Lok Sabha Election 2024: अब तक बस चर्चाओं में ही लड़ रहे 'चार गांधी', रायबरेली सीट पर कांटे से कांटा निकालने की जुगत में शीर्ष नेतृत्व

पहले चरण के चुनाव की अधिसूचना जारी हो चुकी है लेकिन लोगों की निगाहें अमेठी रायबरेली सुलतानपुर की सीटों पर लगी हैं क्योंकि अमेठी में स्मृति इरानी को छोड़कर सारे उम्मीदवार चर्चा में हैं। सोनिया के बाद रायबरेली से कौन? क्या मेनका-वरुण का टिकट कटेगा? राहुल अमेठी से लड़ेंगे या नहीं? सुलतानपुर से अजय सिंह और रायबरेली से पुलक त्रिपाठी की रिपोर्ट...

By Jagran NewsEdited By: Vinay Saxena Publish:Fri, 22 Mar 2024 08:16 AM (IST) Updated:Fri, 22 Mar 2024 08:16 AM (IST)
Lok Sabha Election 2024: अब तक बस चर्चाओं में ही लड़ रहे 'चार गांधी', रायबरेली सीट पर कांटे से कांटा निकालने की जुगत में शीर्ष नेतृत्व
राहुल गांधी, प्र‍ियंका वाड्रा, मेनका गांधी और वरुण गांधी।

सुलतानपुर/रायबरेली, अजय स‍िंह/पुलक त्र‍िपाठी। सबसे पहले कुछ दिलचस्प चर्चाओं की चर्चा करते हैं। सुलतानपुर सीट को लेकर चर्चा है कि मेनका गांधी पीलीभीत और वरुण गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ें तो स्थिति मजबूत हो सकती है। चर्चाओं के अनुसार मेनका को सुलतानपुर सीट से इस बार चुनाव मैदान में उतारने से मना कर दिया गया है। उनके सामने पीलीभीत का विकल्प है, जबकि वरुण को लेकर संशय है।

ऐसी दशा में वरुण को रायबरेली सीट पर भेजे जाने का दांव पार्टी आजमाने की जुगत में है। वहीं, सुलतानपुर सीट से स्थानीय प्रत्याशी उतारने की तैयारी है। बहरहाल, इन चर्चाओं पर विराम तो कांग्रेस और भाजपा ही लगाएंगी। लगातार दो चुनावों में भाजपा सुलतानपुर सीट पर अपराजेय रही। 2014 के चुनाव में यहां से वरुण गांधी तो 2019 में उनकी मां मेनका गांधी सांसद बनीं।

इस बार भाजपा जीत की हैट्रिक लगाने की फिराक में है। यहां से किसी नए और स्थानीय चेहरे को मौका देने की चर्चा है। इसमें इनमें जिलाध्यक्ष डा. आरए वर्मा का नाम खास तौर पर चर्चा में है। विधायक राजेश्वर सिंह, राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ल समेत अन्य कुछ नामों को लेकर भी कयासों का दौर चल है। फैजाबाद मंडल में सबसे कमजोर सीट अंबेडकरनगर मानी जा रही थी, लेकिन भाजपा ने बसपा के वर्तमान सांसद रितेश पांडेय को पाले में कर बड़ा दांव चल दिया है। वहीं, लखनऊ मंडल में भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी रायबरेली है। कारण, लगातार कांग्रेस व गांधी परिवार का कब्जा है।

चर्चाओं के शोर से पसरा सन्नाटा

अमेठी की चर्चाएं सुनिए... भाजपा से कुमार विश्वास चुनाव लड़ेंगे..। अरे नहीं नुपूर शर्मा लड़ेंगी...। मंत्री दिनेश प्रताप सिंह के जनसंपर्क से लग रहा है कि टिकट दिनेश को ही मिलेगा। ऐसा नहीं है... अजय अग्रवाल ने सोनिया को कड़ी टक्कर दी थी। यह सब हवा हवाई बातें हैं। मनोज पांडेय को टिकट मिलेगा, लेकिन महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह भी तो मैदान में ताल ठोक रहे हैं। नए-नए उम्मीदवारों के नाम को लेकर इस तरह की हवाओं को लेकर मतदाता पसोपेश में है तो वहीं पार्टी संगठन भी प्रत्याशियों को लेकर चुप्पी साधे हुए है। रायबरेली से प्रियंका वाड्रा का नाम खूब चर्चा में है। दिल्ली में पार्टी की केंद्रीय बैठक में प्रियंका गांधी की मौजूदगी ने एक बार फिर उनके लड़ने की चर्चा की हवा तेज हो गई हैं, पार्टी के पदाधिकारी भी प्रियंका को यहीं से चुनाव लड़ाने को लेकर मांग कर चुके हैं।

कार्यकर्ता की ओर से तिराहे-चौराहों पर होल्डिंग लगाकर प्रियंका को चुनाव लड़ाने की मांग कर रहे हैं। इधर बीच आशीष कौल को लेकर भी इंटरनेट मीडिया पर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। आशीष दिवंगत कांग्रेस नेता शीला कौल की बेटी दीपा कौल के बेटे हैं। गांधी परिवार से किसी के न लड़ने पर इन्हें भी अवसर दिया जा सकता है। बहुजन समाज पार्टी से चार लोगों ने आवेदन किया है। बीएसपी भी चुनावी मैदान में प्रत्याशी को उतारने को लेकर चुप है। वह भाजपा, कांग्रेस के उम्मीदवारों व समीकरण को देखकर उम्मीदवार तय करने के बाद घोषणा करने की योजना पर काम कर रही है।

गांधी नाम के सहारे कमजोरी दूर करने की जुगत में भाजपा

ऐसे में इस बार भाजपा भी गांधी नाम के सहारे ही अपनी कमजोरी को दूर करने की जुगत में है। इस खांचे के लिहाज से वरुण गांधी का नाम फिट बैठ रहा है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक पीलीभीत से इनके नाम पर न नुकुर करने वाले नेताओं को यह सुझाव बेहतर विकल्प नजर आ रहा है। ऐसे में ज्यादा संभावना मेनका गांधी को पीलीभीत से लड़ाने की बन रही है, जबकि वरुण को रायबरेली शिफ्ट कर कांग्रेस के किले को ध्वस्त करने की रणनीति तैयार हो रही है।

यहां देखें लोकसभा चुनाव 2024 का पूरा शेड्यूल

पार्टी सूत्रों का कहना है कि यदि कांग्रेस से गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव मैदान में नहीं उतरा तो वरुण भी रायबरेली के नाम पर हामी भर सकते हैं। वरुण रायबरेली जाते हैं तो मेनका गांधी का संकट भी दूर हो जाएगा। वरुण गांधी के लिए नामांकन पत्र खरीदे जाने को जानकार शीर्ष नेतृत्व पर दबाव बनाने की रणनीति बता रहे हैं। वहीं, मेनका गांधी के करीबी कार्यकर्ता भी दावा कर रहे हैं कि वह यहीं से ही चुनाव लड़ेंगी।

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