फूलों की खुशबू से आबाद हुआ था फुलत

खतौली में सिकंदर लोधी के गुरु के नाम से आबाद फुलत गांव ऐतिहासिक धरोहर समेटे हुए है। देश की आन बान और शान के लिए अपनी शहादत देने वाले योद्धाओं की भूमि होने के बावजूद फुलत अपनी मूलभूत पहचान बनाए रखने के लिए जूझ रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 02 Dec 2020 12:09 AM (IST) Updated:Wed, 02 Dec 2020 12:09 AM (IST)
फूलों की खुशबू से आबाद हुआ था फुलत
फूलों की खुशबू से आबाद हुआ था फुलत

जेएनएन, मुजफ्फरनगर। खतौली में सिकंदर लोधी के गुरु के नाम से आबाद फुलत गांव ऐतिहासिक धरोहर समेटे हुए है। देश की आन, बान और शान के लिए अपनी शहादत देने वाले योद्धाओं की भूमि होने के बावजूद फुलत अपनी मूलभूत पहचान बनाए रखने के लिए जूझ रहा है।

तहसील खतौली से तीन किमी दूर पश्चिम में बसे फुलत गांव एक ऐतिहासिक बस्ती है। हुज्जातुल इस्लाम शाह वलीउल्लाह ने इसे करायातुल सालीहीन पुकारा था। बताते है कि यहां से 1872 हिजरी में सिकंदर लोधी का कारवां गुजरा था। सिकंदर लोधी के गुरु काजी यूसुफ नासिद्दी को यहां फूलों की खुशबू आई और उन्होंने लाल मस्जिद के समीप एक पेड़ के नीचे सिकंदर लोधी के पुत्रों और सैनिकों को शिक्षा दी। फूलों की खुशबू से ही गांव का नाम फुलत पड़ा। बताते हैं कि हजरत शाह वली उल्लाह के पिता हजरत शाह अब्दुर्रहीम को पैगंबर मोहम्मद साहब ने सपने में अपनी दाढ़ी के दो बाल दिए थे। जब उनकी आंख खुली तो बाल तकिए के नीचे रखे हुए मिले, जिनमें से एक बाल हजरत शाह वलीउल्लाह को मिला। वह उसे दिल्ली साथ ले गए। पैगंबर के एक बाल को उनके शागिर्द कश्मीर ले गए। दाढ़ी का एक बाल शाह अब्दुर्रहीम के बेटे शाह एहतुल्लाह के पास फुलत में है। इसके अलावा गांव में एक पट्टी पर कलम से कुरान पाक की आयतें लिखीं हुई हैं। पैगंबर के कदम शरीफ (पत्थर पर पैर के निशान) भी मौजूद हैं।

महात्मा गांधी ने किया था नमन

फुलत की सरजमीं को 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी नमन किया तथा प्रशंसा में जो पत्र लिखा वह फैजुल इस्लाम हाईस्कूल प्रबंधक कमेटी के पास सुरक्षित रखा है। कारगिल युद्ध में गांव के जांबाज सतीश कुमार ने दुश्मनों के दांत खट्टे कर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।

फुलत गांव वलियों और जंग-ए-आजादी के मतवालों की सरजमीं है। जंग-ए-आजादी में पुरुषों के साथ यहां की महिलाओं ने देश प्रेम का जज्बा दिखाया। ऐतिहासिक धरोहर के रूप में इसे विश्व पटल पर जगह मिली चाहिए।

-कारी हिफजुर्रहमान, ग्रामीण

फुलत की जमीं से खुशबू आती थी। यहां आने वाले जूते उताकर नंगे पांव दाखिल होते थे। बाहर से आने वाले लोग शाह वली उल्लाह और शाह एहतुल्ला की जियारत करते थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी गांव में आए थे।

रहीमुद्दीन अंसारी

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