Kargil Vijay Diwas: घुटने में लगी गोली, फिर भी दुश्मनों के उखाड़ दिए कदम

1935 में जब भारत गुलाम था दिल्ली के एक छोटे से गांव नंगली पूना में कैप्टन सुरेंद्र सिंह राणा का जन्म हुआ। पराधीनता उन्हें स्वीकार नहीं थी। उस समय चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन ने उनके अंदर राष्ट्र प्रेम की भावना जागृत कर दी।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Sat, 31 Jul 2021 04:08 PM (IST) Updated:Sat, 31 Jul 2021 04:08 PM (IST)
Kargil Vijay Diwas: घुटने में लगी गोली, फिर भी दुश्मनों के उखाड़ दिए कदम
घुटने में लगी गोली, दुश्मनों के उखाड़े कदम

 ग्रेटर नोएडा [अजब सिंह भाटी]। 1935 में जब भारत गुलाम था, दिल्ली के एक छोटे से गांव नंगली पूना में कैप्टन सुरेंद्र सिंह राणा का जन्म हुआ। पराधीनता उन्हें स्वीकार नहीं थी। उस समय चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन ने उनके अंदर राष्ट्र प्रेम की भावना जागृत कर दी। कैप्टन सुरेंद्र स्कूल के मेधावी छात्र थे, वे हर कक्षा में अव्वल आते। पढ़ाई के साथ उनकी खेल में भी रुचि थी। वे हॉकी के एक अच्छे खिलाड़ी थे। पर उनके मन में देश सेवा करने की भावना प्रबल हो रही थी।

1962 में भारत-चीन के युद्ध के दौरान उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर भर्ती हो गए और युद्ध में अपनी वीरता प्रदर्शित की। तीन साल बाद भारत-पाकिस्तान के 1965 के युद्ध में भी उन्होंने अपनी वीरता का परचम लहराया। युद्ध में उनकी भूमिका अग्रिम पंक्ति की रही। उनकी टीम यूनिट 01 मद्रास रेजीमेंट को कश्मीर घाटी में तैनात किया गया। जहां उन्होंने पाकिस्तान सेना के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते हुए दुश्मन के दांत खट्टे कर दिये।

युद्ध के दौरान उनके घुटने में गोली लग गई। फिर भी उन्होंने मैदान नहीं छोड़ा और लड़ते रहे। युद्ध समाप्ति के उपरांत घुटने में गोली लगने के कारण उन्हें फौज की नौकरी छोड़नी पड़ी। इसके बाद भी कैप्टन सुरेंद्र सिंह राणा ने हिम्मत नहीं हारी और कठिन परिश्रम कर यूपीपीसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण कर सेल्स टैक्स आफिसर का पदभार संभाला।

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