बर्बरता को याद कर सिहर उठते हैं मीसाबंदी

संतकबीर नगर: 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लागू होने के बाद से पुलिस और प्रशासन की बर्बरता चरम प

By Edited By: Publish:Fri, 24 Jun 2016 10:50 PM (IST) Updated:Fri, 24 Jun 2016 10:50 PM (IST)
बर्बरता को याद कर सिहर उठते हैं मीसाबंदी

संतकबीर नगर:

25 जून 1975 को देश में आपातकाल लागू होने के बाद से पुलिस और प्रशासन की बर्बरता चरम पर हो जाने से सभी को अपना ही देश पराया लगने लगा था। उस दौरान के अनुभवों को सोचकर आज भी मीसाबंदियों के शरीर में कंपन उठने लगती है। अनेक सामाजिक और राजनैतिक कार्यकर्ताओं को जेलों में डाल दिया गया था। अट्ठारह माह तक पूरे देश में आपातकाल से हाहाकार मच गया था। हालांकि आपातकाल के बंदियों को अब लोकतंत्र रक्षक सेनानी का दर्जा मिलने से पेंशन मिल रही है।

सामाजिक कार्यकर्ता गिरिराज ¨सह बताते हैं कि आपात काल लागू करने की घोषणा होते ही गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया था। इसके दो दिन बाद ही संघ कार्यकर्ता चंद्रशेखर राय समेत क्षेत्र के अनेक लोगों को गिरफ्तार करके बस्ती जेल भेज दिया गया। इस दौरान लोकतंत्र बचाने को लेकर नेताओं के आह्वान पर सभी रात्रि में पर्चा हाथ से लिखकर दिन भर चुपके से बांटने का कार्य करते थे। 8 दिसंबर को बस्ती जिला मुख्यालय पर जिलाधिकारी कार्यालय के सामने पर्चा बांटते हुए उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया था। तीन माह तक जेल में रहने के दौरान पुलिस परिवार के लोगों को प्रताड़ित करती थी। पारिवारिक समस्या होने से वह जमानत लेकर बाहर निकले थे वह बताते हैं कि पुलिसिया आतंक से सड़कों पर कोई सुरक्षित नहीं रह गया था।

कस्बे के केवटलिया मुहल्ले के निवासी सरयू ¨सह बताते हैं कि उन्हे भी तीन माह से अधिक समय तक जेल में रहना पड़ा था। गिरफ्तारी शुरु होने के दौरान ही थानाध्यक्ष टीएन राय ने उन्हे मिलने के लिए बुलाकर जेल भेज दिया था। वह कहते हैं कि आपात काल के दौरान लगता ही नहीं था कि वह अपने ही देश की चुनी सरकार के शासनकाल में रह रहे हैं।

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मेहदावल के कछार क्षेत्र निवासी श्याम मोहन यादव ने बताया कि आपात काल के चरम पर होने से जेल भरो आंदोलन शुरु किया गया था। इस दौरान उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया था। उस दौर के अट्ठारह महीने बहुत कठिन रहे जिसे वह जीवन भर नहीं भुला सकते हैं। वह बताते हैं कि प्रतिबंध के कारण समाचारपत्र भी सिर्फ सरकार की बातें ही छापते थे।

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हर तरफ थी हाहाकार: बद्री यादव

लोकतंत्र रक्षक सेनानी बद्री प्रसाद यादव बताते हैं कि आपातकाल के दौरान सड़क और चौराहे पूरी तरह से सूने दिखते थे। इस दौरान किसी की भी बात सुनना तो दूर केवल पुलिस का ही राज कायम हो गया था। गिरफ्तारी के लिए पुलिस परिवार के लोगों को प्रताड़ित करती थी। वह आपातकाल के विरोध में आवाज उठाने को देश के आजादी की दूसरी जंग बताते हैं।

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