सौभाग्य योजना के प्रसार में फंस सकते हैं कई पेच
जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : सभी घरों तक बिजली पहुंचाने की केंद्र सरकार की महत्वपू
जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : सभी घरों तक बिजली पहुंचाने की केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण सौभाग्य योजना का प्रसार तेजी से शुरू हो गया है। आजादी के सात दशक बाद भी बिजली से वंचित नागरिकों के लिए लाभकारी योजना के तहत जनपद में अभी तक हजारों नये उपभोक्ताओं को कनेक्शन वितरित किया गया है। जल्द ही इसमें और तेजी आने की उम्मीद जतायी जा रही है। भौगोलिक रूप से कठिन जनपद के बड़े भू-भाग पर अभी तक सभी घरों में विद्युतीकरण नहीं हो सका है। विद्युत उत्पादन में शीर्ष पर रहे जनपद के हजारों घरों तक अभी तक बिजली न पहुंचना सवाल खड़ा करता है लेकिन सौभाग्य योजना से विद्युत से वंचितों का भाग्य खुल सकता है। बजट से आ सकती है समस्या
हर घर तक बिजली पहुंचाने का 60 फीसद खर्च केंद्र सरकार, 10 फीसद खर्च राज्य सरकार एवं 30 फीसद बैंकों से लोन लिया जायेगा। जिनके पास अब तक सिलेंडर के कनेक्शन नहीं हैं वह बिजली के जरिए खाना बना सकेंगे। इस वर्ष केंद्र सरकार ने सौभाग्य योजना हेतु देश के चार करोड़ घरों तक बिजली पहुंचाने के लिए 16000 करोड़ रुपये का आम बजट में उल्लेख किया है जो लगभग 3200 रुपये प्रति घर आता है। जो उत्तर प्रदेश के कमजोर बिजली नेटवर्क और सुदूर ग्रामीण इलाकों में बिजली कनेक्शन देने के लिए अपर्याप्त है। इसी प्रकार साल भर में डेढ़ करोड़ नये उपभोक्ता बढ़ जाने से बढ़ी जरूरत के अनुसार बिजली उत्पादन बढ़ाने अथवा बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिएअतिरिक्त बिजली खरीदने पर आने वाले व्यय की प्रतिपूर्ति कैसे की जायेगी यह स्पष्ट नहीं है। बड़ी बिजली की जरूरत के अनुपात में पारेषण और वितरण के नेटवर्क को सुदृढ़ करने के लिए लगभग 40 से 50 हजार करोड़ रुपये का व्यय होगा, जिसका बजट में कोई उल्लेख नहीं है । बुनियादी स्तर पर देना होगा ध्यान
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार उत्तर प्रदेश के 71 प्रतिशत और बिहार के 85 प्रतिशत ग्रामीण घरों में अभी बिजली कनेक्शन नहीं है। कुल 04.05 करोड़ शेष घरों में से लगभग 40 प्रतिशत घर अकेले उत्तर प्रदेश में हैं। ऐसे में सरकार को बिजली आपूर्ति में निरंतरता बनाए रखने की जरूरत होगी। इसके लिए बुनियादी स्तर पर विशेष ध्यान देना होगा। उत्तर प्रदेश में तकनीकी कर्मचारियों की भारी कमी है और अधिकांश बिजली उपकेंद्र ठेकेदारों के भरोसे चलाये जा रहे हैं। एक वर्ष में हर घर तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य हासिल करने में उत्तर प्रदेश और बिहार में सबसे बड़ी चुनौती है। तमाम विशेषज्ञ अभियंता भी मानते हैं कि योजना स्वागत योग्य है लेकिन धरातल पर स्थिति अनुकूल नहीं है। आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने कहा कि योजना की सफलता का सारा दारोमदार मुख्यतया सार्वजानिक क्षेत्र की बिजली कंपनियों पर है क्योंकि गत के अनुभव से यह साफ है कि निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों की घाटे वाले जनहित की योजनाओं में कोई रूचि नहीं रहती।