सरकारी नौकरी ठुकराकर जंग-ए-आजादी में कूदे थे सूबा सिह

देश को आजादी दिलाने का जज्बा सिर चढ़कर बोला तो रेलवे की सरकारी नौकरी को ठोकर मारकर आजादी की जंग में कूद गए थे सूबा सिंह। जेल में सजा काटी जंगलों में रातें गुजारीं। आखिर अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। देश आजाद हुआ तो सबसे पहले थाना बड़गांव पर तिरंगा फहराया था।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 11 Aug 2020 10:45 PM (IST) Updated:Tue, 11 Aug 2020 10:45 PM (IST)
सरकारी नौकरी ठुकराकर जंग-ए-आजादी में कूदे थे सूबा सिह
सरकारी नौकरी ठुकराकर जंग-ए-आजादी में कूदे थे सूबा सिह

सहारनपुर, जेएनएन। देश को आजादी दिलाने का जज्बा सिर चढ़कर बोला तो रेलवे की सरकारी नौकरी को ठोकर मारकर आजादी की जंग में कूद गए थे सूबा सिंह। जेल में सजा काटी, जंगलों में रातें गुजारीं। आखिर अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। देश आजाद हुआ तो सबसे पहले थाना बड़गांव पर तिरंगा फहराया था।

क्षेत्र के मोरा निवासी ठा. खजान सिंह के पुत्र सूबा सिंह वर्ष 1929 में भारतीय रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर नियुक्त हुए थे। गांधी जी के आह्वान पर नौकरी को ठोकर मारकर सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया। 31 जुलाई 1930 को जेल गये ओर एक साल कठोर कारावास की सजा मिली। 19 दिसंबर-32 में फिर छह माह की कैद व पचास रुपये जुर्माना भरना पड़ा। 25 मई-33 को वह रिहा हुए। व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में शामिल होने के जुर्म में 25 जनवरी 41 को तीन माह का कठोर कारावास व 200 रुपये जुर्माना किया गया। उन्हें 15 फरवरी 1941 को मेरठ भेज दिया गया। भारत छोड़ो आंदोलन में 1942 में जेल में नजरबंद रहना पड़ा।

1947 में आजादी मिली तो उन्होने सबसे पहले बड़गांव थाने पर तिरंगा फहराया। आंदोलन व जेल में उनके साथ सुल्तान सिंह पुत्र बुच्चा सिंह निवासी बरसी को भी दो बार जेल जाना पड़ा। हरदय राम पुत्र तेजा सिंह निवासी मनोहरा तत्कालीन थाना बडगांव आज नानोता को भी दो बार जेल में सजा काटनी पड़ी थी।

ठा. सूबा सिंह के परिजन नरेंद्र सिंह ने बताया कि उनको मिले ताम्रपत्र व अन्य कागज उन्होंने आज तक संजो कर रखे हुए हैं। वे बताते हैं कि कई बार अधिकारियों को मिले और अपने बच्चों की शिक्षा सैनिक स्कूल या किसी अच्छे विद्यालय में कराने, ठा. सूबा सिंह के नाम नानोता मोरा मार्ग या फिर बड़गांव मोरा का मार्ग नामकरण कराने की मांग की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।

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