समता की पतवार से पार लग रही शिक्षा की नैय्या

मनीष तिवारी ग्रेटर नोएडा शहर के नामी स्कूलों के बड़े नाम व ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों में सरकारी नियम दब जाते हैं। इन नियमों में से एक है शिक्षा का अधिकार (आरटीई)। इसके तहत सभी स्कूलों को अपने यहां सीटों के सापेक्ष गरीब परिवार के 25 फीसद बचों को प्रवेश देना होता है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 08 Aug 2020 07:20 PM (IST) Updated:Sun, 09 Aug 2020 06:13 AM (IST)
समता की पतवार से पार लग रही शिक्षा की नैय्या
समता की पतवार से पार लग रही शिक्षा की नैय्या

मनीष तिवारी, ग्रेटर नोएडा

शहर के नामी स्कूलों के बड़े नाम व ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों में सरकारी नियम दब जाते हैं। इन नियमों में से एक है शिक्षा का अधिकार (आरटीई)। इसके तहत सभी स्कूलों को अपने यहां सीटों के सापेक्ष गरीब परिवार के 25 फीसद बच्चों को प्रवेश देना होता है। स्कूल प्रबंधन अपने रसूख के दम पर नियम को दरकिनार कर देते हैं। गरीब परिवार के बच्चों को सरकारी नियम का अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ रही हैं श्वेता अग्रवाल। पिछले दो वर्ष में 120 से अधिक बच्चों का दाखिला नामी स्कूलों में करा चुकी हैं।

गरीब लोग को नियम की जानकारी नहीं होती, जिन्हें होती है वह तमाम पेचीदगियों से पार नहीं पाते हैं। इक्का-दुक्का लोग यदि वहां तक पहुंच जाएं तो स्कूल प्रबंधन उन्हें दाखिला नहीं देते हैं। गरीब परिवार के बच्चों के लिए आरक्षित सीटों पर स्कूल अन्य को दाखिला देकर मोटी फीस वसूल करते हैं। ऐसे परिवार के लोग की लड़ाई लड़ने की जिम्मेदारी श्वेता ने उठाई। पहले उन्होंने सोशल साइट्स के विभिन्न ग्रुप पर उन्होंने नियम का हवाला देकर लोग को जागरूक किया। गरीब परिवार के लोग से आवेदन मांगे। ग्रुप पर जुड़े लोग ने अपने यहां पर काम करने वाले प्लंबर, माली, ड्राइवर, सफाईकर्मी, मेड के बच्चों का दाखिला कराने के लिए श्वेता से आग्रह किया।

श्वेता बताती हैं कि वह ड्रॉप बाई ड्रॉप फाउंडेशन से जुड़ी हैं। प्रवेश कराने से पूर्व बच्चे के कागज तैयार कराने होते हैं। वह जिम्मेदारी स्वयं उठाई जाती है। फार्म भरने के बाद शिक्षा विभाग में जमा कराया जाता है। स्कूल प्रबंधन उसमें तमाम कमियां निकालते हैं। सभी को दूर किया जाता है। बाद में प्रवेश देने में प्रबंधन तमाम बहाने बनाते हैं। सभी से पार पाते हुए बच्चों को दाखिला दिलाया जाता है। श्वेता बताती हैं यह काम करने में उन्हें अच्छा महसूस होता है। कई स्कूलों ने उन्हें बुलाकर प्रवेश न कराने के लिए दबाव बनाया, लेकिन उसके आगे झुका नहीं गया। जो परिवार बच्चों की किताब या ड्रेस नहीं खरीद पाते हैं, उसकी व्यवस्था करती हैं।

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