12 साल के मुकदमे में ढाई माह में सुना दी सजा

- न्यायाधीश संजय कुमार ने छह को दोषी करार देकर चार को सुनाई फांसी की सजा - शेष एक को उम्र कैद और दूसरे को 10 साल कारावास की सजा सुनाई आरोप सिद्ध न होने पर दो किए बरी

By JagranEdited By: Publish:Sun, 03 Nov 2019 10:49 PM (IST) Updated:Tue, 05 Nov 2019 06:27 AM (IST)
12 साल के मुकदमे में ढाई माह में सुना दी सजा
12 साल के मुकदमे में ढाई माह में सुना दी सजा

मुस्लेमीन, रामपुर: सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर पर हमले में जो फैसला 12 साल से नहीं आ पा रहा था वह न्यायाधीश संजय कुमार ने ढाई माह में दे दिया। मामले में छह को हमले का दोषी करार देते हुए चार आतंकियों को फांसी की सजा सुनाई। इस मुकदमे की सुनवाई दो चार नहीं, बल्कि दस जजों ने की, लेकिन इतनी तेजी से किसी ने नहीं की, जितनी न्यायाधीश संजय कुमार ने, जबकि हाईकोर्ट ने दो बार इसे शीघ्र निस्तारित करने के आदेश दिए थे। करीब तीन साल तक तो इस मामले में सिर्फ तारीखें ही पड़ती रहीं।

सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर पर 31 दिसंबर 2007 की रात आतंकी हमला हुआ था, जिसमें सात जवान शहीद हो गए थे। एक रिक्शा चालक की भी मौत हुई थी। मामले में पुलिस और एटीएस ने पूरी सक्रियता दिखाई और आठ आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने जांच पड़ताल के बाद अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी लेकिन, इसके बाद अदालती सुनवाई बेहद ढीली रही। गवाह अदालत में गवाही देने नहीं आ रहे थे। ऐसे में वारंट जारी करने पड़े। इसके बाद ही वे अदालत में बयान दर्ज कराने पहुंचे। इसके बाद भी सुनवाई में तेजी नहीं आई। इस पर हाईकोर्ट ने 2014 और 2015 में मुकदमे की सुनवाई तेजी से करने और शीघ्र फैसला सुनाने के आदेश दिए। 2016 में सभी गवाहों की सुनवाई पूरी हो गई। इसके बाद करीब तीन साल तक सिर्फ तारीखें ही पड़ती रहीं। इसके कई कारण रहे। कभी चुनाव तो कभी त्योहारों पर पुलिस की व्यस्तता के चलते और कई बार वकीलों की हड़ताल के कारण सुनवाई टलती रही।

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न्यायाधीश को 18 जुलाई-19 को मिली मुकदमे की जिम्मेदारी

18 जुलाई 2019 को अपर जिला जज संजय कुमार को इस मुकदमे की सुनवाई करने की जिम्मेदारी मिली। उन्होंने दोनों पक्षों के वकीलों की बहस सुनी। बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता एमएस खान दिल्ली से पैरवी के लिए रामपुर आते थे, जबकि स्थानीय अधिवक्ता जमीर रिजवी भी उनकी पैरवी कर रहे थे। इसी तरह अभियोजन पक्ष की ओर से जिला शासकीय अधिवक्ता दलविदर सिंह डंपी और सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता अमित सक्सेना, एटीएस के वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी अतुल कुमार ओझा भी अदालत में पैरवी के लिए हर तारीख पर आ रहे थे। दोनों पक्षों को सुनने के बाद संजय कुमार ने 19 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया। एक नवंबर को उन्होंने फैसला सुनाया और दो नवंबर को चार आतंकियों मुहम्मद फारुख, इमरान शहजाद, शरीफ व सबाउद्दीन को फांसी की सजा सुना दी, जबकि जंग बहादुर को उम्रकैद और फहीम अंसारी को 10 साल की सजा दी।

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पहली बार सुनाई फांसी की सजा

संजय कुमार मार्च 1996 से न्यायिक सेवा में हैं लेकिन, फांसी की सजा पहली बार सुनाई है। उन्होंने सात जवानों और रिक्शा चालक की हत्या करने में चारों को फांसी की सजा दी। इसके साथ ही स्वचालित हथियारों का इस्तेमाल करते हुए हत्या करने के में आईपीसी की धारा 27(3) आयुध अधिनियम के तहत भी फांसी की सजा सुनाई। आतंकियों ने हैंड ग्रेनेड दागने के साथ ही एके-47 रायफल से गोलियां भी चलाई थीं। न्यायाधीश ने 206 पेज के फैसले में माना कि इन आतंकियों ने देश से युद्ध करने जैसा जघन्य अपराध किया है। इसलिए इन्हें फांसी सजा दी जाती है।

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