क्राइम कैपिटल कैसे संभाल पाएगी सीनियर सिटीजन पुलिस

मुजफ्फरनगर : हाईवे पर बसा जनपद व पुलिस से तेज अपराधियों की चाल और कमान का जिम्मा है सीनियर सिटीजन पु

By JagranEdited By: Publish:Tue, 27 Jun 2017 11:50 PM (IST) Updated:Tue, 27 Jun 2017 11:50 PM (IST)
क्राइम कैपिटल कैसे संभाल पाएगी सीनियर सिटीजन पुलिस
क्राइम कैपिटल कैसे संभाल पाएगी सीनियर सिटीजन पुलिस

मुजफ्फरनगर : हाईवे पर बसा जनपद व पुलिस से तेज अपराधियों की चाल और कमान का जिम्मा है सीनियर सिटीजन पुलिस पर। अपराध नियंत्रण के लिए तैनात एसपी क्राइम से लेकर एसएसपी तक सभी अधिकारियों की उम्र की करीब पचास के आसपास है। शहर कोतवालों पर नजर डालें तो सिविल लाइन कोतवाल को छोड़ दें तो दोनों ही कोतवाल फिटनेस के मामले में लचर हालत में हैं। ऐसे में पुलिस से दस कदम आगे और दोगुनी स्पीड से चलने वाले अपराधियों पर लगाम लगेगी भी तो कैसे।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर बेहद संवेदनशील जनपदों में शामिल है। यहां जरा सी भी नजर चूकी नहीं कि हालात काबू से बाहर हुए। वर्ष 2013 में जनपद दंगे की आग में झुलस चुका है और इसमें दर्जनों से ज्यादा जानें स्वाहा हो गई थीं। पुरकाजी से खतौली तक पूरा जनपद हाईवे पर बसा हुआ है। वैसे तो यहां पर हत्याओं का ग्राफ ही काफी ऊपर है, लेकिन हाईवे की लूट और हत्या तथा हत्या की कोशिश से पुलिस पर अतिरिक्त दबाव रहता है। इस जनपद में अपराध नियंत्रण और कानून-व्यवस्था कायम करने के लिए अतिरिक्त सतर्कता की जरूरत है। गोकशी पकड़ने गई पुलिस पर पथराव की ही चार घटनाओं पर नजर डालें तो पता चलेगा कि पुलिस ने सुस्ती की वजह से अपनी फजीहत कराई। शेरपुर में गोकशी की सूचना पर मात्र तीन सिपाही भेजे गए। उनकी मदद के लिए भेजी गई यूपी-100 की टीम ग्रामीणों के उग्र होते ही भाग निकली। इसके बाद जब दोबारा पुलिस गई तो उसमें भी पांच-छह लोग ही थे। तीसरी बार में कप्तान खुद भारी भरकम फोर्स लेकर गए। इस घटना से पुलिस ने सीख नहीं लिया। छपार में गोकशी की सूचना पर एक दारोगा और एक सिपाही मौका-ए-वारदात पर पहुंच गए। फिर वही हुआ। जानसठ के काटका गांव में भी यही हुआ। फिटनेस के मामले में केवल कोतवाल सिविल लाइन ही अपने को चुस्त-दुरुस्त बनाए हुए हैं, बाकी मंडी और शहर कोतवाल ओवरवेट के शिकार हैं। टकराव की स्थिति में उन्हें खुद सहयोग की जरूरत पड़ेगी। तीन बार पिटाई होने के बावजूद पुलिस के किसी अधिकारी ने घटना के कारणों पर मंथन नहीं किया। नई सोच से काम नहीं किया। पुलिस पुराने रवैये पर ही दौड़ती रही। आखिर मंगलवार को भी यही हुआ और फिर परिणाम निकला वही खाकी की फजीहत।

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