मजदूरों के इन उदास गांवों में आंकड़े झूठे हैं और दावे महज किताबी Moradabad News
लॉकडाउन ने यहां के करीब दस मजदूरों को गांव लौटने को मजबूर किया है। मजदूरों की हालत खराब हैइस समय न तो उनके पास आमदनी है और न ही रोजगार।
मुरादाबाद (आशुतोष मिश्र)। प्रवासियों के हाथ को काम और रोजगार देने की बात यहां इस्लामनगर गांव में बेमानी है। लॉकडाउन ने यहां के करीब दस मजदूरों को गांव लौटने को मजबूर किया है। इनमें कई भूमिहीन हैं। कुछ हुनरमंद भी हैं लेकिन, काम नहीं है। गांव में राशन की दुकान से फ्री में अनाज मिल रहा है, जिससे अभी रोटी मिल रही है। लेकिन, मजदूरों के हाथ बेकार हैं। शायद ऐसे हाल का ही दर्द शायर अदम गोण्डवी ने बयां किया है, जिसमें वह कहते हैं कि-
तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है।
इस्लामनगर में लॉकडाउन शुरू होते ही हरियाणा के फरीदाबाद में इस्लामनगर के मोबीन, नईम, वसीम, नदीम आ गए। वहां की पुलिस ने खदेड़ दिया। दूसरे टोले के हरिज्ञान, शिव, प्रियांशु, मोहन लाल, चंद्रभान और विकास हिमाचल के बद्दी जिले से लॉकडाउन में घर वापस आ गए। प्रवासी पहले कोरोना की वजह से घर में क्वारंटाइन किए गए। अब खाली हैं और गांव में इधर-उधर भटक रहे हैं। इस्लामनगर मुख्य टोले के सभी चारों मजदूर टाइल्स फिटिंग के जानकार हैं। जबकि बद्दी जिले में रहने वाले खेतों में दिहाड़ी पर काम कर रहे थे।
मोबीन का कहना है कि दो बच्चे हैं। अब घर पर पेट पालना भारी पड़ रहा है। मौका मिले तो खेत में भी काम कर लेंगे। शादीशुदा नईम बोले, सीजन में लोगों के खेतों गेहंू की कटाई की। अब कोई काम नहीं है। वसीम और नदीम का दर्द यह है कि अपनी तो खेती भी नहीं है। दोनों बंटाई पर खेती करके जीवन की गाड़ी खींचने की तैयारी में है।
गांव पंचायत में धन नहीं है, इसलिए मजदूरों को काम नहीं दिए गए हैं। सभी को राशन बांटा जा रहा है। फंड मिलते ही बाकी काम होंगे ओर प्रवासियों को प्राथमिकता दी जाएगी।
संतराम सिंह सैनी, प्रधान के पति