गंगा-जमुनी तह•ाीब का दीदार कराती मस्जिद

महोली (सीतापुर): कठिना नदी के किनारे बसने वाली महोली न सिर्फ इल्म और अदब का गढ़ है, बल्ि

By JagranEdited By: Publish:Sat, 09 Jun 2018 11:15 PM (IST) Updated:Sat, 09 Jun 2018 11:15 PM (IST)
गंगा-जमुनी तह•ाीब का दीदार कराती मस्जिद
गंगा-जमुनी तह•ाीब का दीदार कराती मस्जिद

महोली (सीतापुर): कठिना नदी के किनारे बसने वाली महोली न सिर्फ इल्म और अदब का गढ़ है, बल्कि कौमी एकता और गंगा-जमुनी तह•ाीब की अलंबरदार भी है। यहां मंदिर-मस्जिद एक साथ बने हैं। यहां बनी मस्जिद को थाने वाली मस्जिद कहा जाता है। आदर्श नगर के मोहम्मद फारूक कहते हैं कि इस मस्जिद की नींव एक मुस्लिम दारोगा ने रखी थी। कई दशक पूर्व मुस्लिम दारोगा महोली में तैनात थे। उन्होंने ही यहां मस्जिद बनाने की शुरुआत की थी। इस कारण थाने की जगह में बनी इस मस्जिद को थाने वाली मस्जिद कहा जाता है। पुलिस रिकॉर्ड के सन् 1957 के रजिस्टर उर्दू में हैं। लिहाजा माना जाता है कि 50 के दशक में इस मस्जिद का निर्माण हुआ होगा। यूं तो हर वक्त यहां म•ाहबी मोहब्बतें हिलोरें मारती हैं, लेकिन सुबह और शाम का न•ारा न सिफऱ् कानों में तह•ाीबी रस घोलता है, बल्कि आंखों को भी रूह़ानी सुकून देता है। बहती है गंगा जमुनी तहजीब की रसधारा

थाने वाली मस्जिद के नाम से मशहूर मुस्लिम इबादतघर के आसपास अन्य धार्मिक स्थल है, लेकिन यहां की खास बात यह है कि दोनों ही धर्मों के मानने वाले एक दूसरे का आदर व सम्मान करते हैं। बताते हैं कि जब मस्जिद में नमाज का वक्त होता है तो मंदिरों में बजने वाले ध्वनि यंत्रों की आवाज धीमी कर दी जाती है, ताकि नमाजियों की इबादत में खलल न पड़े। रमजान ने रमजान में पूरी की मस्जिद की जरूरतें

चित्र-09, एसआईटी- 02 महोली स्थित थाने वाली मस्जिद की देखभाल व जिम्मेदारी संभालने वाले मुतवल्ली रमजान अली बताते हैं कि वह कई वर्षों से मस्जिद की देखरेख करते हैं। उनका कहना है कि अवामी चंदे से रमजान में महीने में मस्जिद के अंदर टीनशेड डलवाया गया है और दस सी¨लग फैन लगवाए गए हैं। मस्जिद के बारे में उनका कहना है कि मस्जिद को एक दारोगा ने बनाया था। मस्जिद का रकबा करीब 12 डिस्मिल है। दस साल से इमाम हैं मकसूद अहमद चित्र-09, एसआईटी-03

महोली की थाने वाली मस्जिद में मकसूद अहमद कादरी इमामत करते हैं। उन्होंने बताया कि वो करीब दस बरस से इस मस्जिद में इमामत कर रहे हैं। मूलरूप से वो मिश्रिख थाना क्षेत्र के किशनपुर गांव के रहने वाले हैं, लेकिन महोली का माहौल उन्हें ज्यादा ही पसंद है। इसके अलावा वह कस्बे के दारूल उलूम गुलशन-ए-र•ा के नाम से एक रजिस्टर्ड मदरसे के करीब आधा सैकड़ा बच्चों को उर्दू और अरबी की नि:शुल्क तालीम भी देते हैं। कादरी ने बताया कि इमामत करने से उन्हें रूहानी सुकून मिलता है। रमजान में बच्चे

अबूजर अंसारी ने पहली बार रखा रोजा

चित्र-09, एसआईटी-13

सीतापुर: खैराबाद कस्बे के मोहल्ला करनपुर के रहने वाले मोहम्मद अबूजर अंसारी ने पहली बार रोजा रखा है। उनकी उम्र अभी महज दस साल की है। इनका कहना है कि बचपन से देखते हैं कि उनके दादा दादी व परदादा रोजा रखा करते थे, उन्हीं को देखते हुए उनको प्रेरणा मिली। उन्होंने रोजा रखना शुरू किया है। उनका कहना है कि रोजा रखने से काफी शांति मिलती है। सभी लोगों को चाहिए कि पवित्र रमजान के महीने में रोजा अवश्य रखें।

हाफिज सुहैल भी हैं रोजेदार चित्र-09, एसआईटी-14

सीतापुर: हाफिज मोहम्मद सुहैल का कहना है की पवित्र रमजान में किया गया कोई भी अच्छा कार्य नेकी में गिना जाता है। हम सभी को चाहिए रमजान शरीफ के मुबारक मौके पर अच्छे कार्यों को अंजाम दें, जिससे अल्लाह पाक खुश होकर अपनी रहमत हम लोगों पर बरसाए। उनका कहना है कि हम सभी लोगों को चाहिए कि पवित्र रमजान के महीने में सारे रोजे रखें। तरावीह पढ़ें। लोगों को अच्छे व नेक कार्यों के लिए प्रेरित करें। सुहैल का कहना है कि उन्होंने ने रोजा रखने के साथ ही कशरत से कुरआन की तिलावती की है।

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