'नदी बहे कल-कल, तभी संरक्षित रहेगा जल'

जल बिन अगले पल की भी कल्पना मुश्किल है। यह जानते सब हैं लेकिन फिर भी प्रकृति की इस अनमोल देन से खिलवाड़ करने से नहीं चूकते। कभी अनजाने तो कभी जानबूझकर पानी की बर्बादी हमें कहां ले जा रही है इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है। पंजाब में भूजल का दोहन अगर इसी गति से होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब वह राजस्थान की तरह रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगा।

By Edited By: Publish:Tue, 23 Jul 2019 04:00 AM (IST) Updated:Tue, 23 Jul 2019 04:00 AM (IST)
'नदी बहे कल-कल, तभी संरक्षित रहेगा जल'
'नदी बहे कल-कल, तभी संरक्षित रहेगा जल'
मेरठ, जेएनएन : जल बिन अगले पल की भी कल्पना मुश्किल है। यह जानते सब हैं, लेकिन फिर भी प्रकृति की इस अनमोल देन से खिलवाड़ करने से नहीं चूकते। कभी अनजाने तो कभी जानबूझकर पानी की बर्बादी हमें कहां ले जा रही है, इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है। पंजाब में भूजल का दोहन अगर इसी गति से होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब वह राजस्थान की तरह रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगा। दैनिक जागरण की अकादमिक संगोष्ठी में इस बार चर्चा और चिंता का केंद्र जल ही था। 'जल संरक्षण को प्रभावी कैसे बनाएं' विषय पर जल कानून विशेषज्ञ डॉ. अवधेश प्रताप ने अपने विचार साझा किए। अतिथि के विचार प्रकृति ने पानी की चार व्यवस्थाएं की हैं। पेड़-पौधे, वातावरण में नमी, दुनियाभर के ग्लेशियर और भूजल। इनमें भूजल को संरक्षित रखा गया है। यह अंतिम विकल्प है, लेकिन हो उल्टा रहा है। भूजल के बेहिसाब दोहन ने जगह-जगह जल संकट खड़ा कर दिया है। हरित क्रांति के नाम पर किसानों को जमीन का पानी निकालने की छूट दी गई। धीरे-धीरे भूजल रीचार्ज के रास्ते बंद हो गए। जल संरक्षण के संबंध में सरकारों को गंभीर होने की जरूरत है। भूजल और सतह के जल दोनों को संरक्षित करना होगा। नदियों का बहते रहना जरूरी है। भूजल रीचार्ज नहीं होगा तो नदियां सूखने लगेंगी। रिवर बेड (नदी तल) और फ्लड प्लेन (नदी का किनारा) से अगर छेड़छाड़ की गई तो नदी मर जाएगी। अगर नदी का प्राकृतिक प्रवाह बना रहे तो उसकी सफाई की जरूरत ही नहीं है। वेग उसे स्वत: स्वच्छ रखेगा। वर्तमान में नदी का प्राकृतिक प्रवाह बनाए रखना संभव नहीं है इसलिए वैज्ञानिकों ने इसे पर्यावरणीय प्रवाह कहना आरंभ कर दिया है। नदी के किनारों पर कब्जे नदी को मरने से बचाना है तो उसके किनारे के बड़े भूभाग को अतिक्रमण से मुक्त करना होगा। आज फ्लड प्लेन पर कब्जे कर किसी ने खेती कर ली है तो किसी ने निर्माण कर लिया है। इससे नदी का प्रवाह अवरुद्ध हुआ है। नदी का बचाना जल संरक्षण का महत्वपूर्ण कदम है। इस तरह बचेगा जल जल संरक्षण के लिए तीन बिंदुओं पर जोर देने की आवश्यकता बताई गई है। जल साक्षरता, जल जागरण और जल शिक्षा। संबंधित मंत्रालय इस पर काम रहे हैं। बच्चों के पाठ्यक्रम में जल संरक्षण को शामिल किया जाए। इसके साथ ही पानी बचाने को जनभागीदारी भी चाहिए। चिंता की बात यह है कि हमारे और सरकार के प्रयास फिलहाल पर्याप्त नहीं हैं। इन्हें और व्यापक रूप देना होगा। पानी की बर्बादी रोकें उपलब्ध जल का केवल आठ प्रतिशत घरेलू इस्तेमाल यानी नहाने-धोने आदि में आता है। घरेलू प्रयोग में आने वाले पानी की बर्बादी तो रोकनी ही है, इसके साथ कृषि और औद्योगिक क्षेत्र में हो रही बर्बादी पर प्रभावी नियंत्रण की जरूरत है। सिंचाई में सुधारवादी दृष्टिकोण अपनाना होगा। सिंचाई की पाइप, ड्रिप और स्प्रिंकलर विधि से जल का दोहन बचाया जा सकता है। गुजरात और मध्यप्रदेश में इस प्रकार का मॉडल अपनाया गया, जो सफल हुआ। इनसेट---------- नदियों को जोड़ने पर विवाद खत्म हो राज्यों में नदियों के पानी को लेकर चल रहे विवाद का हल इतना कठिन नहीं है। 14 हिमालयी और 16 प्रायद्वीप नदियों को जोड़ना है। नदी जोड़ परियोजना जल संरक्षण का बड़ा उपाय है। बरसात के पानी पर किसी का हक नहीं है। जहां बाढ़ है वहां का पानी सूखे क्षेत्रों में भेजना कोई विवाद का विषय नहीं होना चाहिए।
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