शिक्षा के साथ संस्कार और सलीखा भी सिखाया

-शिक्षिका शक्ति ¨सह ने एक साल में बदल दी प्राथमिक स्कूल घूंसरी की तस्वीर फोटो- 21,22 अनि

By JagranEdited By: Publish:Tue, 25 Sep 2018 05:53 PM (IST) Updated:Tue, 25 Sep 2018 11:47 PM (IST)
शिक्षा के साथ संस्कार और सलीखा भी सिखाया
शिक्षा के साथ संस्कार और सलीखा भी सिखाया

अनिल श्रीवास्तव, रायबरेली : जिन बच्चों को क-ख-ग नहीं आता था। उठने-बैठने का सलीका तक नहीं पता था। उनका स्कूल में मिट्टी भरे पैरों से जाकर सीधे टाटपट्टी पर बैठना आम था। वहां अब सब कुछ बदल गया है। बात हो रही है क्षेत्र के घुंसरी गांव के प्राथमिक विद्यालय की। ऊपर लिखा नजारा एक साल पहले का था अब उसी प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका की मेहनत ने ²श्य बदल दिया है।

शिक्षिका शक्ति ¨सह की जब स्कूल में तैनाती हुई तो यहां का नजारा देख वह खुद चौंक गईं। बड़ी चुनौती थी कि बच्चों को व्यवहारिक ज्ञान के साथ पठन-पाठन कैसे कराया जाए। बच्चे यह तक नहीं समझते थे कि कीचड़ से सने पैर लेकर कक्षा में नहीं बैठा जाता है। अक्षर ज्ञान तक उन्हें नहीं मालूम था। इसके बाद शिक्षिका शक्ति ¨सह ने पहले कखग सिखाया, फिर देखा कि बच्चे रंगों की पहचान तथा फलों को भी वह नहीं समझ पा रहे थे तो इसका तोड़ निकाला। ब्लैक बोर्ड पर ¨हदी और अंग्रेजी के दोनों शब्दों में यानी अंग्रेजी के एप्पल और सेब दोनों से

परिचय कराया और सेब का चित्र भी बना कर दिखाया इस तरह से धीरे-धीरे जहां बच्चे फलों को पहचानने लगे। वहीं अंग्रेजी में भी उन्हें नाम याद हो गए।

पैसे खर्च कर बेंच बनवाई

इसके अलावा मोबाइल के सहारे स्पीकर ऑन कर 1 से 100 तक की गिनती तथा दोपहर 12 से 1 के बीच में मोटिवेशनल स्टोरीज के सहारे संस्कार डालने की कोशिश की। देखा कि विद्यालय में सात आठ साल पहले भेजी गई चौकिया खराब पड़ी थी जिनमें कई के पाए सड़ गए थे। इस पर एक बढ़ई को बुलाकर 5000 रुपये अपनी जेब से खर्च किए और कुछ चौकियों को दुरुस्त कराया। खराब पड़ी बेंचें भी बनवाई। अब बच्चे उन बेंच पर व चौकियों पर बैठकर पढ़ाई करते है।

खुद दी बच्चों को डायरी

बच्चे स्कूल में क्या कर रहे हैं। होमवर्क क्या दिया गया है। इसकी सम्यक जानकारी अभिभावक तक कैसे पहुंचे इसके लिए शिक्षिका ने हर बच्चे को डायरी खरीद कर दी है।

जब शिक्षिका शक्ति ¨सह से इस विषय में बात की गई तो उन्होंने बताया कि पूर्व में लखनऊ के अवध विद्यालय में बतौर शिक्षिका तैनात थी और उसके बाद सचिवालय में जॉब करती थी। उन्होंने सचिवालय की नौकरी छोड़कर शिक्षण कार्य ही करना चाहा और पुन: उन्हें अवसर मिला।

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