब मरीजों की आर्थिक जरूरत के साथ एलोपैथी इलाज की बढ़ती महंगाई ने हृदय को कुछ ऐसा घायल किया कि एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने नौकरी छोड़ देसी कारोबार को अपना लिया। हालांकि इस राह में पहले तो काफी अनिश्चितता थी लेकिन सभी को झेलते हुए अब बड़ा कारोबार शुरू कर दिया है।

बात कर रहे हैं ओबरा निवासी निशांत कुशवाहा की। जो डेढ़ दशक पहले दिल्ली में एक मल्टी नेशनल कम्पनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर का काम करते थे। इंफार्मेशन टेक्नालॉजी के बढ़ते ग्राफ के बीच अपने गांव के दर्द से तड़पते ग्रामीण कुछ ऐसे हावी हुए कि इनके जीवन की दिशा ही बदल गयी। सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग के शानदार करियर को छोड़ सड़क पर घायल गायों की सेवा शुरू कर दी।

देखते ही देखते सेवा-श्रम से एक गोशाला खोल ली। इस समय गौशाला में मौजूद 30 से अधिक गायों के दूध से देसी उत्पाद मटठा, घी आदि के साथ ही 20 से ज्यादा दवाइयों का निर्माण हो रहा है। जिनमें 80 फीसद दवाइयां गोमूत्र से बनाई जा रही हैं।

फिलहाल उत्तर प्रदेश सहित अन्य प्रदेशों में भी बिक्री के लिए इस गोशाला में निर्मित दवाइयां भेजी जा रही हैं। जॉब छोड़कर देसी उपाय को अपनाकर कारोबार शुरू करने के सवाल पर श्री कुशवाहा ने बताया कि गरीब मरीजों को होने वाली आर्थिक दिक्कत के साथ घायल लावारिस पशुओं को देखकर गौशाला खोलने का विचार आया।

गोशाला में गोमूत्र सहित पंचगव्य से निर्मित दवाइयों से गरीबों सहित घायल पशुओं का इलाज होता है। कई तरह के शोध सहित घायल पशुओं के इलाज में होने वाले खर्च के लिए अब इसे कारोबार की शक्ल दी जा रही है। इससे गांव के लोगों को भी गांव में ही काम मिलेगा। जिससे लोगों को भी अपने ही घर में आर्थिक लाभ तो होगा ही वह दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में जाकर भटकने से भी बचेंगे।

दवाइयों के निर्माण का चेन्नई से लिया प्रशिक्षण

निशांत कुशवाहा ने बताया कि मैंने दवाइयों के निर्माण का प्रशिक्षण महर्षि पंचगव्य गुरुकुलम, चेन्नई से लिया जो भारत सेवक समाज एवं संसदीय बोर्ड से मान्यता प्राप्त है। बताया कि अभी उनके केंद्र से 50 के करीब उत्पाद बनाये जा रहे हैं। जिनमें गौमूत्र सहित पंचगव्य शामिल रहता है।

बीमारियों के निवारण के लिए 18-18 प्रकार के घनवटी व अर्क, आई-ड्राप, नोजल ड्राप, ईयर ड्राप सहित त्वचा रोग एवं दर्द निवारक से जुडी औषधियां बनायी जाती है। इसके अलावा साबुन शैम्पू सहित पर्सनल केयर से जुड़े उत्पाद भी बनाये जाते हैं। बताया कि उनकी औषधियों से हेपेटाइटिस, पथरी सहित कैंसर जैसी बीमारियों में भी लाभ दिखा है। खासकर आंखों और कान के रोग शत प्रतिशत सही हुए हैं। 

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