अब बच्चे नहीं पढ़ेंगे व्यवस्था पर चोट करती ‘जामुन का पेड़’ की कहानी Meerut News

सीआइएससीई ने बीच सत्र में सिलेबस से हटाई कृष्ण चंदर की कहानी व्यवस्था पर चोट करती कहानी बच्चों में लोकप्रिय थी।

By Taruna TayalEdited By: Publish:Fri, 22 Nov 2019 02:47 PM (IST) Updated:Fri, 22 Nov 2019 02:47 PM (IST)
अब बच्चे नहीं पढ़ेंगे व्यवस्था पर चोट करती ‘जामुन का पेड़’ की कहानी Meerut News
अब बच्चे नहीं पढ़ेंगे व्यवस्था पर चोट करती ‘जामुन का पेड़’ की कहानी Meerut News

मेरठ, [अमित तिवारी]। सरकारी व्यवस्था पर चोट करती कहानी ‘जामुन का पेड़’ के बारे में अब स्कूलों के बच्चे नहीं पढ़ सकेंगे। काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (सीआइएससीई) की ओर से आइसीएसई (10वीं) के हिंदी सिलेबस से कृष्ण चंदर द्वारा लिखित इस कहानी को हटा दिया गया है। बीच सत्र में काउंसिल से आए निर्देश के लिए स्कूल पहले से तैयार नहीं थे। हंिदूी सिलेबस में लघु कथाओं में शामिल यह कहानी कई स्कूल बच्चों को पढ़ा भी चुके थे। इसके स्थान पर कोई नई कहानी को जोड़े जाने की सूचना नहीं दी गई है।

बीच सत्र में आए निर्देश

स्कूलों में सत्र 2019-20 की पढ़ाई एक अप्रैल को शुरू हो गई थी। छह महीने की पढ़ाई होने के बाद एक नवंबर को काउंसिल की ओर से जारी सकरुलर में कहानी को हटाने की जानकारी दी गई है। फिलहाल सत्र 2021 और 2022 के लिए इस कहानी को हटाया गया है। इसके बाद कहानी को सिलेबस में शामिल किया जाएगा या नहीं, इसके बारे में भी कोई जानकारी स्कूलों को नहीं दी गई है। स्कूल शिक्षकों का कहना है कि व्यवस्था पर चोट करती यह कहानी बच्चों में काफी लोकप्रिय थी।

सेक्रेटेरिएट से प्रधानमंत्री तक का जिक्र

कहानी सचिवालय परिसर में गिरे एक जामुन के पेड़ और उसमें दबे शायर के इर्द-गिर्द घूमती है। पहले जामुन के पेड़ के गिरने का अफसोस, फिर दबे हुए आदमी के जिंदा होने की जानकारी मिलने पर उसे निकालने की जद्दोजहद में सरकारी महकमों की कार्यशैली को बयां किया गया है। शायर को निकालने के लिए सुपरिंटेंडेंट से लेकर चीफ सेक्रेटरी तक संदेश पहुंचते ही पेड़ काटने पर रोक लग जाती है। यहां से वाणिज्य विभाग, फिर कृषि विभाग, होर्टीकल्चर विभाग और शायर पता चलने पर संस्कृति विभाग तक भी फाइल पहुंचती है। अंत में फाइल प्रधानमंत्री तक पहुंची। पेड़ काटने की अनुमति पहुंचने से पहले शायर की जिंदगी की फाइल मुकम्मल हो चुकी थी।

...खाक हो जाएंगे हम, तुमको खबर होने तक

जामुन के पेड़ के नीचे दबे शायर का शेर ‘हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन खाक हो जाएंगे हम, तुमको खबर होने तक’ कहानी के पूरे मर्म को बयां करता है। गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) के वजीराबाद में कृष्ण चंदर का जन्म 1914 को हुआ था और 1977 को उनका निधन हो गया था। उपन्यास व कहानी लेखन में उन्हें 1977 में पद्मभूषण से भी नवाजा गया। 

chat bot
आपका साथी