कंडे पाथने वाले हाथ बना रहे सैनिटरी पैड

राजीव गुप्ता, श्रावस्ती : बधाई हो, एक बार फिर से श्रावस्ती ने एक नए इतिहास की रचना की है। गोबर के कं

By JagranEdited By: Publish:Fri, 16 Nov 2018 11:11 PM (IST) Updated:Fri, 16 Nov 2018 11:11 PM (IST)
कंडे पाथने वाले हाथ बना रहे सैनिटरी पैड
कंडे पाथने वाले हाथ बना रहे सैनिटरी पैड

राजीव गुप्ता, श्रावस्ती : बधाई हो, एक बार फिर से श्रावस्ती ने एक नए इतिहास की रचना की है। गोबर के कंडे पाथने वाले हाथ अब सैनिटरी पैड बनाने का काम कर रहे हैं। वह महिलाएं जो कल तक माहवारी को लेकर शर्माती और सकुचाती थीं, वह अब इस मुद्दे पर खुलकर बातचीत करती हैं। इन महिलाओं के साथ ही जिले की तमाम महिलाएं अब नियमित माहवारी को शर्म का विषय नहीं बल्कि स्वस्थ होने का प्रमाण मानती हैं। इस दौरान वह साफ-सफाई का भी विशेष ध्यान रखती हैं। यह सब संभव हुआ है पंचायती राज विभाग के एक अभिनव प्रयोग से। इस अनूठी योजना के तहत जिला मुख्यालय से सटे पांडेयपुरवा गांव में विभाग द्वारा सैनिटरी पैड बनाने का काम शुरू किया गया है। जिसमें 12 महिलाओं को रोजगार मिला है। इन सैनिटरी पैड को सेहत महकमा और आवासीय विद्यालय खरीद रहे हैं।

इस प्रयोग से क्षेत्र की महिलाओं को रोजगार मिला साथ ही उनमें जागरूकता भी आई। जिसके चलते गांवों की तस्वीर भी बदली है। इस यूनिट के लिए पहली बार कोयंबटूर से मशीन और कच्चा माल मंगाया गया था, लेकिन अब कानपुर से कच्चा माल आता है। एक दिन में यह महिलाएं मिल कर 800-900 सैनिटरी पैड बना लेती है। इसके बाद इन्हें 6-6 के पैकेट में पैक किया जाता है। इन सभी को दो हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय दिया जाता है।

आर्थिक स्थिति सुधर गई

यहां काम कर रहीं गीता वर्मा और माधुरी ने बताया कि छह माह पहले तक हम लोग घर के काम करते थे और गोबर के उपले बनाने का काम करती थीं। इस केंद्र पर आने के बाद हम लोगों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आ गया। गायत्री शुक्ला और राधा का कहना है कि जब पहली बार नैपकिन देखा तो सब औरतें उसको छू-छू कर हंसती थी, शर्म भी आती थी, लेकिन कुछ दिनों बाद सब कुछ सामान्य हो गया। संगीता और दीपिका बताती हैं कि नैपकिन बनाने का काम यह सुनते ही मर्द ने मुंह बिचकाते थे, लेकिन जब घर में दो पैसे आने लगे तो सबको अच्छा लगने लगा।

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