केले की खेती से मालामाल हुए राजपाल

दढि़याल (रामपुर)। बेमौसम आंधी बारिश से जहां गेहूं की फसल बर्बाद होने से अधिकतर किसान तबाह हो गए हैं,

By Edited By: Publish:Sun, 26 Apr 2015 10:28 PM (IST) Updated:Sun, 26 Apr 2015 10:28 PM (IST)
केले की खेती से मालामाल हुए राजपाल

दढि़याल (रामपुर)। बेमौसम आंधी बारिश से जहां गेहूं की फसल बर्बाद होने से अधिकतर किसान तबाह हो गए हैं, वे सरकार से मुआवजे के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं कुछ किसान ऐसे भी हैं जो परंपरागत खेती से हटकर फसल करके मौसमी तबाही से न केवल बच रहे हैं बल्कि मुनाफा भी अधिक कमा रहे हैं। को तोड़ भी रहे हैं। ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान हैं टांडा क्षेत्र के लोहर्रा गांव निवासी राजपाल सिंह। जिन्होंने केले की खेती को अपनाया है। इससे अनाज की फसलों से ज्यादा मुनाफा भी कमा रहे हैं और बारिश से भी कोई नुकसान नहीं हुआ।

अधिकतर किसान फसलों की परंपरा में बदलाव करना नहीं चाहते। वे फसल चक्र तक नहीं अपनाते, ताकि जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ सके। लगातार एक जैसी ही फसलें करते रहते हैं। इसलिए वे मौसम के शिकार भी होते रहते हैं। इस बार भी फसलें मौसम का शिकार हो गर्ई। गेहूं की फसल पूरी तरह चौपट हो गई, जबकि आलू, सरसों, लाही, सब्जी और पालेज भी बारिश से नहीं बच सकीं। फसलों के नुकसान से किसानों की कमर टूट गई, मगर कुछ किसान फसलों की परंपरा छोड़ रहे हैं। काशीपुर-दढि़याल मार्ग पर तहसील टांडा का जमालगंज का मझरा लोहर्रा निवासी राजपाल ने परंपरा से हटकर खेती शुरू की है, उन्होंने केले की खेती की है। वह बताते हैं कि एक एकड़ में पांच सौ कुंटल तक फसल होती है। कम से कम इसका रेट 12 या 15 रुपये किलो के हिसाब से मिलता है। इसलिए चार से पांच लाख तक की फसल हो जाती है, जो दूसरी फसलों से काफी बेहतर है।

इनकी देखा देखी इस फसल को और किसानों ने भी अपनाया है। अब लोहर्रा में लगभग 15 एकड़ केले की खेती हो रही है। किसानों का कहना है कि गेहूं और गन्ना की खेती से दोगुनी आमदनी होती है। गांव के जोगेंद्र सिंह, मनोज कुमार, अशोक कुमार, जितेंद्र, संजीव कुमार, अमन सिंह एक, जगत सिंह एक, जगवीर सिंह, मेवला फार्म में किसान यशपाल सिंह और जितेंद्र पाल भी केले की खेती कर रहे हैं।

इन किसानों का कहना है खेती पहले हमने ट्राइल के रूप में की थी। इसका बीज हम बाराबंकी से लाए थे। यह टींशु कल्चर से तैयार होता है। इसको जून व जुलाई के बीच लगाया जाता है। एक पेड़ में 20 से 50 किलो तक फल आता है। इसकी तीन फसलें काटी जा सकती हैं। पेड़ी में खर्च नोलक से आधा आता है, परन्तु आमदनी पूरी होती है। बारिश का भी फसल पर कोई असर नहीं होता।

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