नालों में बह रहा कालोनियों का सीवेज, जिम्मेदार चुप

आबूनाला-दो हो या शहर के अन्य नाले स्वच्छ भारत अभियान के मकसद को पलीता लगाते हुए उनमें कई कालोनियों का सीवेज सीधे बहाया जा रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 06 Jan 2021 08:08 AM (IST) Updated:Wed, 06 Jan 2021 08:08 AM (IST)
नालों में बह रहा कालोनियों का सीवेज, जिम्मेदार चुप
नालों में बह रहा कालोनियों का सीवेज, जिम्मेदार चुप

मेरठ, जेएनएन। आबूनाला-दो हो या शहर के अन्य नाले, स्वच्छ भारत अभियान के मकसद को पलीता लगाते हुए उनमें कई कालोनियों का सीवेज सीधे बहाया जा रहा है। पाच महीने पहले आबूनाला-दो में सीवेज बहाने वाली कालोनियों पर विकास प्राधिकरण ने कार्रवाई की ठानी, लेकिन एक कालोनी पर कार्रवाई करने के बाद बाकी कालोनियों पर कार्रवाई करने में कदम ठिठक गए। इन कालोनियों का सीवेज सीधे नाले में बहाया जाता है इससे भीषण दुर्गंध फैलती है, बीमारिया पैदा होती हैं। यह सीवेज सीधे काली नदी को प्रदूषित करता है, यही काली नदी गंगा में मिलती है। ये सब जानने-देखने के बावजूद नगर निगम व प्रदूषण नियंत्रण विभाग के भी हाथ कार्रवाई को आगे नहीं बढ़ते। इन विभागों की बेपरवाही पर प्रशासन भी जवाब-तलब नहीं करता, जबकि इनमें से कोई भी ऐसा करने से रोकने के लिए सीधी कार्रवाई कर सकता है।

जो कार्रवाई डिफेंस कालोनी पर, वह बाकी पर क्यों नहीं

13 अगस्त 2020 को मेरठ विकास प्राधिकरण (एमडीए) ने मवाना रोड स्थित डिफेंस कालोनी की सोसाइटी को नोटिस जारी किया। इस कालोनी का सीवेज सीधे आबूनाला-दो में गिराया जाता है। एक महीने में एसटीपी न बनाने पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी गई। सोसाइटी ने नोटिस का जवाब समय पर नहीं दिया, और न ही काम शुरू किया। बहरहाल भारी दबाव के बीच अंतत: सोसाइटी ने 29 सितंबर से एसटीपी निर्माण शुरू करा दिया, जो अब दो-तीन हफ्तों में पूर्ण भी हो जाएगा। सवाल यह है कि ऐसी ही तेजी समान प्रकृति की दूसरी कालोनियों के लिए क्यों नहीं दिखाई जा सकी।

एमडीए तय नहीं कर पाया कि आखिर करना क्या है

आबूनाला-दो में ही न्यू मीनाक्षीपुरम, ईशापुरम व पीआर एन्क्लेव अपनी कालोनी का सीवेज सीधे नाले में गिरा रही हैं। इन कालोनियों पर भी डिफेंस कालोनी के साथ ही कार्रवाई होनी थी, लेकिन ऐसा एमडीए नहीं कर सका। करीब आधा साल बीत गया, लेकिन एमडीए को अब तक इन कालोनियों की फाइल ही नहीं मिल सकी है। नियोजन अनुभाग, न मानचित्र स्वीकृत होने की स्थिति स्पष्ट कर सका है, न ही प्रवर्तन खंड से अवैध कालोनी के मामले में ध्वस्तीकरण, प्लाट बिक्री रोकने व बिल्डर पर एफआइआर जैसी कोई कार्रवाई शुरू हो सकी है। कभी कोई अवकाश पर, कभी सार्वजनिक अवकाश, तो कभी दूसरी व्यस्तता। एमडीए यही कहता रहा कि कार्रवाई जल्द करेंगे। एक सप्ताह बाद करेंगे, लेकिन बीत गया आधा साल। बहरहाल, सचिव प्रवीणा अग्रवाल का अभी भी यही कहना है कि फाइल अभी नहीं मिली है। फाइल मिलने पर उसके अनुसार कार्रवाई की जाएगी।

नगर निगम, प्रदूषण नियंत्रण विभाग व प्रशासन यह कर सकता है

- नाले को साफ व स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी नगर निगम की है। उसके नाले में सीवेज गिराया जा रहा है। नाले में बिना शोधित सीवेज गिराने से नगर निगम रोक सकता है।

- एमडीए व प्रशासन को ऐसी कालोनियों पर कार्रवाई को पत्र लिख सकता है।

- प्रदूषण नियंत्रण विभाग चेतावनी देकर नाले में सीवेज गिराने से रोक सकता है, और पाच हजार रुपये तक का जुर्माना भी लगा सकता है।

- प्रशासन के नियंत्रण में सभी विभाग होते हैं। कालोनी में रहने वाले लोग हों या फिर शहरवासी, सभी नागरिकों को इस तरह की दुर्गंध, बीमारी व प्रदूषण से बचाने के लिए प्रशासन कोई भी कदम उठा सकता है। इन सभी विभागों को कार्रवाई का आदेश देने के साथ ही स्वत: संज्ञान लेकर भी कार्रवाई कर सकता है।

- मजिस्ट्रेट के समक्ष वाद दायर किया जा सकता है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-133 के तहत मजिस्ट्रेट छह माह तक की जेल की सजा दे सकते हैं। जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

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