शासन चाहे तो मनेगी मजदूरों की दिवाली

जहां केंद्र सरकार कर्मचारियों को महंगाई भत्ते में वृद्धि कर उनकी दिवाली की रौनक बढ़ा दी है वहीं जनपद सोनभद्र के 50 हजार से ज्यादा असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के यहां चूल्हा जलाना मुश्किल हो गया है

By JagranEdited By: Publish:Fri, 18 Oct 2019 07:47 PM (IST) Updated:Sat, 19 Oct 2019 06:12 AM (IST)
शासन चाहे तो मनेगी मजदूरों की दिवाली
शासन चाहे तो मनेगी मजदूरों की दिवाली

जांगरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : जहां केंद्र सरकार कर्मचारियों को महंगाई भत्ते में वृद्धि कर उनकी दिवाली की रौनक बढ़ा दी है, वहीं जनपद सोनभद्र के 50 हजार से ज्यादा असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के यहां चूल्हा जलाना मुश्किल हो गया है। शासन द्वारा धारा 20 के प्रकाशन में देरी करने के कारण लाखों की आबादी प्रत्यक्ष तौर पर भारी जिल्लत झेलने को मजबूर हैं। जिला प्रशासन द्वारा धारा 20 के प्रकाशन का प्रस्ताव शासन को भेजे काफी दिन हो गया है लेकिन शासन की सुस्ती ने लाखों लोगों की दिवाली खराब करने की सम्भावना पैदा कर दी है।

धारा 20 के प्रकाशन नही होने के कारण जनपद में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला पत्थर और बालू खनन बंदी की हालत में है। भौगोलिक रूप से पठारी बाहुल्य क्षेत्र के तौर पर सोनभद्र के बड़े भूभाग में खेती ज्यादा अपेक्षित नही रही है। जलस्तर के काफी नीचे होने के साथ सिचाई के साधनों की कमी के कारण यहाँ खेती कभी भी बड़े आर्थिक उपार्जन का विषय नही रहा। पिछले पांच दशकों के दौरान औद्योगिक परियोजनाओं और खनन क्षेत्र में कार्य से ही आर्थिक प्रगति यहाँ के निवासियों की होती रही है। औद्योगिक परियोजनाओं में मानव शक्ति की सीमा होती है, खासकर योग्यता के कारण अक्सर गैर जनपद से ही मानव शक्ति की जरूरतें पूरी होती रही हैं। ऐसे में सोनभद्र सहित आसपास के आधा दर्जन पठारी बाहुल्य जनपदों की लाखों आबादी के लिए पत्थर और बालू खनन ही रोजगार का प्रमुख केंद्र रहा है। खनन क्षेत्रों की गतिशीलता का सीधा असर जनपद के बाजार पर पड़ता रहा है ओबरा, चोपन, डाला, राब‌र्ट्सगंज, रेणुकूट, दुद्धी, अनपरा आदि प्रमुख बाजारों पर खनन क्षेत्र का व्यापक असर रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों के दौरान खनन क्षेत्र में बंदी के बने हालात ने तमाम बाजारों की रौनक को खत्म कर दिया है। खनन में हुयी 90 फीसद की कमी

पिछले दो वर्षों के दौरान खनन बंदी से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर एक लाख रोजगार प्रभावित हुआ है। लगभग 1200 करोड़ की संपत्ति वाले बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र में कभी 150 से ज्यादा खदाने एवं 300 से ज्यदा क्रशर प्लांट थे। लेकिन वर्तमान में मात्र डेढ़ दर्जन खदाने और दो दर्जन के करीब क्रशर प्लांट चल रहे हैं। धारा 20 के प्रकाशन नही होने से बिल्ली मारकुंडी में डोलो स्टोन व लाइम स्टोन के 80 खनन पट्टे, बर्दिया और सिदुरिया की 15 तथा कोटा, रेड़ीया, गुरूदह, ससनई, करगरा, मीतापुर, बड़गवा एवं पटवध की 15 बालू खदानें बंद चल रही हैं। इसके अलावा सलखन, बहुआर, दुगौलिया, हिनौती एवं जुलाली में सैंड स्टोन की खदानों को भी इको सेंसिटिव जोन के तहत कैमूर वन्यजीव प्रभाग में होने पर बंद कर दिया गया है। पत्थर वाली कुल 118 खदानों में 42 खदानों की लीज अवधि भी अब पूरी हो चुकी है। यहीं नहीं ई-टेंडरिग के तहत पिछले वर्ष चालू हुई बालू की खदानें भी धारा 20 के प्रकाशन नहीं होने के कारण बंद हैं।

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