अब तो अभिभावकों की जेब कट चुकी साहब

मुरादाबाद। स्कूलों में फीस वृद्धि को बुलाए जाने वाली 28 अप्रैल को बैठक अब दिखावा मात्र ही रह गई है।

By Edited By: Publish:Sat, 25 Apr 2015 01:01 AM (IST) Updated:Sat, 25 Apr 2015 01:01 AM (IST)
अब तो अभिभावकों की जेब कट चुकी साहब

मुरादाबाद। स्कूलों में फीस वृद्धि को बुलाए जाने वाली 28 अप्रैल को बैठक अब दिखावा मात्र ही रह गई है। अभिभावकों की फीस व किताबों की खरीदारी में जेब कट चुकी है। पांच साल का हिसाब मांगने की हर साल की नौटंकी से अभिभावकों का भला तो रत्ती भर भी नहीं हो पाया, लेकिन उन्हें गुमराह करने की कोशिश जरूर की जा रही है। स्कूलों द्वारा वार्षिक शुल्क के नाम पर ही चार महीने की फीस के बराबर धनराशि वसूली गयी है। अभिभावकों की चुप्पी का फायदा पब्लिक स्कूल हर साल उठाते हैं।

प्रशासन ने पांच साल की फीस का ब्योरा पब्लिक स्कूलों से मांगा है। नियमानुसार तीन साल में एक बार फीस बढ़नी चाहिए मगर स्कूल प्रबंधक हर साल फीस बढ़ोत्तरी कर रहे हैं। फीस, किताब, यूनिफार्म व ट्रांसपोर्टेशन शुल्क वसूली से पूरी तरह शिक्षा का बाजारीकरण हो गया है। दो बच्चों की किताबें, स्कूल फीस व ट्रांसपोर्टेशन में ही एक आम आदमी का वेतन कम पड़ रहा है।

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अप्रैल में दो बच्चों का खर्च

शर्मा जी के दो बच्चे एक पब्लिक स्कूल में पढ़ते हैं। मासिक वेतन 22 हजार रुपये है। लेकिन अप्रैल में दो बच्चों का खर्च ही 30 हजार रुपये बैठा। घर के खर्च के लिए उधार लेने की नौबत आ गई।

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..तो क्या वापस होगी फीस

प्रशासनिक कसरत के बाद सबसे बड़ा सवाल ये है कि यदि फीस कम करने का फैसला होता है तो क्या जमा हो चुकी फीस को स्कूलों से वापस कराया जाएगा। यदि ऐसा होता है तो प्रशासन की ये कार्रवाई को सार्थक माना जाएगा। नहीं तो इसको लेकर बस कागजी खानापूर्ति ही की जा रही है।

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औसतन कक्षा छह के बच्चे का खर्च

-वार्षिक शुल्क 4800 रुपये

-महीने की फीस 1450 रुपये

-ट्रांसपोर्टेशन शुल्क 1250 रुपये

-किताबें 6000 रुपये

-यूनिफार्म दो जोड़ी-1000 रुपये

-जूते 250

-स्कूल बैग-400 रुपये

-अन्य खर्च 500 रुपये

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स्कूलों की बैठक बुलाई गई है। पांच साल में जो बढ़ोत्तरी की गई है, वह किस हिसाब से हुई। जिन्होंने बहुत ज्यादा फीस बढ़ाई है, उनकी फीस कम कराई जाएगी।

श्रवण कुमार यादव, जिला विद्यालय निरीक्षक

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