नए मिजाज का शहर है, जरा फासले से मिला करो
सिद्धार्थनगर : 'कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से, ये नये मिजाज का शहर है, जरा फासले से मिला करो।' वशीर बद्र की यह पंक्तियां किस संदर्भ में कही गई हैं, किसी से बताने की जरूरत नहीं है। अपना शोहरतगढ़ कुछ इसी राह पर चल पड़ा है। साम्प्रदायिक सौहार्द को लेकर जब कहीं इस जिले के शान में कसीदें पढ़े जाते हैं, तो जरूर कहीं नगर उसका जायका बिगाड़ देता होगा। ऐसा भी नहीं कि शांति कमेटी की बैठकें न होती हों।
शुक्रवार की शाम ने शोहरतगढ़ के नाम को और बदनाम कर दिया, वह जिसके लिए कुख्यात है। बात सिर्फ इतनी थी कि शोहरतगढ़ कस्बे से धार्मिक श्रद्धालुओं की एक पदयात्रा गुजरनी थी। कस्बे में साप्ताहिक बाजार होने से श्रद्धालुओं ने रास्ता बदल लिया। वह निकल पड़े नगर की जामा मस्जिद की तरफ। यह बात भी सुनने में आ रही हैं कि जुलूस में शामिल कुछ उपद्रवियों ने इस दौरान कुछ नारेबाजी की। परिणाम स्वरूप माह भर पूर्व शांति कमेटी की बैठक में एक-दूसरे के सुख का संकल्प लेने वाले खुद को संभाल नहीं पाये। लाठी व वर्दी के जोर पर उन्हें रिश्तों का पाठ पढ़ाने वाली पुलिस भी लहुलुहान हो गई। थानाध्यक्ष डुमरियागंज को सिर में चार टांके लगे हैं। काफी मशक्कत के बाद हालात काबू में है। ऐसे में उपनगर के डा.बी.सी.श्रीवास्तव कहते हैं कि कालेज से लेकर बाजार और हर डगर पर सामाजिक कारोबार में सभी पूरी तरह एक दूसरे पर निर्भर हैं। ऐसे में आखिर ऐसा क्यों होता है कि छोटी-छोटी बातों पर खाकी हमारे संबंधों को याद दिलाए। कस्बे के डा.नसीम का कहना है कि इस घटना ने सभी को शर्मसार किया है। दोनों पक्षों को सदैव सूझ-बूझ से काम लेने की आवश्यकता है। ऐसा न हो कि हवा का झोंका हमारी मित्रता को हिलाकर चल जाये। बता दें यह पहला मौका नहीं जब शोहरतगढ़ में आपसी रिश्ते दरकें हैं। चार वर्ष पूर्व होली के दौरान भी हिन्दू-मुस्लिम समुदाय के लोग आमने-सामने आये थे। इससे पूर्व 2005 व 2007 में भी उपद्रव हुए, मगर बाद में एक दूसरे समुदाय के लोगों ने भलाई का संकल्प लिया। फिर हमारे रिश्ते क्यों दरक रहे हैं, अहम सवाल है। ऐसे में नियाज कपिलवस्तुवी शोहरतगढ़ के नागरिकों से बस यही अपील करते हैं कि -
''उसका घर सिर्फ मंदिर व मस्जिद नहीं,
हर जगह है, मगर वह खुदा एक है,
मिलकर रहना इबादत है बड़ी,
सच्चे बंदों के दिल की दुआ एक है।''