लोकल से वोकल की पहल, स्वदेशी राखियों की धूम

रक्षाबंधन पर्व पर इस बार बाजारों में स्वदेशी राखियों की धूम रही। लोकल से वोकल की पहल के चलते दुकानदारों ने चाइनीज राखियों को बेचने से दूरी बनाए रखा। कोरोना महामारी और चीन से तनाव के चलते आयात-निर्यात पर प्रभाव पड़ा है। राखी बाजार में छाए रहने वाले चीन को इस बार वैसी तबज्जो नहीं मिल पाई। वहीं लोगों का कहना था कि भाई-बहन के आपसी प्रेम के बंधन की डोर को स्वदेशी राखियों की गांठ लगने से देश को मजबूती मिलेगी।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 03 Aug 2020 07:00 PM (IST) Updated:Mon, 03 Aug 2020 07:00 PM (IST)
लोकल से वोकल की पहल, स्वदेशी राखियों की धूम
लोकल से वोकल की पहल, स्वदेशी राखियों की धूम

जागरण संवाददाता, मीरजापुर : रक्षाबंधन पर्व पर इस बार बाजारों में स्वदेशी राखियों की धूम रही। लोकल से वोकल की पहल के चलते दुकानदारों ने चाइनीज राखियों को बेचने से दूरी बनाए रखा। कोरोना महामारी और चीन से तनाव के चलते आयात-निर्यात पर प्रभाव पड़ा है। राखी बाजार में छाए रहने वाले चीन को इस बार वैसी तबज्जो नहीं मिल पाई। वहीं लोगों का कहना था कि भाई-बहन के आपसी प्रेम के बंधन की डोर को स्वदेशी राखियों की गांठ लगने से देश को मजबूती मिलेगी।

लद्दाख के गलवन घाटी पर चीन की नापाक हरकत के खिलाफ विध्यवासियों के आक्रोश का असर रक्षाबंधन पर साफ देखा गया। खरीदार ही नहीं व्यापारी भी चाइनीज सामानों का बहिष्कार किए। रक्षाबंधन पर चीन से आने वाले राखियों पर इस बार रोक लगा दी गई थी। भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लोगों का स्वदेशी पर खास फोकस रहा। हालांकि इस बार भी चीनी राखियां बाजार में दिखीं, जो पिछले साल के बचे हुए रखे थे। बहनें पूरी तरह से स्वदेशी की ओर रूख कर चुकी हैं। भाइयों को चीनी राखियों के बजाय हस्तनिर्मित राखियां बांधी। वहीं राखी दुकानदार पिटू केशरवानी ने कहा कि स्वदेशी राखियां भले ही महंगी हैं फिर भी बहनों का स्वदेशी पर ही जोर रहा। पिछले वर्ष की अपेक्षा इस बार काफी कम बिक्री रही लेकिन यह अच्छा लगा कि कम से कम लोग स्वदेशी की ओर रूख तो किए। इससे अपने देश का पैसा अपने ही देश में रहेगा। शिवपूजन ने कहा कि इस बार रक्षाबंधन पर स्वदेशी राखियों की डिमांड अधिक रही। दिल्ली, कोलकाता, वाराणसी व समूह की महिलाओं द्वारा हस्तनिर्मित राखियां खूब बिकीं। राखी विक्रेता संतोष ने बताया कि इस बार स्वदेशी राखियों की डिमांड अधिक रही और खरीदारी की खूब हुई। राखियां खरीदने से पूर्व लोग चाइनीज व स्वदेशी होने के बारे में जानकारी कर रहे थे। उसके बाद ही राखियां खरीद रहे थे। भले ही चाइनीज राखियों के मुकाबले वैराइटी कम हो लेकिन लोगों की पसंद स्वदेशी राखियां ही थी।

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