हाथ कट गए लेकिन नहीं मानी हार, सम्‍भल की साजिदा ने हौसलों से लिखी सफलता की कहानी

नौ साल की थीं साजिदा तभी चारा मशीन में कट गए थे दोनों हाथ। अब कर रहीं बीएड की पढ़ाई लड़कियों को बना रही आत्मनिर्भर।

By Narendra KumarEdited By: Publish:Wed, 29 Jul 2020 03:50 PM (IST) Updated:Wed, 29 Jul 2020 03:50 PM (IST)
हाथ कट गए लेकिन नहीं मानी हार, सम्‍भल की साजिदा ने हौसलों से लिखी सफलता की कहानी
हाथ कट गए लेकिन नहीं मानी हार, सम्‍भल की साजिदा ने हौसलों से लिखी सफलता की कहानी

सम्‍भल (सचिन चौधरी)। किस्मत हाथों से नहीं, मनोबल, मेहनत, हौसलों और लगन से लिखी जाती है। दोनों हाथ नहीं थे तो क्या हुआ, हौसला इतना था कि दूसरों के लिए मिसाल बन गई साजिदा। यह कहानी है उस साजिदा की, जिसके नौ वर्ष की उम्र में दोनों हाथ कट गए, फिर भी उसने अपना हौसला डगमगाने नहीं दिया। जब हादसा हुआ तब वह छठी कक्षा में थीं और आज बीएड की पढ़ाई कर रही हैं। साथ ही, दूसरी लड़कियों को सिलाई भी सिखाती हैैं ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। वह दिव्यांगता को मात देकर कदम-दर-कदम आगे ही बढ़ती गईं।

उत्तर प्रदेश के सम्भल जिले की तहसील चन्दौसी क्षेत्र के गांव जनेटा निवासी मोहम्मद हनीफ की सबसे छोटी बेटी साजिदा के दोनों हाथ मशीन से पशुओं के लिए चारा काटते समय कोहनी के नीचे से कट गए थे। तब भी साजिदा ने हौसला रखा। उसने पढ़-लिखकर कुछ कर गुजरने का सपना संजोया। शुरुआत में पेन पकडऩा तक मुश्किल था। धीरे-धीरे उसने कटे हुए दोनों हाथों के बीच में पेन फंसाकर लिखना शुरू कर दिया। स्कूल में दाखिला लिया तो शिक्षक भी उसका हौसला देख दंग रह गए। मेहनत और लगन के चलते वह हर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करती रही। इसके बाद साजिदा ने हाईस्कूल और इंटर में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया। फिर घर पर ही कपड़ों की सिलाई का काम करना शुरू कर दिया। उससे मिलने वाले रुपये से वह अपनी पढ़ाई का खर्च उठाने लगी। गांव की अन्य लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई करना सिखाया। इंटर के बाद बीए करने के लिए कॉलेज में दाखिला लिया और बीए में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया। अब वह चन्दौसी के रोटरी कॉलेज में बीएड अंतिम वर्ष की छात्रा हैैं। साजिदा इन दिनों 20 लड़कियों को निश्शुल्क सिलाई का प्रशिक्षण भी दे रही हैैं।

शिक्षक बनना चाहती हैं साजिदा

बीएड करने के बाद वह शिक्षक पात्रता परीक्षा की तैयारी करेंगी। साजिदा का कहना है कि मैं शिक्षक बनना चाहती हूं, इसलिए बीएड किया है। गांव की लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई का प्रशिक्षण दे रही हूं। जब मेरे दोनों हाथ कट गए थे तो मेरे माता पिता ने मेरा साथ दिया। उनसे मिले सहयोग के चलते ही आज मैं यहां तक पहुंची हूं। आगे भी हौसला बना रहेगा। 

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